सम्पादकीय

ट्विटर में बदलाव की पहल से किस तरह का होगा इंटरनेट मीडिया का नया दौर

Rani Sahu
29 April 2022 1:50 PM GMT
ट्विटर में बदलाव की पहल से किस तरह का होगा इंटरनेट मीडिया का नया दौर
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स्पेस एक्स और टेस्ला जैसी नामी कंपनियों की स्थापना में मुख्य भूमिका निभाने वाले और इनका मालिकाना हक रखने वाले अरबपति कारोबारी एलन मस्क जब इंटरनेट मीडिया के एक महत्वपूर्ण मंच ट्विटर को 44 अरब डालर में खरीदने की घोषणा करते हैं

डा. संजय वर्मा।

स्पेस एक्स और टेस्ला जैसी नामी कंपनियों की स्थापना में मुख्य भूमिका निभाने वाले और इनका मालिकाना हक रखने वाले अरबपति कारोबारी एलन मस्क जब इंटरनेट मीडिया के एक महत्वपूर्ण मंच ट्विटर को 44 अरब डालर में खरीदने की घोषणा करते हैं, तो ज्यादातर चर्चाएं केवल यहां तक सिमटकर रह जाती हैं कि मीडिया के मोहल्ले में आकर मस्क आखिर क्या करना चाहते हैं। क्या वह पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की तरह ट्विटर पर अपनी मनमानी नहीं कर पाने के किसी मलाल से पीडि़त हैं

उल्लेखनीय है कि डोनाल्ड ट्रंप ने इस साल के आरंभ में 'ट्रूथ सोशलÓ नामक अपना इंटरनेट मीडिया प्लेटफार्म लाकर यह जताने की कोशिश की थी कि अगर ट्विटर उन्हें अपनी बात कहने से वंचित करेगा, तो वह इसके लिए निजी इंटरनेट मीडिया प्लेटफार्म ला सकते हैं। पर यहां तो मस्क ट्विटर को ही खरीदने पर आमादा हैं। यानी बात केवल यह नहीं है कि एलन मस्क को ट्विटर पर एडिट बटन जोडऩे या इसमें कुछ नया बदलाव करने की चिंता है। बल्कि माजरा कुछ और है, जिस पर अभी हमारी नजर नहीं जा रही है।
इस बात की बहुत अधिक संभावना है कि एलन मस्क और उन्हीं की तरह इस साल मेटावर्स नामक नए प्रयोग की शुरुआत करने वाले फेसबुक के सह-संस्थापक मार्क जुकरबर्ग इंटरनेट को एक नए दायरे में छलांग लगाते देख पा रहे हैं। उनकी तैयारियां उसी दिशा में हो सकती हैं। कुछ आकलनों के मुताबिक यह नया दायरा 'वेब 3.0Ó का है। इस नए प्रयोग के माध्यम से इंटरनेट की दुनिया में कुछ ऐसी अनोखी चीजें जोडऩे का प्रयास किया जा रहा है जिसकी फिलहाल कल्पना ही की जा रही है।
उल्लेखनीय यह है कि महज तीन या चार दशक पुराने इंटरनेट में एक बार फिर बड़े बदलाव की फिक्र की जा रही है। इन बदलावों को 'वेब 3.0Ó के रूप में दर्ज करने का अभिप्राय यह है कि इंटरनेट में अब तक वेब '1.0Ó और 'वेब 2.0Ó जैसे दो बड़े दौर आ चुके हैं। बदलावों के इन दो दौरों यानी चरणों में इंटरनेट ने कई करामातें दिखाई हैं। इसमें नई-नई तकनीकों का समावेश हुआ है। लेकिन ये तकनीकें अब पुरानी पड़ चुकी हैं। आउटडेटेड हो गई इंटरनेट की तकनीकों में नए दौर की आवश्यकताओं को साधने और भविष्योन्मुख होने के लिहाज से यह आवश्यक माना जा रहा है कि 'वेब 3.0Ó नाम की नई क्रांति की शुरुआत हो और उससे फिलहाल ठस हो चुके या एकरसता का शिकार हो चुके इंटरनेट की दुनिया में नई जुंबिश पैदा हो सके।
आविष्कार से बदली दुनिया की चाल : मानव इतिहास के बीते पांच हजार वर्षों में दुनिया में जितने भी बड़े बदलाव हुए हैं, उन्हें पिछले दो सौ वर्षों में औद्योगिकीकरण और तकनीकी विकास की देन माना जा सकता है। लेकिन इसमें भी ज्यादा बड़े परिवर्तन तब हुए, जब वल्र्ड वाइड वेब (डब्ल्यूडब्ल्यूडब्ल्यू) के रूप में वर्ष 1989 में पहली पीढ़ी का इंटरनेट दुनिया के सामने आया। इसे संक्षेप में 'वेब 1.0Ó कहा जाता है। अपनी शुरुआत के अगले तीन-चार वर्षों में 'वेब 1.0Ó ने साबित कर दिया था कि इंटरनेट की शक्ल में ऐसी नई तकनीक मिल गई है, जो दुनिया की चाल बदलकर रख देगी। हालांकि 'वेब 1.0Ó के दौर में इंटरनेट पर वेबसाइटों के जरिए स्थिर किस्म की जानकारियां ही मिलती थीं। यानी उनमें वास्तविक समय (रीयल टाइम) में कोई दखल या बदलाव नहीं होता था।
यही नहीं, इंटरनेट इस्तेमाल करने वाले आम लोग उन वेब पेजों पर अपनी ओर से कोई जानकारी नहीं जोड़ सकते थे। फिर भी सूचनाओं-जानकारियों के प्रचार-प्रसार के नजरिए से 'वेब 1.0Ó ने अपनी उपयोगिता साबित की। इंटरनेट की इस शक्लोसूरत में बड़ा बदलाव तब आया, जब पिछली सदी के आखिरी दशक के अंतिम समय में और 21वीं सदी के आरंभ के साथ नेटीजंस (इंटरनेट इस्तेमाल करने वाले लोगों) को इंटरनेट पर कंटेंट बनाने और उसे पोस्ट करने जैसी सुविधाएं मिलने लगीं। इससे इंटरनेट की मदद से आनलाइन बातचीत करना, फोटो-वीडियो एकदूसरे से साझा करना और ट्रेन-विमान में सीटों का आरक्षण करना संभव होने लगा। साथ ही, फेसबुक और प्रकारांतर से ट्विटर जैसे इंटरनेट मीडिया के मंच और आनलाइन शापिंग-गेमिंग, वीडियो शेयरिंग जैसी हजारों सुविधाएं मिलने लगीं। यह इंटरनेट की दूसरी पीढ़ी यानी 'वेब 2.0Ó कहलाई।
वेब 3.0 का दौर : इसमें कोई संदेह नहीं है कि वर्ष 2000 से अब तक के करीब दो दशकों में इंटरनेट ने बहुत ज्यादा विकास कर लिया है। इतना कि इसमें अब किसी नई चीज (तकनीक) को जोड़े जाने की गुंजाइश बहुत ही कम नजर आती है। साथ ही, इस तकनीक से बाहर की दुनिया में यह भी कहा जाने लगा है कि अब शायद ही इंटरनेट में तकनीकी रूप से कुछ नया जोड़ा या किया जा सके। यानी अब इंटरनेट की दुनिया में जो कुछ भी परिवर्तन होगा, वह बनी-बनाई लकीर पीटने से ज्यादा कुछ नहीं होगा। लेकिन नवाचार करने वाले तकनीक के महारथी शायद इससे अलग सोचते हैं। ये लोग पिछले कुछ अरसे से कहने लगे हैं कि वक्त आ गया है कि इंटरनेट पर बड़ी कंपनियों के एकाधिकार को चुनौती दी जाए। इंटरनेट के दुरुपयोग को रोका जाए, निजी जानकारियों में घुसपैठ पर अंकुश लगे और इंटरनेट को एक स्वतंत्र व्यवस्था में तब्दील किया जाए। एक प्रकार से यह इंटरनेट का नया चेहरा होगा, जिसे 'वेब 3.0Ó कहा जा रहा है। पर यहां सवाल यह है कि 'वेब 3.0Ó में आखिर क्या बदलाव हो सकते हैं और क्या वास्तव में उनकी आवश्यकता है।
विकेंद्रीकरण : वेब 3.0 में बड़े परिवर्तनों की एक झलक फेसबुक ने कुछ ही समय पहले मेटावर्स की शुरुआत के साथ दी है। मेटावर्स मोटे तौर पर ऐसी व्यवस्था सामने लाने का प्रयास है, जिसमें आप एक आभासी (वर्चुअल) दुनिया में प्रवेश कर सकते हैं। लेकिन इसके लिए आपको भौतिक रूप से (फिजिकली) उपस्थित रहने की आवश्यकता नहीं है, बल्कि आभासी रूप से किसी कार्यक्रम का हिस्सा बना जा सकता है। इसके अलावा, ब्लाकचेन तकनीक के इस्तेमाल से इंटरनेट की दुनिया के विकेंद्रीकरण की वकालत भी 'वेब 3.0Ó के दौर में की जा रही है। विकेंद्रीकरण की प्रक्रिया को इससे समझा जा सकता है कि आगे चलकर इंटरनेट को फेसबुक या गूगल जैसी बड़ी कंपनियों की बजाय आम लोग चलाएंगे। इससे उपयोग करने वाले के डाटा पर उनका मालिकाना हक बढ़ जाएगा।
इस संबंध में उल्लेखनीय यह है कि इंस्टाग्राम और फेसबुक के मालिकाना हक वाली कंपनी मेटा ने हाल ही में 'वेब 3.0Ó साफ्टवेयर के लिए कई ट्रेडमार्क के आवेदन किए हैं। साथ ही, स्पाटिफाइ नामक कंपनी ने कहा है कि वह वेब 3.0 के विशेषज्ञों की सेवा लेना चाहती है। उधर, माइक्रोसाफ्ट ने भी वेब 3.0 पर आधारित स्टार्टअप का समर्थन किया है।
कम नहीं हैं राह में बाधाएं : भले ही वेब 3.0 को एक क्रांतिकारी विचार बताया जा रहा है, परंतु इंटरनेट की इस तीसरी लहर की उठान इतनी आसान भी नहीं है। पहली मुश्किल तो इसमें लगने वाले व्यापक धन की है। अगर बड़ी कंपनियों के लिए इसमें जगह नहीं होगी, तो सवाल है कि इस लहर की सवारी करने में लगने वाला पैसा खर्च कौन करेगा। इस संबंध में जानकारों का मानना है कि जिस उद्देश्य से वेब 3.0 की शुरुआत की जा रही है, उसमें तकनीक से जुड़ी बड़ी कंपनियों के निवेश पर कोई प्रतिफल नहीं मिलने की समस्या के चलते इसके उद्देश्यों को पाना मुश्किल हो सकता है।
इसके अलावा इंटरनेट के विकेंद्रीकरण के साथ समस्या यह है कि जिन एप्लिकेशंस को इस पीढ़ी के इंटरनेट के लिए विकसित किया जा रहा है, वे इस्तेमाल में कठिन हैं। इससे नए लोग इंटरनेट के साथ तालमेल बिठाने में असहजता महसूस कर सकते हैं। फिर भी यह कहा जा सकता है कि तकनीक के अब तक हुए विकास ने साबित किया है कि नएपन के रास्ते में आने वाली अड़चनों का देर-सबेर कोई न कोई समाधान मिल जाता है और तकनीक अपना रास्ता बना लेती है। ऐसे में इंटरनेट के जिस वेब 3.0 संस्करण की बात अभी उठी है, संभव है कि जल्द ही हमें उसे अपने सामने साकार होते हुए देख रहे होंगे।
इंटरनेट का क्रमिक विकास और भविष्य % इंटरनेट को जब हम वेब 1.0, वेब 2.0 और वेब 3.0 में बांटते हैं, तो सवाल पैदा होता है कि ये पीढिय़ां आखिर एक दूसरे से कितनी अलग हैं। वर्ष 1989 से आरंभ हुए वेब 1.0 को इस तरह समझा जा सकता है कि उस समय इंटरनेट की दुनिया में बहुत थोड़े लोग ही थे, जो इसके लिए कंटेंट जुटाने का काम करते थे। यानी उस समय कंटेंट जेनरेटर की भूमिका में बहुत ही सीमित लोग थे। जो शेष लोग इंटरनेट के जानकार थे, वे केवल उसके उपभोक्ता की शक्ल में थे यानी ऐसे लोग अपनी ओर से कुछ नहीं जोड़ते थे। उस पीढ़ी के इंटरनेट में वेब सर्फिंग जैसी चीज नहीं होती थी और वेबसाइटों के स्थिर पेज दिखाई देते थे। वेब 1.0 में सूचनाओं का प्राय: एकतरफा प्रवाह होता था। वर्ष 2000 के आसपास जिस दूसरी पीढ़ी के इंटरनेट यानी वेब 2.0 का विकास हुआ, उसमें उपयोगकर्ताओं द्वारा साझा की जाने वाली सूचनाओं, कंटेंट, फोटो, वीडियो यानी डाटा ने इंटरनेट को नित नई जानकारियों से भर दिया।
वेब 2.0 एक मायने में सोशल वेब था, जहां कंपनियों से लेकर आम उपयोगकर्ताओं के बीच सूचनाओं का प्रवाह तत्काल होने लगा। इंटरनेट मीडिया का अभ्युदय इसी पीढ़ी के इंटरनेट के दौर में हुआ। निश्चित तौर पर यह वेब 1.0 की नींव पर कायम हुआ इंटरनेट था, लेकिन इस दौर में इंटरनेट का जितना विकास हुआ, उसने हर क्षेत्र में असंख्य क्रांतिकारी बदलाव ला दिए। आनलाइन बातचीत, पढ़ाई, वीडियो की साझेदारी, आनलाइन शापिंग जैसे तमाम दायरे पैदा कर दिए, जिनका कोई ओरछोर नजर नहीं आता है। यह एक तरह से इंटरनेट का विकेंद्रीकरण ही है, लेकिन इसमें चूंकि ज्यादा फायदा गूगल, फेसबुक, अमेजन जैसी बड़ी कंपनियों का है, इसलिए वेब 3.0 के रूप में अब फिर से इंटरनेट के विकेंद्रीकरण की बात उठ रही है। ऐसे में अब देखना यह होगा कि इंटरनेट की दुनिया किस ओर आगे बढ़ती है। साथ ही, एक दिलचस्प पहलू जिस पर सभी की नजर रहेगी, वह यह कि आने वाले समय में इसका रेवेन्यू माडल किस प्रकार का होगा, ताकि अधिक से अधिक कंपनियों और सहभागियों के लिए इसे आकर्षक बनाया जा सके।
Rani Sahu

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