सम्पादकीय

देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की मौत की क्या थी असली वजह

Gulabi
26 May 2021 11:49 AM GMT
देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की मौत की क्या थी असली वजह
x
प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू

संयम श्रीवास्तव। 27 मई 1964 हिंदुस्तान (Hindustan) की वह तारीख थी जिस दिन देश ने अपने पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू (Prime Minister Jawaharlal Nehru) को हमेशा के लिए खो दिया था. अचानक हुई उनकी मौत (Death) ने पूरे देश को स्तब्ध कर दिया था. यह उनकी लोकप्रियता ही थी कि पूरे विश्व के अखबारों में उनकी मौत की खबर को कवर किया गया था. न्यूयॉर्क टाइम्स (New York Times) ने पहले पन्ने पर भारतीय प्रधानमंत्री की मौत की खबर को सेकंड लीड बनाया था. दुनिया के दूसरे बड़े अखबारों मे भी जवाहर लाल नेहरू की खबर को प्रमुखता दी गई थी. भारत में तो मातम का माहौल था ही. भारत को आजादी मिले कुछ ही साल हुए थे, ऊपर से 1962 में भारत चीन (China) से युद्ध (War) भी हार चुका था. इन सबके बीच प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू का भारत को यूं छोड़ कर जाना पूरे देश के लिए पीड़ादायक था. हालांकि सोशल मीडिया के जमाने में उनकी मौत को लेकर तमाम तरीके के भ्रम फैलाने की कोशिश होती है, पर उस दौर की तमाम किताबों , नेहरू के मित्रों, समकालीन नेताओं और अधिकारियों की किताबों और संस्मरणों से जो बात सबसे पुख्ता तरीके से निकल कर आती है वो यही है कि उनकी मौत का असली कारण चीन का विश्वासघात था.


सही मायनों में उनकी मौत हार्टअटैक की वजह से हुई थी. लेकिन उसे चीन सो जोड़ कर इस लिए देखा जाता है क्योंकि चीन के भारत पर हमले के बाद से ही उनकी सेहत बिगड़नी शुरू हुई थी. 1962 में जब भारत चीन से युद्ध हारा तो उसके बाद से ही प्रधानमंत्री नेहरू की सेहत गिरने लगी थी. कारण था कि वह इस युद्ध में भारत की हार को सह नहीं पा रहे थे. शायद अंदर ही अंदर नेहरू खुद को इसका जिम्मेदार मानते थे. 20 नवंबर 1962 को तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने देश को संबोधित करते हुए चीन से मिली सैनिक हार को स्वीकार कर लिया था. उन्होंने स्वीकार किया कि वालौंग, सीला और बोमडीला इलाकों में भारतीय सेना की हार हुई. यही नहीं पंडित नेहरू ने संसद में भी उदास मन से कहा था कि "हम आधुनिक दुनिया की सच्चाई से दूर हो गए थे और हम एक बनावटी माहौल में रह रहे थे, जिसे हमने ही तैयार किया था." नेहरू की बातों से साफ जाहिर था कि उन्होंने चीन को समझने में गलती की थी जिसका खमियाजा देश को युद्ध हार कर भुगतना पड़ रहा था.

क्या सच में चीन जिम्मेदार है नेहरू की मौत का?
20 नवंबर 1962 को जब प्रधानमंत्री नेहरू ने चीन के साथ युद्ध में भारत की हार स्वीकार की तो वह अंदर से टूट चुके थे. बीबीसी में छपी एक खबर के अनुसार, जवाहर लाल नेहरू की आधिकारिक आत्मकथा लिखने वाले एस गोपाल उसमें लिखते हैं कि चीज़ें इतनी बुरी तरह ग़लत हुईं कि अगर ऐसा वाक़ई में नहीं होता, तो उन पर यक़ीन करना मुश्किल होता. लेकिन ये ग़लत चीज़ें इतनी हुईं कि भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति एस राधाकृष्णन ने अपनी ही सरकार पर गंभीर आरोप तक लगा दिए. उन्होंने चीन पर आसानी से विश्वास करने और वास्तविकताओं की अनदेखी के लिए सरकार को कठघरे में खड़ा कर दिया. यह सवाल सीधे-सीधे नेहरू पर उठाए गए थे. जिन्हें कहीं ना कहीं नेहरू भी मानते थे.

प्रधानमंत्री नेहरू इसे चीन का विश्वासघात मानते थे, यही वजह थी कि इस सदमें से वह बीमार हो गए और लगभग एक साल उन्होंने ने कश्मीर में बिताया जिससे उनके सेहत में सुधार हो सके. लेकिन ऐसा हुआ नहीं क्योंकि वो अंदर से निराशा और दुख में डूब चुके थे. मई 1964 में वह वापस दिल्ली आए. और 27 मई की सुबह जब वह बाथरूम से लौट कर कमरे में आए तो उन्होंने पीठ दर्द की शिकायत की. जिसके बाद कुछ डॉक्टरों को बुलाया गया. इतने में नेहरू बेहोश हो गए और बेहोशी की हालत में ही उनके प्राण निकल गए. 27 मई 1964 को तकरीबन 2 बजे ये ऐलान किया गया कि भारत के पहले पीएम पंडित जवाहर लाल नेहरू की मौत हार्टअटैक से हो गई है.

जब मुलायम सिंह ने कहा कि नेहरू की मौत चीन के कारण हुई
मुलायम सिंह यादव एक समय में देश के रक्षा मंत्री भी रहे हैं और कुछ ऐसे नेताओं में शामिल हैं जिन्होंने नेहरू का दौर भी देखा है. सैफई स्थित उत्तर प्रदेश ग्रामीण आयुर्विज्ञान एंव अनुसंधान संस्थान के डिपो भवन के लोकार्पण कार्यक्रम में मुलायम सिंह यादव ने इस बात का जिक्र करते हुए कह था कि, 'पंडित नेहरू को कोई बीमारी नहीं थी, बल्कि साल 1962 में चीन ने भारत पर हमला किया था. हमारी सेना ने हथियारों की भारी कमी के बावजूद काफी वीरता दिखाई थी लेकिन इसके बाद भी पंडित नेहरू ज्यादा दिनों तक नहीं जी पाए. उन्हें इस बात का सदमा लगा था कि चीन ने भारत पर हमला कर दिया और इसी वजह से उनकी मौत हुई.'

हमेशा फिट रहे जवाहर लाल नेहरू
जवाहर लाल नेहरू के सुरक्षा अधिकारी रहे केएम रुस्तमजी ने अक किताब लिखा है 'आई वाज़ नेहरूज़ शैडो' यानि मैं नेहरू की परछांई था. इस किताब में रुस्तमजी लिखते हैं कि जब मुझे उनकी सुरक्षा की जिम्मेदारी मिली तब वह 63 साल के थे. लेकिन उन्हें देखकर कोई भी ऐसा नही कह सकता था, क्योंकि वह 33 साल के दिखते थे. वो कभी भी लिफ्ट का इस्तेमाल नहीं करते थे, हमेशा सीढ़ियां चढ़ा करते थे. सीढ़ियां चढ़ने का उनका एक खास तरीका था वह एक बार में दो सीढ़ियां चढ़ते थे.


Next Story