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- भारत से हजारों...
डा. सुरजीत सिंह।
रूस-यूक्रेन की लड़ाई का गहरा प्रभाव वैश्विक अर्थव्यवस्था पर पड़ रहा है। यह ऐसे समय हो रहा है, जब कोविड महामारी के कारण विश्व की अर्थव्यवस्थाएं कीमतों को स्थिर करने और आपूर्ति शृंखला को फिर से स्थापित करने का प्रयास कर रही थीं, लेकिन यूक्रेन युद्ध ने उनके संभावित समाधानों को और अधिक कठिन बना दिया है। अन्य देशों के साथ भारत के लिए भी अमेरिका-यूरोप और रूस के बीच आर्थिक संतुलन को बनाए रखना किसी चुनौती से कम नहीं है। यह युद्ध भले ही भारत से हजारों किमी दूर लड़ा जा रहा हो, परंतु उसका असर भारतीय अर्थव्यवस्था पर दिखाई देने लगा है। यूक्रेन पर हमले की प्रतिक्रिया स्वरूप अमेरिका और पश्चिमी देशों द्वारा आर्थिक प्रतिबंधों के साथ-साथ रूस के बैंकों पर स्विफ्ट पेमेंट सिस्टम का उपयोग करने पर रोक लगा दी गई है। यह भी भारत समेत अन्य देशों के लिए परेशानी का कारण बन सकता है।
रूस विश्व का लगभग 13 प्रतिशत पेट्रोलियम और 17 प्रतिशत प्राकृतिक गैस का उत्पादन करता है। प्रतिबंधों के कारण आपूर्ति बाधित होने से अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतें लगातार बढ़ती ही जा रही हैैं। भारत अपनी आवश्यकता का 85 प्रतिशत कच्चा तेल आयात करता है। कच्चे तेल की कीमतों के बढऩे से भारत को अब अधिक डालर का भुगतान करना पड़ेगा, जिससे डालर अधिक मजबूत और रुपया कमजोर होगा। रुपये के कमजोर होने से भारत के आयात महंगे हो जाएंगे, जिससे महंगाई बढ़ेगी। इस प्रकार की महंगाई को आयातित महंगाई कहते हैैं। भारत के चालू खाते का घाटा बढ़ जाएगा, जो भुगतान संतुलन को भी गड़बड़ा देगा। पेट्रोल, डीजल और एलपीजी की कीमतों में वृद्धि से और सब्सिडी के कम होने से राजकोषीय घाटा बढ़ जाएगा। कच्चे तेल और गैस के अलावा कुछ अन्य वस्तुएं भी महंगी हो जाएंगी। विमानन टरबाइन ईंधन की लागत 19 प्रतिशत बढऩे से विमान किराये में भी लगभग 30 से 35 प्रतिशत तक की वृद्धि होने के आसार हैैं।