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जनता से रिश्ता वेबडेस्क। स्वामी विवेकानन्द ने कहा था कि धर्म के बारे में अंतिम बात कही जा चुकी है। सभी अन्य मनीषियों ने भी धर्म को केवल विभिन्न रूपों में समझाने का ही कार्य किया। किसी ने उसे सुधारने या बदलने की आवश्यकता नहीं बताई।
लेकिन हाल में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आर.एस.एस.) के नेतागण धर्म के बारे में ऐसी बातें बोलते रहे हैं, जो किसी हिन्दू ज्ञानी की बातों में नहीं मिलती। न ही शास्त्र-पुराण से उस की पुष्टि होती है। उदाहरणार्थ, संघ नेताओं के कुछ वक्तव्य देखें।
"भारत के सभी 130 करोड़ लोग हिन्दू हैं।" 2. "कुछ मुट्ठी भर मुसलमान अपने स्वार्थ के लिए हिन्दू-विरोधी हिंसा करते हैं।" 3. "भारतीय मुसलमान हमेशा स्वदेशी थे और हैं। उन पर अकबर से पहले के बादशाहों ने औपनिवेशिक कब्जा किया, जिस से वे अकबर के राज में मुक्त हुए। फिर उन्हें औरंगजेब ने औपनिवेशिक गिरफ्त में लिया। 1850 ई. के बाद उन पर बहावीवाद ने औपनिवेशिक कब्जा किया। उस से देश का विभाजन हुआ। अब उन के विउपनिवेशीकरण की प्रकिया फिर आरंभ हो रही है।"
उक्त बातों की पुष्टि किसी हिन्दू मनीषी की शिक्षाओं से नहीं होती। केवल महात्मा गाँधी में ऐसी बातें मिलती हैं, किन्तु वे कांग्रेस नेता थे, ज्ञानी नहीं। उन की वैसी बातों को श्रीअरविन्द जैसे महान हिन्दू ज्ञानियों ने खंडित किया था। दूसरी ओर, मुसलमानों के बारे में ऊपर कही गई बातें किसी मुस्लिम विद्वान के लेखन, भाषण में भी नहीं मिलतीं। यह गाँधीजी वाला अहंकार है कि वे मुसलमानों के बारे में मुसलमानों से भी अधिक जानते हैं!
पर वे इतिहास के तथ्यों से बेपरवाह एकदम काल्पनिक बाते हैं। जैसे, सभी भारतीय नागरिकों को 'हिन्दू' कहना। पहले तो यह खुद को मुस्लिम या क्रिश्चियन कहने वालों की अवमानना है। दूसरे, यह स्थापित अर्थ को जबरन नया अर्थ देने की बेमलतब कोशिश है। यह 'हिन्दू' शब्द ही बाहरी लोगों की देन है, जिस से उन का आशय ही था भारत के वे लोग जो क्रिश्चियन या मुसलमान नहीं हैं। यही हिन्दू शब्द का प्राथमिंक और आज भी सबसे प्रमाणिक अर्थ है।
क्योंकि हिन्दुओं ने अपने को कभी कोई नाम नहीं दिया। वे धर्म को सनातन कहते थे, बस। सभी उसी का पालन करते थे। उसी को जानते थे। यह तो जब इस्लामी हमले हुए, और बाद में सफलता मिलने पर उन में कुछ विजेता यहीं जमने लगे, तब से भारत में दो तरह के लोग हो गए। धर्मी और विधर्मी/अधर्मी। वे बाहरी लोग खुद को मुहम्मदी कहते थे, जो उन का सटीक नाम था और है। उन्हें 'हिन्दू' कहने से हिन्दू ही भ्रमित होंगे, मुसलमान नहीं जो अपनी पहचान, विश्वास, और मकसद बखूबी जानते हैं।
इसीलिए, जब भी कोई हिन्दू नेता बिना प्रोफेट मुहम्मद का संदर्भ दिए मुसलमानों के बारे में कुछ भी कहता है, तो स्वयं धोखा खाता है! और उस के अनुयायी भटकते हैं। इस्लाम शत-प्रतिशत मुहम्मद पर आधारित है। मुहम्मद ने अपना पूरा मतवाद ही मोमिन-काफिर विभाजन पर बनाया, जिस में काफिरों के साथ सहयोग तो दूर, सहअस्तित्व भी खारिज किया गया था। जिहाद उसी की विधि है, जिस के माध्यम से पूरी धरती अल्लाह और उन के प्रोफेट के लिए जीतने का काम करना है। यही घोषणा मुसलमान सारी दुनिया में, दिन में बीस बार दुहराते हैं। उस के अर्थ पर उन के किसी नेता या संगठन को रत्ती भर शुबहा नहीं है। चाहे आम मुसलमान वह सब पूरी तरह न भी जानें, पर उन्हें अपने दीनी नेताओं के कहे पर चलना है यह सीख उन्हें घुट्टी में मिली हुई है। वे किसी भी गाँधी या वाजपेई की मनुहार से निर्विकार रहेगें, चाहे वे उन्हें आधा राज ही क्यों न दे दें! क्योंकि उन्हें तो पूरी धरती पर कब्जा करना है, जो मुहम्मद का हुक्म था, और जिस की विधि उन्होंने अपने अंतिम दस वर्षों में करके दिखाई थी। मुहम्मद ने साफ-साफ कहा था कि उन्हें अल्लाह ने ''आतंक द्वारा जीत दिलाई'' और ''लड़ाई में लूटा गया माल जायज बताया, जो पहले किसी और के लिए नहीं था।'' (सहीह बुखारी, 1-7-331)
वही विधि पूरे इतिहास में मुहम्मदी अनुयायियों ने विश्वासपूर्वक दुहराई है। इस का उन्हें लगातार लाभ हुआ और हो रहा है। आतंक, अपमान, छल, और अंततः कब्जा। इसी विधि से मदीना से शुरू होकर श्रीनगर और कैराना तक इस्लाम कब्जा करता गया है। लेकिन, काफिर लोग सदियों के ठोस, समरूप इतिहास और खुली घोषणाओं पर ध्यान देने के बजाए अपनी मीठी दलीलों पर खुद मोहित होते रहते हैं। इस में आम काफिरों का कोई दोष नहीं, क्योंकि उन के नेता ही अपने समाज को झूठी बातें पढ़ाते हैं। शुत्र विचारों, गतिविधियों, और संगठनों के बारे में प्रमाणिक शिक्षा के बजाए सुंदर लगने वाले नारों पर भरोसा करने कहते हैं। यही गाँधीजी ने किया था, जिस से लाखों हिन्दुओं की तबाही हुई। वही यूरोप, अमेरिका में भी जिस हद तक हुआ है, उस हद तक जिहादी बढ़ते, जमते रहे हैं।
यह दुनिया का सब से बड़ा आश्चर्य है कि एक सार्वभौमिक मतवाद का उस की लिखित घोषणाओं, और हू-ब-हू तदनुरूप निरंतर आचरण के बावजूद, उस का अध्ययन नहीं किया जाता! उस के बारे में अपनी मनगढंत बातें की जाती है। मानो, शुतुरमुर्ग को खतरा खत्म हो गया। काफिरों की इसी कमजोरी का फायदा उठाकर जिहाद जीतता रहा है। न कि किसी बेहतर साइंस, संख्या, या हथियार के बल पर। बल्कि, प्रायः उसे उस के शिकार ही सारे साधन, अनुदान, संस्थान, सुविधा, और विशेषाधिकार देते चलते हैं। किसलिए? ताकि वह दबंग, झगड़ालू, मानसिकता संतुष्ट हो और उन्हें शान्ति से रहने दे। जबकि ठीक इसी कमजोरी का फायदा उठाकर जिहाद जीतता गया है।
आर.एस.एस. नेता हिंसा को 'कुछ मुसलमानों का स्वार्थी काम' कह कर आम मुसलमानों को खुश करने की कोशिश करते हैं। वे गाँधीजी की तरह अपने सदभाव पर खुद फिदा हैं। बहावीवाद को इस्लाम से अलग अनोखी चीज समझना वही आत्म-मुग्धता है। उन्होंने कभी सीरा, हदीस, या कुरान उलट कर नहीं देखा कि बहावीवाद शुद्ध मुहम्मदवाद के पालन का आग्रह है। न यह देखा कि गैर-बहावी, जैसे अयातुल्ला खुमैनी, या हमास, भी काफिरों के प्रति वही नीति रखते रहे हैं। क्योंकि सभी एक ही मूल स्त्रोत पर आधारित हैं। वह स्त्रोत हैं: मुहम्मद। मुहम्मद को भुलाकर मुसलमानों से बरतना काफिरों द्वारा अपने समुदाय के गले में रस्सी कसते जाना है। गाँधीजी ने ठीक यही भूल की थी।
उसी रास्ते पर संघ-परिवार है। सीताराम गोयल ने दशकों पहले चेतावनी दी थी। पर जैसे टैगोर और श्रीअरविन्द की चेतावनी बहरे गाँधी कानों पर पड़ी, वैसे ही सीताराम जी या राम स्वरूप जैसे मनीषियों की चेतावनी संघ-परिवार के कानों पर रही। इसीलिए, वे राजकोष के करोड़ों रूपए बर्बाद कर हर कहीं विशाल चर्खा और गाँधी-फोटो लगाकर भारत को अंदर से सुरक्षित करने में लगे हैं। पर जिहाद का अध्ययन और शिक्षण करने के लिए उन्हें एक पैसे का इंतजाम करना जरूरी नहीं लगता। तब क्या परिणाम होगा?
हिन्दू शास्त्र कहते हैं: ''धर्म एव हतो हन्ति धर्मो रक्षति रक्षितः। तस्माद्धर्मो न हन्तव्यो मा नो धर्मो हतोऽवधीत्।'' केवल रक्षित किया हुआ धर्म ही रक्षक की रक्षा करता है। इसलिए धर्म का हनन कभी न करो, ताकि मारा हुआ धर्म हमें न मार डाले! गाँधीजी ने यही भूल की। धर्म की रक्षा के बदले अधर्म को चिकनी-चुपड़ी से फुसलाने की कोशिश। यह धर्म का हनन करना था, जिस पर श्रीअरविन्द ने चेतावनी दी थी। पर गाँधीजी अपनी लोकप्रियता और महानता के अहंकार में धर्म को अपना अर्थ देने में लगे रहे। जबकि धर्म पर अंतिम बात कही जा चुकी है! संघ-परिवार के लिए अभी कुछ समय है कि गाँधीवादी भ्रम से निकले, वरना आगे अल्लाह जानता है!