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नई प्रक्रिया के तहत 12वीं की बोर्ड परीक्षाओं की अहमियत को खत्म कर दिया गया है
By NI Editorial
अपेक्षा यह रहती है कि किसी भी क्षेत्र में बुनियादी बदलाव लाने वाला फैसला लेने के पहले सभी स्टेकहोल्डर्स को भरोसे में लिया जाए। लेकिन ऐसा नहीं किया गया है। फैसले को लागू करने में जल्दबाजी बरती गई है। इससे भ्रम का माहौल बना है। स्कूलों में इस कदम को लेकर चिंता उत्पन्न हो गई है।
हालांकि यह फैसला विश्वविद्यालय अनुदान आयोग का है, लेकिन जाहिरा तौर पर यह सरकारी नीति का परिणाम है। फैसला उसी चौंकाने वाले अंदाज में लिया गया है, जैसा वर्तमान सरकार की शैली रही है। नतीजा यह है कि हजारों छात्र पशोपेस में हैँ। ऐसे कई छात्रों का अनुभव मीडिया में आया है, जिनके मुताबिक वे इस बारे में आए नोटिफिकेशन देख कर चौंक गए। नोटिफिकेशन के मुताबिक यूजीसी ने फैसला लिया है कि देश के सभी 45 केंद्रीय विश्वविद्यालयों में अंडरग्रैजुएट दाखिले 12वीं की परीक्षा के अंकों के आधार पर नहीं होंगे। इसकी जगह विश्वविद्यालय संयुक्त प्रवेश परीक्षा (सीयूईटी) आयोजित की जाएगी। दाखिला सिर्फ इस परीक्षा में प्रदर्शन के आधार पर होगा। अभी तक अंडरग्रैजुएट कोर्सों में दाखिले का मूल आधार 12वीं कक्षा की बोर्ड परीक्षाओं के अंक हुआ करते थे। हर साल इन अंकों के आधार पर कॉलेज अपनी अपनी कट ऑफ निर्धारित किया करते थे। अगर कोई कॉलेज इसके बाद आवेदकों में से चुनने के लिए कोई प्रवेश प्ररीक्षा भी आयोजित करना चाहे तो उसे ऐसा करने की छूट थी। लेकिन यह अनिवार्य नहीं था।
नई प्रक्रिया के तहत 12वीं की बोर्ड परीक्षाओं की अहमियत को खत्म कर दिया गया है। 12वीं के अंकों को अंडरग्रैजुएट दाखिलों का आधार बनाने को खत्म करना देश की उच्च शिक्षा व्यवस्था में एक बड़ा बदलाव है। मुमकिन है कि इससे छात्रों को ऊंचे कटऑफ से मुक्ति मिले। लेकिन अपेक्षा यह रहती है कि ऐसा फैसला लेने के पहले सभी स्टेकहोल्डर्स को भरोसे में लिया जाए। ऐसा नहीं किया गया है। फैसले को लागू करने में जल्दबाजी बरती गई है। इससे भ्रम का माहौल बना है। स्कूलों में इस कदम को लेकर चिंता उत्पन्न हो गई है। कई स्कूलों के प्रधानाचार्यों ने शंका व्यक्त की है कि कहीं इस कदम से छात्रों और अभिभावकों में 12वीं की पढ़ाई के प्रति उदासीनता ही ना जन्म ले ले। इस चिंता को निराधार नहीं कहा जा सकता। ये बात ठीक है कि यह कदम नई शिक्षा नीति का हिस्सा है। यह पिछले साल ही लागू हो जाने वाला था, लेकिन कोरोना महामारी के कारण नहीं हो पाया। लेकिन यही असल सवाल है। कोविड-19 के दौरान पिछले दो सालों में पूरी शिक्षा व्यवस्था उथल पुथल हो गई है। ऐसे में नई व्यवस्था के लिए उचित विचार-विमर्श नहीं हो पाया है। बेहतर होता कि ऐसा करने के बाद ही ये सिस्टम लागू किया जाता।
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