सम्पादकीय

जातीय जनगणना की राजनीति का जोर बिहार में क्या गुल खिलाएगा?

Rani Sahu
6 Aug 2021 3:27 PM GMT
जातीय जनगणना की राजनीति का जोर बिहार में क्या गुल खिलाएगा?
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बिहार (Bihar) में जातीय जनगणना (Caste Census) को लेकर राजनीति जोरों पर है

पंकज कुमार। बिहार (Bihar) में जातीय जनगणना (Caste Census) को लेकर राजनीति जोरों पर है. आरजेडी और जेडीयू (RJD And JDU) दोनों इस मुद्दे पर माइलेज लेना चाहती हैं. इस मसले पर आरजेडी ने अब बड़ा दांव चला है. मंडल दिवस के दिन जाति आधारित जनगणना के मुद्दे पर आरजेडी 7 अगस्त को राज्य में प्रदर्शन करेगी. दरअसल, पूर्व प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह ने 7 अगस्त 1990 को मंडल कमीशन की सिफारिशें लागू करने की घोषणा की थी. इसके तहत पूरे देश में पिछड़ों को 27 प्रतिशत आरक्षण देने का फैसला हुआ था.

उस दौर में लालू प्रसाद यादव, मुलायम सिंह यादव, शरद यादव सरीखे नेताओं ने इस मुद्दे को भुनाकर सत्ता के शिखर पर पहुंचने में खुद को कामयाब बनाया था. ज़ाहिर है तेजस्वी अपने पिता की तर्ज पर उसी राजनीति को चमकाने की फिराक में हैं और सियासी पिच पर अपने तथाकथित चाचा नीतीश कुमार (Nitish Kumar) को पटखनी देना चाहते हैं. योजना के मुताबिक आरजेडी 7 अगस्त को जिला मुख्यालयों पर प्रदर्शन के बाद जिलाधिकारी के माध्यम से पीएम नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) को ज्ञापन सौंपेंगे. लेकिन सवाल यही है कि सीएम नीतीश कुमार के कहने के बाद कि बिहार का प्रतिनिधि मंडल पीएम मोदी से इस मुद्दे पर मुलाकात करेगा.. फिर तेजस्वी सड़क पर उतरने को क्यों बेताब हैं?
ओबीसी की राजनीति पर जेडीयू भला पीछे कैसे रह सकती है?
जेडीयू दिल्ली में हुई बैठक में प्रस्ताव पास कर जातीय जनगणना को आवश्यक करार दे चुकी है. सीएम नीतीश कुमार पीएम को पत्र लिखकर मिलने का समय भी मांग चुके हैं. दरअसल जेडीयू मानती है कि मंडल कमीशन की रिपोर्ट के बाद जाति आधारित आंकड़े नहीं होने की वजह से समस्याओं से जूझना पड़ा था. इसलिए जेडीयू चाहती है कि जनगणना में जातियों के आंकड़े सामने आने चाहिए इससे समाज का भला होगा. सीएम नीतीश कुमार केंद्र सरकार से इस मामले पर पुनर्विचार करने का अनुरोध कर चुके हैं और इस मुहिम में एनडीए की घटक दल हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा भी जातीय जनगणना का समर्थन कर चुकी है.
लेकिन आरजेडी इस मुद्दे को आक्रमक तरीके से उठा रही है. दरअसल लालू प्रसाद यादव, 6 लाख परिवारों के भीख मांगने का हवाला देते हुए जातीय जनगणना का विरोध करने वालों को आड़े हाथों लेते हैं. आरजेडी बीजेपी और जेडीयू को इस मुद्दे पर घेरना चाहती है. आरजेडी चाहती है जेडीयू जातीय जनगणना के मुद्दे पर मुखर हो और एनडीए में इसको लेकर गतिरोध हो. ज़ाहिर है बीजेपी नेता और केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय के बयान के बाद कि केंद्र सरकार जातीय जनगणना नहीं करवाएगी, आरजेडी ओबीसी राजनीति को चमकाने में जुट गई है.
लालू प्रसाद यादव अब बीजेपी के साथ-साथ नीतीश कुमार की राजनीति को भी जातीय जनगणना के नाम पर कमजोर करना चाहते हैं. इसकी बड़ी वजह यादव समाज के अलावा अन्य जातियों को गोलबंद करना है, जो नीतीश कुमार और बीजेपी के पाले में खिसक चुकी हैं.
जेडीयू खेल चुकी है अपना दांव
मोदी सरकार ने मेडिकल कोटे में पिछड़े वर्ग को 27 प्रतिशत आरक्षण देने का ऐलान किया है तब से आरजेडी के साथ-साथ जेडीयू भी बेचैन होने लगी है. ओबीसी का बड़ा वर्ग बीजेपी की तरफ शिफ्ट कर चुका है, इसलिए जेडीयू अपना स्टैंड साफ कर लालू प्रसाद के हाथ बाजी लगने से पहले ही दांव खेल चुकी है और पीएम को चिट्ठी लिखकर अपने इरादे साफ कर दिए हैं.
बीजेपी नेता भी जाति आधारित आरक्षण की मांग कर चुके हैं
गोपीनाथ मुंडे महाराष्ट्र में ओबीसी के बड़े नेता माने जाते थे. साल 2011 की जनगणना से पहले 2010 में ओबीसी की जनगणना को लेकर संसद में जोरदार आवाज उठाई थी. पिछली सरकार में सरकार ने भी माना था कि ओबीसी पर डेटा नई जनगणना में एकत्रित की जाएगी. वैसे SECC 2011 में जाति आधारित डेटा जुटाने का फ़ैसला यूपीए सरकार द्वारा आरजेडी नेता लालू प्रसाद और सपा नेता मुलायम सिंह के दबाव में ही लिया जा सका था. कांग्रेस विपक्ष में आने के बाद साल 2018 में जाति आधारित डेटा प्रकाशित करने को लेकर मुखर नजर आई थी. लेकिन सत्ता में रहते हुए वो भी इससे बचती हुई नजर आई है.
सत्ता में आते ही पार्टियां जाति आधारित जनगणना के ख़िलाफ़ क्यों हो जाती हैं?
जाति आधारित जनगणना सत्ताधारी दल के लिए काउंटर प्रोडक्टिव हो सकती है. जनगणना में ओबीसी की आबादी कम होने या बढ़ने पर राजनीति के रुख बदल सकते हैं. दरअसल आदिवासियों और दलितों की गिनती में फ़ेरबदल की गुंजाइश कम है क्योंकि वो हर जनगणना में गिन लिए जाते हैं. जातिगत जनगणना में अपर कास्ट और ओबीसी की संख्या घट बढ़ सकती है जो सरकार के लिए नई मुसीबतें खड़ी कर सकती है. राजनीति के जानकार डॉ संजय कुमार कहते हैं कि हाल के दिनों में बीजेपी की राजनीति और नेतृत्व अपर कास्ट से खिसक कर ओबीसी की तरफ बढ़ी है, इसलिए मोदी सरकार ओबीसी के मुद्दे पर अक्सर मुखर नजर आती है. आने वाले दिनों में केंद्र सरकार जातिगत जनगणना पर पहल भी कर सकती है.
राजनीति के जानकार और प्रोफेसर डॉ अमरेन्द्र कुमार कहते हैं जाति आधारित जनगणना राजनीति को जन्म देती है और पार्टियां और एसोसिएशन इस आधार पर बनते रहे हैं. लेकिन मंडल का वो दौर बीत चुका है और ओबीसी केंद्रित कई पार्टियां सत्ता का सुख भोग रही हैं. वैसे साल 1931 के बाद से जातिगत जनगणना नहीं हुई है फिर भी जाति आधारित राजनीति भारतीय राजनीति का अहम हिस्सा रही है.
सवाल लालू प्रसाद के नए दाव का है जो बिहार और यूपी जैसे राज्य में जाति आधारित मुद्दों पर बीजेपी के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकता है.


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