सम्पादकीय

यह कैसी एकजुटता

Subhi
4 Dec 2021 2:12 AM GMT
यह कैसी एकजुटता
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बीजेपी के खिलाफ विपक्ष का मोर्चा मजबूत करने की मुहिम पर निकलीं तृणमूल कांग्रेस नेता ममता बनर्जी ने बुधवार को महाराष्ट्र में जो आक्रामक तेवर दिखाए, उससे सत्तारूढ़ पक्ष के बजाय विपक्षी खेमे में ही ज्यादा तिलमिलाहट दिख रही है।

बीजेपी के खिलाफ विपक्ष का मोर्चा मजबूत करने की मुहिम पर निकलीं तृणमूल कांग्रेस नेता ममता बनर्जी ने बुधवार को महाराष्ट्र में जो आक्रामक तेवर दिखाए, उससे सत्तारूढ़ पक्ष के बजाय विपक्षी खेमे में ही ज्यादा तिलमिलाहट दिख रही है। दो दिन की यात्रा पर महाराष्ट्र पहुंचीं ममता ने एक सवाल के जवाब में कहा, 'कैसा यूपीए?, कोई यूपीए नहीं है अब।' कांग्रेस पार्टी और उसके नेतृत्व पर सीधा हमला बोलते हुए वह यहां तक कह गईं कि ज्यादातर समय विदेश में बिताते हुए आप राजनीति नहीं कर सकते। जाहिर है, उनका इशारा राहुल गांधी की तरफ था। बीजेपी यही बात कहते हुए अक्सर राहुल पर निशाना साधती रही है।

बहरहाल, कांग्रेस को लगभग खारिज करते हुए उन्होंने यह भी कहा कि सभी क्षेत्रीय पार्टियां साथ आ जाएं तो बीजेपी को आसानी से हराया जा सकता है। ममता का ताजा बयान उनकी उस आक्रामक नीति का ही हिस्सा है जिसके तहत उनकी पार्टी अब सारे संकोच त्यागकर कांग्रेस के घर सेंध लगाने में जुटी दिख रही है। कुछ दिनों पहले जब कांग्रेस नेता सुष्मिता देव ने तृणमूल जॉइन किया था तो उसे लेकर पार्टी के नेता बचाव की मुद्रा में दिख रहे थे।
ममता के बयान पर दिग्विजय की दो टूक, बोले- कांग्रेस के बिना बीजेपी के खिलाफ गठबंधन संभव नहींतृणमूल नेताओं का कहना था कि इसे कांग्रेस के खिलाफ कदम के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए। लेकिन उसके बाद हाल में कांग्रेस के कई नेता तृणमूल में चले गए और खुद ममता बनर्जी ने बयान दिया कि बीजेपी से लड़ने की इच्छा रखने वाले हर नेता का वह स्वागत करेंगी। साफ है कि पार्टी की रणनीति में यह नया बदलाव है। वैसे हर पार्टी को अपने विस्तार की कोशिश करने और उसके लिए अपना रास्ता चुनने का अधिकार है और जहां तक कांग्रेस के खिलाफ दिए गए तृणमूल चीफ के बयान का सवाल है तो उसका जवाब देना कांग्रेस नेताओं का काम है।
लेकिन अगर सत्तारूढ़ बीजेपी को उखाड़ फेंकने के लिए विपक्ष की ताकत को एकजुट करने के घोषित मकसद के लिहाज से देखा जाए तो इस रणनीति का दूर तक जाना मुश्किल लगता है। आज की गिरी हुई स्थिति में भी कांग्रेस न केवल विपक्ष की सबसे बड़ी पार्टी है बल्कि करीब 20 फीसदी वोट भी उसके पास हैं। ममता के संभावित रुख का अंदाजा एनसीपी को पहले से ही था। शायद इसीलिए एनसीपी के प्रवक्ता ने ममता-पवार मुलाकात के एक दिन पहले ही कहा कि कांग्रेस को छोड़कर विपक्ष की किसी पहल के बारे में नहीं सोचा जा सकता।
बैठक के बाद भी ममता के मुकाबले पवार का रुख संतुलित था। बावजूद इसके, दोनों नेताओं की इस पहल का मर्म यही है कि पहले गैर कांग्रेस, गैर बीजेपी दलों का एक ग्रुप बन जाए, फिर वह ग्रुप कांग्रेस से बारगेन करे। चाहे जितना भी घुमा-फिराकर करें, पर तीसरे मोर्चे की यह काठ की हांडी फिर से चूल्हे पर चढ़ाने की कोशिश मौजूदा हालात में नादानी ही कहलाएगी।


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