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तो क्या प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी (Prime Minister Narendra modi) अपने मंत्रिमंडल का विस्तार और फेरबदल करने वाले हैं?
जनता से रिश्ता वेबडेस्क | तो क्या प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी (Prime Minister Narendra modi) अपने मंत्रिमंडल का विस्तार और फेरबदल करने वाले हैं? राजनीतिक गलियारों में चल रही चर्चा को अगर सही माने तो लगता है जल्द ही ऐसा होने वाला है. जिस तरह पिछले कुछ दिनों से मोदी भारतीय जनता पार्टी (BJP) और अपनी सरकार के मंत्रियों से लगातार मिल रहे हैं, माना यही जा रहा है कि मौजूदा मंत्रियों के प्रदर्शन की इन दिनों समीक्षा चल रही है. जहां कुछ मंत्रियों की छुट्टी हो सकती है, कुछ नए चेहरों को केन्द्रीय मंत्रिमंडल में शामिल किया जा सकता है.
पिछले सात सालों के कार्यकाल में विपक्ष मोदी पर तरह-तरह के आरोप लगाता रहा है, विपक्ष सरकार के फैसलों में कमी निकालता रहा और आलोचना करता रहा, पर मोदी की एक बात के लिए अभी भी आलोचना नहीं हुयी कि वह बार-बार मंत्रिमंडल में फेरबदल करते रहे, जैसा कि पूर्व में अन्य प्रधानमंत्री करते थे या उन्हें वह अधिकार ही नहीं होता था कि वह किसी मंत्री को, चाहे उस पर कितना भी बड़ा भ्रष्टाचार का आरोप हो, उसे मंत्रिमंडल से बाहर का रास्ता दिखा सकते थे. चूंकि बीजेपी 2014 और 2019 के चुनावों में अपने दम पर बहुमत हासिल करने के सफल रही, इसलिए मोदी पर किसी सहयोगी दल का कि किसे मंत्रिमंडल में शामिल करना है और कौनसा मंत्रालय देना है या किसे मंत्रिमंडल से निकालना है का दबाब कभी नहीं रहा.
सात वर्षों में सिर्फ सात बार हुआ मंत्रिमंडल में फेरबदल
सात वर्षों में सिर्फ तीन बार मंत्रिमंडल का विस्तार या फेरबदल करना, अपने आप में एक रिकॉर्ड ही होगा. 2014 से 2019 के बीच मोदी ने सिर्फ तीन बार अपनी मंत्रिमंडल में फेरबदल किया. पहली बार 10 नवम्बर 2014 में मंत्रिमंडल का विस्तार हुआ और 21 नेताओं को सरकार में शामिल किया गया. दूसरी बार 5 जुलाई 2016 को यह पहला अवसर था जब ना सिर्फ 19 नए मंत्रियों को शामिल किया गया, पांच राज्य मंत्री जिसका प्रदर्शन संतोषजनक नहीं था, उन्हें मंत्रिमंडल से बाहर का रास्ता भी दिखाया गया.
तीसरी और आखिरी बार 3 सितम्बर 2017 में मोदी सरकार का विस्तार हुआ जबकि चार राज्य मंत्रियों को प्रमोशन दे कर कैबिनेट मंत्री बनाया गया और नौ नए चेहरों को मंत्री बनाया गया. अगर मोदी का मंत्रियों के बारे में लिए गए फैसले का अध्ययन किया जाए तो यह साफ़ है कि उन्हें ऐसे सहयोगियों की मंत्री के रूप में जरूरत है जो अपना काम मुस्तैदी से कर सकते हैं. जहां जिनका काम-काज संतोषजनक नहीं था उन्हें ड्रॉप भी किया गया, जिनका काम सराहनीय था उन्हें राज्य मंत्री से कैबिनेट मंत्री के रूप में प्रमोशन भी मिला.
केंद्र सरकार में अधिकतम 83 मंत्री हो सकते हैं, पर कभी भी मोदी ने किसी को खुश करने के लिए मंत्रियों की बड़ी जमात खड़ी नहीं की. अभी भी मोदी सरकार में 24 और नए मंत्री शामिल करने की गुंजाइश है, पर लगता नहीं है कि मंत्रिमंडल में भारी भरकम विस्तार होगा. मोदी सरकार में फिलहाल 21 कैबिनेट मंत्री, नौ राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) और 29 राज्य मंत्री हैं.
ज्यादातर बीजेपी के ही सदस्य सरकार में शामिल
पिछले डेढ़ वर्षों में यानि नवम्बर 2019 के बाद से विभिन्न परिस्थितियों में तीन सहयोगी दलों की अब सरकार में भागीदारी नहीं रही. शिवसेना एक एकलौते मंत्री अरविन्द सावंत ने नवम्बर 2019 महाराष्ट्र में सरकार बनाने के ऊपर हुए विवाद के कारण मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया था, सितम्बर 2020 में अकाली दल की एकलौती मंत्री हरसिमरत कौर बादल ने कृषि कानूनों के विरोध में जब अकाली दल ने बीजेपी से नाता तोड़ने का फैसला किया तो मंत्रिमंडल से त्यापत्र दे दिया और अक्टूबर 2020 में लोक जनशक्ति पार्टी के सर्वोच्च नेता रामविलास पासवान का निधन हो गया. वर्तमान में मोदी सरकार में सिर्फ एक ही सहयोगी दल का मंत्री है – रिपब्लिकन पार्टी के नेता रामदास अठावले जो राज्य मंत्री हैं. बांकी सभी बीजेपी के ही सदस्य हैं.
ये तीन नए नाम बन सकते हैं मंत्री
बीजेपी के तीन नेताओं का नाम नए मंत्रिमंडल में शामिल होना लगभग तय है. पिछले साल कांग्रेस पार्टी छोड़ कर बीजेपी में शामिल हुए ज्योतिरादित्य सिंधिया, बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी और असम के पूर्व मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल. सिंधिया ना सिर्फ बीजेपी में शामिल हुए, बल्कि मध्य प्रदेश में उन्होंने बीजेपी को सरकार तोहफ़े में दिया. उनकी बगावत के बाद राज्य में कांग्रेस की सरकार गिर गयी और बीजेपी सत्ता में आयी. कांग्रेस से उनके बगावत के ठीक बाद भारत में कोरोना महामारी का प्रकोप शुरू हो गया और मोदी सरकार का विस्तार और फेरबदल कोरोना के कारण टलता चला गया और सिंधिया को सब्र के साथ इंतज़ार करना पड़ा.
सुशील मोदी को जब पिछले साल हुए बिहार विधानसभा के बाद उपमुख्यमंत्री नहीं बनाया गया तो सभी को आश्चर्य हुआ. बीजेपी बिहार में नए नेताओं को भविष्य के मद्देनजर मौका देना चाहती थी. बताया गया की सुशील मोदी की सेवायें केंद्र में ली जाएंगी. पासवान की मृत्यु के रिक्त हुए स्थान पर सुशील मोदी को राज्यसभा का सदस्य तो चुन लिया गया, पर वह तब से ही केंद्र में मंत्री बनने की कतार में खड़े हैं.
सर्बानंद सोनोवाल की जगह असम में बीजेपी ने हेमंत बिस्वा सरमा को इस बार मुख्यमंत्री बनया और तब से ही यह तय माना जा रहा है कि उन्हें एक बार फिर से केन्द्रीय मंत्रिमंडल में शामिल किया जाएगा. सोनोवाल 2016 में मुख्यमंत्री बनने से पहले मोदी सरकार में मंत्री थे.
NDA के अन्य घटक दलों को मिल सकता है मौका
चूंकि 2024 का लोकसभा चुनाव अब मात्र 34 महीने ही दूर है, उम्मीद की जा रही है कि मोदी सरकार में एनडीए के अन्य घटक दलों को प्रतिनिधित्व मिल सकता है, इसमें सबसे बड़ा हिस्सा जनता दल (यूनाइटेड) का होगा. जेडीयू बीजेपी के बाद एनडीए में दूसरी सबसे बड़ी पार्टी है. 2019 में पार्टी ने सरकार में शामिल होने से मना कर दिया था. पर लगता है कि जेडीयू के दो से तीन सांसदों को इस बार केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल किया जा सकता है. जेडीयू के नेता हरिवंश नारायण सिंह राज्यसभा के उपसभापति हैं.
वैसे तो एनडीए में 28 घटक दल हैं, पर बीजेपी के अवाला मात्र आठ दलों के सांसद लोकसभा में हैं और आठ दलों के ही सांसद राज्यसभा में हैं. शिवसेना और अकाली दल एनडीए से अलग हो चुकी है और लोक जनशक्ति पार्टी अब एनडीए का घटक सिर्फ नाममात्र के लिए ही है. लोकसभा में छः सांसदों के साथ लोक जनशक्ति पार्टी कागजों में अभी भी एनडीए की तीसरी सबसे बड़ी पार्टी है. पर जिस तरफ से रामविलास पासवान की मृत्यु के बाद चिराग पासवान ने बिहार विधानसभा चुनाव के एनडीए से अलग हो कर चुनाव लड़ने का फैसला किया और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की आलोचना करते रहे, चिराग ने ना सिर्फ अपने लिए बल्कि अपनी पार्टी के लिए भी केंद्र में सभी दरवाज़े बंद कर लिए. शायद पिता की जगह चिराग को केन्द्रीय मंत्रिमंडल में स्थान मिल भी जाता पर नीतीश कुमार और उनकी जेडीयू अब ऐसा होने नहीं देगी.
संसद के दोनों सदनों को मिला कर AIADMK के सिवाय किसी भी एनडीए घटक का दो से अधिक सांसद नहीं है. जेडीयू की तरह ही AIADMK ने भी 2019 में सरकार में शामिल होने से मना कर दिया था, पर अब तमिलनाडु के चुनाव हारने के बाद AIADMK केंद्र की सरकार में शामिल होने की इच्छा जाहिर कर रही है. उत्तर प्रदेश विधानसभा के मद्देनजर अपना दल की नेत्री अनुप्रिया पटेल जो 2014 से 2019 के बीच केंद्रीय मंत्री थी, को एक बार फिर से मंत्री बनाया जा सकता है. नेशनल पीपुल्स पार्टी के तरफ से अगाथा संगमा का नाम और मिज़ो नेशनल फ्रंट के दो में से कोई एक सदस्य मंत्री बन सकता है. सम्भावना यही है कि कुछ मंत्रियों की छुट्टी हो सकती है और कुछ अन्य की पदोन्नति.
माना जा रहा है कि सरकार के सुचारू रूप से चलने के लिए और मंत्रियों की सख्त जरूरत है. वर्तमान में जो 59 मंत्री हैं उनके पास काम का बोझ काफी अधिक है, जिसे दूर करने का प्रयास किया जाएगा. और हमेशा की तरह कुछ केन्द्रीय मंत्रियों को पार्टी में भेजा जाएगा और कुछ बीजेपी के पदाधिकारी मंत्री बन सकते हैं. साथ ही जिन पांच राज्यों में अगले वर्ष के शुरूआती महीनों में विधानसभा चुनाव होने वाला हैं, वहां से भी कुछ और नेताओं को मंत्रिमंडल में शामिल किया जा सकता है.
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