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- क्या होगा अगला ट्रंप...
गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए सन् 2007 में राज्य के विधानसभा के चुनावों में मोदी ने मुस्लिम समुदाय के विरुद्ध नफरत का माहौल पैदा करके हिंदू वोटों का सफल ध्रुवीकरण किया था। इसी ब्रह्मास्त्र का प्रयोग करते हुए सन् 2019 में राम मंदिर और हिंदू जागरण को मुद्दा बनाया। सर्जिकल स्ट्राइक ने मोदी की छवि में चार चांद लगाए थे, तो 2019 के चुनाव से पहले उसे दोहरा दिया गया और धर्म और सर्जिकल स्ट्राइक की जुगलबंदी के चलते मोदी को और भी बड़ा जनसमर्थन मिला…
पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों की घोषणा हो चुकी है। इस संदर्भ में यह याद करना समीचीन होगा कि नीतीश कुमार जब एनडीए का हिस्सा नहीं थे और विपक्षी मुख्यमंत्री थे तो उन्होंने कहा था कि विपक्ष को अपना नैरेटिव बनाना चाहिए ताकि मोदी का मुकाबला संभव हो सके। विपक्ष को उनकी बात का मर्म समझ में नहीं आया। कांग्रेस ने समझा भी तो मोदी के मुकाबले में राहुल गांधी की छवि एक ऐसे अपरिपक्व व्यक्ति की बन गई जिस पर पप्पू का ठप्पू लग गया। दिल्ली विधानसभा चुनाव में 28 सीटें जीतने के बाद अरविंद केजरीवाल ने प्रधानमंत्री बनने की जल्दबाज़ी में मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देकर अपनी छवि बिगाड़ ली और उन्हें भगोड़ा करार दे दिया गया। इस प्रकार सन् 2014 के चुनाव में मोदी के सामने कोई ऐसा उम्मीदवार बचा ही नहीं जिस पर जनता विश्वास कर पाती। तब मोदी का नारा विकास का था, सबको साथ लेकर चलने का था। जनता कांग्रेस के भ्रष्ट और निकम्मे शासन से तंग थी और उसे विकास चाहिए था।
प्रधानमंत्री बनने के बाद मोदी ने विकास पर ध्यान दिया, अंतरराष्ट्रीय जगत में अपनी और भारत की छवि पर फोकस किया और देश के भीतर अपनी छवि चमकाने के लिए लगभग हर रोज़ किसी नई योजना की घोषणा की। गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में उनकी छवि तेज़ी से काम करने वाले निर्णायक नेता की थी ही। प्रधानमंत्री बनने के बाद उनकी यह छवि और भी मजबूत हुई। इस सबके साथ उन्होंने कुछ और काम भी किए जिन्हें समझे बिना आज के हालात का विश्लेषण संभव नहीं है। सन् 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान ही पार्टी के चुनाव घोषणापत्र को बदलवा कर और 'अबकी बार भाजपा सरकार' की जगह 'अबकी बार मोदी सरकार' का नारा देकर उन्होंने अपने इरादों की झलक तो दे ही दी थी, प्रधानमंत्री बनते ही मोदी ने पार्टी में अपने विरोधियों को उनकी औकात दिखा दी। मार्गदर्शन मंडल की घोषणा और आडवाणी की लगातार किरकिरी आदि तरीकों से उन्होंने पार्टीजनों को स्पष्ट संदेश दिया कि शक्ति का केंद्र सिर्फ वे ही हैं। उन्होंने बड़ी चतुराई से पार्टी को मिलने वाले फंड का केंद्रीयकरण करके क्षेत्रीय क्षत्रपों को नकारा कर दिया। अमित शाह को पार्टी का अध्यक्ष बनवा कर उन्होंने एक और महत्त्वपूर्ण जीत हासिल की और पूरी पार्टी उनके कब्ज़े में आ गई। विपक्षी नेताओं के विरुद्ध योजनाबद्ध अभियान चला। सच और झूठ के घालमेल से सोशल मीडिया पर प्रचार आज तक जारी है। विरोधी दलों के नेताओं पर छापे डालकर उनके भ्रष्टाचार का प्रचार किया और छापे डालने का समय भी चुनाव अथवा किसी महती योजना के साथ जोड़ा ताकि जनता को लगे कि सिर्फ विपक्ष ही भ्रष्ट है। यह रणनीति भी आज तक जारी है। हिमाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह पर तो छापा उनकी बेटी की शादी वाले दिन डाला गया। विपक्ष को मिलने वाले फंड पर रोक के लिए उन्होंने चुनावी बांड की नींव रखी जिससे कार्पोरेट कंपनियां भी उनके काबू में आ गईं। सन् 2014 तक मीडिया की छवि बाहुबली सरीखी थी जो सरकारें बना भी सकता है और गिरा भी सकता है। मीडिया पर लगाम लगाकर मोदी ने मीडियाकर्मियों में ही मीडिया की इस छवि को चकनाचूर कर दिया।
साम, दाम, दंड, भेद के प्रयोग से एक तरफ उन्होंने मीडिया में अपने भक्त बनाए तो दूसरी तरफ विरोध करने वाले पत्रकारों की छवि धूमिल करने का अभियान चलाया। मोदी ने पहली बार मीडिया से विपक्षी दलों का-सा व्यवहार किया। विज्ञापन के अभाव में मीडिया की स्वतंत्रता और जीवन दोनों खतरे में पड़ जाते हैं। सरकारी विज्ञापन तो सरकार के हाथ में हैं ही, बड़े कार्पोरेट घरानों को भी आगाह कर दिया गया कि मोदी का विरोध करने वाले मीडिया घरानों को विज्ञापन न दिए जाएं। आखिरकार मीडिया घरानों को समझ आ गया कि जीवित रहना है तो सरकारी पानी में मगर से बैर नहीं चलेगा। मीडिया पर अपनी निर्भरता खत्म करने के लिए मोदी ने विद्वानों और कार्यकर्ताओं की एक स्थायी टीम तैयार की जो कहानियां गढ़-गढ़कर मोदी की छवि चमकाता है और विपक्षी नेताओं का चरित्र-हनन करता है। यह प्रचार इतना सघन है कि इसका मुकाबला किसी विपक्षी दल के बूते का नहीं है। संबंधित व्यक्तियों की सहमति और जानकारी के बिना, मोदी की छवि चमकाने के लिए विदेशी नेताओं, विदेशी समाचारपत्रों, विदेशी पत्रकारों और प्रतिष्ठित भारतीय नागरिकों के नाम का सहारा लिया जाता है या यूं ही काल्पनिक नाम गढ़ लिए जाते हैं। ऐसे कई प्रकरण सामने आने के बावजूद आम जनता में उनके भक्तों की संख्या लगातार बढ़ रही है और ऐसे बहुसंख्य लोग भाजपा के नहीं, मोदी के समर्थक हैं। सच यह है कि आज मोदी भाजपा से भी बड़े हैं। सन् 2014 में मोदी का नारा विकास और काले धन की बरामदगी का था। नोटबंदी को इसी रूप में पेश किया गया। यह एक तथ्य है कि नोटबंदी से तुरंत पहले कुछ गिने-चुने भाजपा नेताओं ने अपना धन बैंकों में जमा करवा दिया, कुछ राज्यों में पार्टी कार्यालय के लिए जमीनें खरीद ली गईं, पेट्रोल पंपों और कैमिस्टों को नगद लेन-देन की छूट देकर और दो हज़ार का नोट जारी करके पतली गलियां भी तैयार कर ली गईं।
यह प्रचार भी करवाया गया कि दो हज़ार के नोट में चिप लगी है और उसकी जमाखोरी सरकार की निगाह से नहीं छुपेगी। सत्ताधारी दल को इस प्रचार का लाभ मिला क्योंकि उसे मालूम था कि ऐसी कोई चिप नहीं है। नोटबंदी की घोषणा करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने पेटीएम का नाम लेकर उसे प्रोमोट करके सामान्य नागरिकों का डेटा जानने का एक नया रास्ता तलाश कर लिया।