सम्पादकीय

देश ने जो देखा!

Gulabi
30 Nov 2020 4:16 PM GMT
देश ने जो देखा!
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किसानों के दिल्ली आने से रोकने के लिए सरकार ने जो तरीके अपनाए, वो हैरत में डालने वाले हैं।

जनता से रिश्ता वेबडेस्क।किसानों के दिल्ली आने से रोकने के लिए सरकार ने जो तरीके अपनाए, वो हैरत में डालने वाले हैं। ज्यादा हैरत इसलिए हुई क्योंकि ये किसान किसी पार्टी या एक संगठन से जुड़े हुए नहीं थे। इसकी आंदोलन की पहचान विशुद्ध रूप से किसान आंदोलन की है। किसान कथित कृषि सुधार के तीन कानूनों और प्रस्तावित नए बिजली कानून का विरोध कर रहे हैं।

अगर सरकार ने इनकी बात नहीं सुनी, तो क्या उन्हें विरोध जताने का हक नहीं है? क्या देश में लोकतंत्र औपचारिक रूप से खत्म हो चुका है? और फिर जिस तरह के तरीके अपनाए गए, उनका क्या तुक है? इतना ही नहीं, सरकार प्रेरित प्रचार तंत्र ने इन किसानों को खालिस्तानी, नक्सली और विपक्षी साजिश का हिस्सा तक बता दिया। क्या सरकार ऐसा करके देश में घुटन का माहौल नहीं बना रही है?


गौरतलब है कि हरियाणा में अंबाला के पास शंभू बॉर्डर पर किसानों को रोकने के लिए पुलिस ने लोहे के बैरिकेड्स लगाए। इस दौरान पुलिस ने किसानों को पुल पर ही रोकने की कोशिश की। पुलिस ने आंसू गैस के गोले का इस्तेमाल किया। किसानों पर ठंडे पानी की बौछार की। फिर भी किसानों पर इन सब कार्रवाइयों का असर नहीं हुआ।
उन्होंने बैरिकेड्स तोड़ कर नदी में फेंक दिया। कड़ाके की सर्दी के बावजूद पंजाब और हरियाणा के किसान ट्रैक्टर, ट्रॉला अन्य वाहनों पर सवार हो कर दिल्ली चलो नारे के साथ दिल्ली पहुंचने की कोशिश में जुटे रहे। कृषि कानूनों को वापस लिए जाने को लेकर दबाव बनाने के लिए अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति, राष्ट्रीय किसान महासंघ और भारतीय किसान यूनियन के विभिन्न धड़ों ने एक संयुक्त किसान मोर्चा का गठन किया है।
किसान अपने साथ राशन और पानी लेकर चल रहे थे। उनका कहना था कि पुलिस उन्हें जहां रोकेगी वे वहीं धरने पर बैठ जाएंगे। उत्तर प्रदेश, हरियाणा, उत्तराखंड, राजस्थान, केरल और पंजाब के किसान करीब दो महीने से 26 नवंबर यानी संविधान दिवस के दिन विरोध प्रदर्शन की योजना बना रहे थे।
किसान कृषक उपज व्‍यापार और वाणिज्‍य (संवर्धन और सरलीकरण) कानून, 2020, कृषक (सशक्‍तिकरण और संरक्षण) कीमत आश्‍वासन और कृषि सेवा पर करार कानून, 2020 और आवश्यक वस्तु (संशोधन) कानून 2020 का विरोध कर रहे हैं और इन तीनों कानूनों को वापस लेने की मांग कर रहे हैं। सरकार अगर उन्हें दिल्ली आकर अपनी बात कहने देती तो उससे कोई आसमान नहीं टूट जाता। लेकिन देश ने कुछ अलग नजारा ही देखा।


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