सम्पादकीय

बजट और कैसा होता?

Gulabi
3 Feb 2022 5:45 AM GMT
बजट और कैसा होता?
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इस रूप में यह बजट सरकार की पॉलिटकल इकॉनमी को भी और मजबूत करता है
इस रूप में यह बजट सरकार की पॉलिटकल इकॉनमी को भी और मजबूत करता है। मोदी सरकार की पॉलिटिकल इकॉनमी इजारेदार क्रोनी पूंजी और हिंदुत्व के भावनात्मक माहौल पर टिकी हुई है। इसके तहत क्रोनी पूंजीपतियों और हिंदुत्व की राजनीति का एक दूसरे की सफलता में निहित स्वार्थ बन गया है।
बजट सरकार की आम सोच से अलग नहीं होता। इसलिए वर्तमान सरकार के आर्थिक दर्शन और उसकी पॉलिटिकल इकॉनमी से परिचित लोगों के लिए 2022-23 के बजट को देख कर कोई हैरत नहीं होगी। जैसाकि इसी के पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रह्मण्यम कह चुके हैं, नरेंद्र मोदी ने न्यू वेल्फयरिज्म की नीति अपनाई हुई है। इसमें अंतर्निहित हैं कि समाज के जो सफल और समृद्ध तबके हैं, नीतियां और कार्यक्रम उनके हित में बनाए जाएं। चूंकि भारत एक चुनावी लोकतंत्र है, इसलिए बाकी जनता के लिए ऐसी कल्याणकारी नीतियां अपनाई जाएं, जिनमें लोगों को सीधे फायदा मिलता नजर आए। इस नीति में यह भी अंतर्निहित है कि सरकार आर्थिक और सामाजिक पूंजी निर्माण के उन क्षेत्रों से अपने हाथ खींच लेगी, जहां किये जाने वाले निवेश का लाभ दीर्घकाल में मिलता है और जिस लाभ का श्रेय लेना संभव नहीं हो पाता। तो ताजा बजट में ऐसे तमाम ढांचागत विकास की उपेक्षा नजर आती है। दूसरी तरफ डेटा और एनर्जी स्टोरेज बनाने को बुनियादी ढांचे की परिभाषा में शामिल कर दिया गया है, जिसका फौरी लाभ दो बड़े पूंजीपति घरानों को मिलेगा। आगे चल कर इसका लाभ उन्हीं लोगों को मिलेगा, जो डेटा और एनर्जी का उपभोग करने में सक्षम हैं।
यह सिर्फ एक मिसाल है। बाकी पूरे बजट की दिशा भी यही है। इस रूप में यह बजट सरकार की पॉलिटकल इकॉनमी को भी और मजबूत करता है। मोदी सरकार की पॉलिटिकल इकॉनमी इजारेदार (मोनोपॉली) क्रोनी पूंजी और हिंदुत्व के भावनात्मक माहौल पर टिकी हुई है। क्रोनी पूंजीपति अपने मीडिया का इस्तेमाल दूसरे आधार को मजबूत करने यानी हिंदुत्व के उग्र माहौल को बनाए रखने में करते हैँ। साथ ही वे लगातार सरकार की अच्छी छवि समाज पर थोपते हैँ। इससे भाजपा का वोट बैंक अब तक ठोस बना रहा है। ये वोट बैंक मौजूदा सरकार की सत्ता का आधार है। ये सत्ता अपनी नीतियों से जरिए क्रोनी पूंजीपतियों की समृद्धि बढ़ाने वाली नीतियां लागू करती है। इस तरह ये चक्र पूरा हो जाता है। जब तक सत्ता का यह आधार है, कोई बजट इस आर्थिक दिशा से अलग नहीं ले जा सकता। बाकी आंकड़े महज ऐसे विवरण हैं, जिनमें वक्ती जरूरतों के मुताबिक फेरबदल होता रहता है। तो कुल मिला कर अगर इस बजट और इसके पीछे की सोच को एक वाक्य में कहना हो, तो एक कविता की इस पंक्ति का सहारा लिया जा सकता है- तुम (आम जन) राम भजो, हम राज करें।
नया इण्डिया
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