सम्पादकीय

अवसाद और जड़ता के लाइलाज मर्ज की शिकार होती कांग्रेस का भविष्य क्या होगा!

Gulabi Jagat
15 April 2022 11:05 AM GMT
अवसाद और जड़ता के लाइलाज मर्ज की शिकार होती कांग्रेस का भविष्य क्या होगा!
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देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस संकट,त्रासदी और संवाद के गहरे अवसाद को तोड़ने में पूरी तरह अक्षम साबित हो रही है
Faisal Anurag
देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस संकट,त्रासदी और संवाद के गहरे अवसाद को तोड़ने में पूरी तरह अक्षम साबित हो रही है. कांग्रेस राजनीति में हवा के ताजा झोंके की तरह गुजरात में हार्दिक पटेल का स्वागत किया गया था. इस साल के अंत तक गुजरात में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं और हार्दिक पटेल के असंतोष से जाहिर है, उनकी पार्टी से विदाई तय है. हार्दिक पटेल में केंद्रीय और राज्य नेतृत्व पर गंभीर आरोप लगाए हैं. उन आरोपों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. हार्दिक पटेल को गुजरात कांग्रेस का कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया, लेकिन पटेल कह रहे हैं कि न तो उन्हें बैठकों में बुलाया जाता है और न ही किसी फैसले की प्रक्रिया में शामिल किया जाता है.
हार्दिक पटेल अकेले नहीं हैं, जिनकी यह पीड़ा है. देश के कई राज्यों के नेताओं ने इसी तरह के आरोप लगाए हैं. कांग्रेस एक ऐसे दौर से गुजर रही है, जिसमें न तो विकल्प बनने की छटपटाहट दिखती है और न ही वह अपने नेताओं को बांध कर रखने के किसी कार्यक्रम का संकल्प है. राहुल गांधी के ट्वीट की राजनीति पार्टी के लिए नाकाफी साबित हो रही है. प्रियंका गांधी ने बेहतर संघर्ष जरूर किया, लेकिन उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की बुरी हार हुई. यहां तक कि वोट प्रतिशत में भी भारी गिरावट दर्ज की गयी. इससे सबक लेने की जरूरत है. सिर्फ कार्यकर्ता बनाना या उनके प्रशिक्षण के दावे ही पर्याप्त नहीं है.
हालांकि कांग्रेस का अंतिम शोक गीत पढ़ना उसके इतिहास,विरासत और जरूरत के प्रति अन्याय होगा. लेकिन राजस्थान,मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और हिमाचल प्रदेश जैसे राज्य जहां इस साल के अंत या अगले साल की शुरूआत में चुनाव होंगे, वहां पार्टी भीतर से बुरी तरह बिखरी हुई है. न तो कोई उर्जा नजर आती है और न ही राज्य केंद्रीय नेतृत्व आंतरिक विवादों को जल्द सुलझाता दिख रहा है. ऐसा लगता है कि सब कुछ भाग्य भरोसे छोड़ दिया गया है. राज्यसभा में विदाई भाषण देते हुए आनंद शर्मा ने ठीक ही कहा है कि लोकतंत्र के लिए सत्तपक्ष और विपक्ष दो पहिए हैं और दोनों का सशक्त होना जरूरी है.
कांग्रेस का राष्ट्रव्यापी ढांचा जरूर है, लेकिन वह भग्नावशेष में बदल रहा है. उत्तर प्रदेश में दो लाख सदस्य बनाने और उन्हें प्रशिक्षित करने का दावा किया गया, लेकिन चुनाव में नए सदस्य दिखे ही नहीं. कांग्रेस एक ऐसी पार्टी बन कर रह गयी है, जिसमें किसी सामंतकालीन ढांचे के अवशेष देखे जा सकते हैं. यही कारण है कि नए लोगों के बीच आकर्षण वह पैदा नहीं कर पा रही है और अपने वरीय नेताओं से बेहतर संवाद के सहारे असंतोष को दूर नहीं कर पा रही है.
यदि हार्दिक पटेल कांग्रेस छोड़ते हैं, तो नयी पीढ़ी को नकारात्मक संदेश ही जाएगा. 2016 में चार नेता राजनैतिक चर्चा के केंद्र में थे. इनमें हार्दिक पटेल, अल्पेश ठाकोर और जिग्नेश मेवानी गुजरात से ही हैं. एक अन्य कन्हैया कुमार बिहार से. अल्पेश कांग्रेस को छोड़ भाजपा का हिस्सा बन चुके हैं. हार्दिक के आम आदमी पार्टी में जाने की चर्चा है. कन्हैया कांग्रेस में हैं, लेकिन हाशिए पर और जिग्नेश कांग्रेस के दरवाजे पर दस्तक तो देते हैं, लेकिन प्रवेश करने से हिचक रहे हैं. 2017 के गुजरात विधानसभा में इन चारों नेताओं की बड़ी भूमिका थी. लेकिन पांच सालों में गुजरात का परिवेश बदल गया है.
बार-बार हारने के बावजूद ऐसा नहीं लगता कि कांग्रेस के पास भविष्य के चुनावों को लेकर कोई कार्ययोजना है. नरेंद्र मोदी ने भारतीय राजनीति के विमर्श,वोट समीकरण और तेवर को पूरी तरह बदल दिया है. पुराने तरीके से न तो मोदी की रणनीति का मुकाबला किया जा सकता है और न ही पुराने नैरेटिव वोटरों को आकर्षित कर सकते हैं.
समकाल के गहरे राजनैतिक संकट दौर में ऐसे विपक्ष की जरूरत है, जो मोदी की भाजपा के मुकाबले ज्यादा वैचारिक, वैकल्पिक और समाज के तानेबाने को जोड़ने की नयी उर्जा से लैस हो. ममता बनर्जी ने बंगाली राष्ट्रवाद का तूफान खड़ा कर मोदी के हिंदुत्व राष्ट्रवाद को चुनौती दिया और कामयाबी हासिल की. लेकिन देश के स्तर पर यह पर्याप्त नहीं है.
दक्षिण के राज्यों में भाजपा विरोधी दलों की कामयाबी के पीछे एक समानांतर दक्षिण संवाद भी है, जो हिंदी पट्टी के राष्ट्रवाद की तुलना में ज्यादा कारगर साबित हो रही है. कांग्रेस की चुनौती यह है कि उसके पास न तो नेहरू जैसा विजनरी संकल्प और विचार की उर्जा शेष है और न ही इंदिरा गांधी की तरह सशक्त नेतृत्व. वर्तमान नेतृत्व भले लोगों का एक ऐसा समूह है, जो फ्रंटफुट पर खेलने का इरादा रखतो हो, लेकिन उसकी टीम में ऐसे लोग कम हैं, जो विचारों की उर्जा से लैस हो लोगों से जीवंत संवाद बना सकें. ऐसे हालात में नए उभरे नेताओं के पलायन की प्रवृति तेज होगी तो संकट लाइलाज हो जाएगा. कांग्रेस का मजबूत होना लोकतंत्र की जरूरत है, लेकिन यह तो सशक्त नेतृत्व की ही जिम्मेदारी है.
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