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संयम श्रीवास्तव। 27 मई 1964 हिंदुस्तान (Hindustan) की वह तारीख थी जिस दिन देश ने अपने पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू (Prime Minister Jawaharlal Nehru) को हमेशा के लिए खो दिया था. अचानक हुई उनकी मौत (Death) ने पूरे देश को स्तब्ध कर दिया था. यह उनकी लोकप्रियता ही थी कि पूरे विश्व के अखबारों में उनकी मौत की खबर को कवर किया गया था. न्यूयॉर्क टाइम्स (New York Times) ने पहले पन्ने पर भारतीय प्रधानमंत्री की मौत की खबर को सेकंड लीड बनाया था. दुनिया के दूसरे बड़े अखबारों मे भी जवाहर लाल नेहरू की खबर को प्रमुखता दी गई थी. भारत में तो मातम का माहौल था ही. भारत को आजादी मिले कुछ ही साल हुए थे, ऊपर से 1962 में भारत चीन (China) से युद्ध (War) भी हार चुका था. इन सबके बीच प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू का भारत को यूं छोड़ कर जाना पूरे देश के लिए पीड़ादायक था. हालांकि सोशल मीडिया के जमाने में उनकी मौत को लेकर तमाम तरीके के भ्रम फैलाने की कोशिश होती है, पर उस दौर की तमाम किताबों , नेहरू के मित्रों, समकालीन नेताओं और अधिकारियों की किताबों और संस्मरणों से जो बात सबसे पुख्ता तरीके से निकल कर आती है वो यही है कि उनकी मौत का असली कारण चीन का विश्वासघात था.