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अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडेन ने फ़ौज को अफगानिस्तान से हटाकर क्या ग़लती की है
जनता से रिश्ता वेबडस्क| सुष्मित सिन्हा | आज बात करेंगे अफ़ग़ानिस्तान (Afghanistan) में तालिबान के हमलों से कई सूबों में ख़राब होते हालात की और पूछेंगे कि क्या अमेरिकी फ़ौज को इस मुल्क से हटा कर राष्ट्रपति जो बाइडेन (President joe biden) ने ग़लती की. सवाल तो यह भी है कि क्या अफ़ग़ानिस्तान के हालत को देखते हुए जो बाइडेन को अपने फैसले पर फिर से सोचने की ज़रुरत है. मंगलवार की रात राजधानी काबुल में अफ़ग़ानिस्तान के कार्यवाहक रक्षा मंत्री बिस्मिल्लाह खान मोहम्मदी (Bismillah Khan Mohammadi) के घर के पास एक कार बम धमाका हुआ. ग़नीमत यह है कि हमले में मंत्री या उनके परिवार में किसी को चोट नहीं आई. रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता, फवाद अमान ने बताया कि हमले के दौरान अफ़ग़ानिस्तान के सुरक्षा बलों ने चार हमलावर मार गिराए.
मंगलवार को ही दक्षिणी अफ़ग़ानिस्तान में स्थित हेलमंद सूबे की राजधानी, लश्कर गाह में अफ़ग़ानिस्तान की सेना के एक कमांडर ने वहां के बाशिंदों से दरख़ास्त की कि अगर उनके रिहायशी इलाके में तालिबान सक्रिय है, तो वे अपने घरों को छोड़ दें और कहीं और पनाह ले लें, ताकि आने वाले दिनों में तालिबान को वहां से खदेड़ने के मिशन में लोगों की जान न जाये. लश्कर गाह समेत देश के सबसे बड़े शहरों पर तालिबान के हमलों में हो रही सिविलियन्स की मौतों पर राष्ट्र संघ और राहत एजेंसियों ने चिंता जताई है.
यूएन की एजेंसियां एक्टिव
राष्ट्रसंघ की एजेंसी UNAMA ने शहरी इलाकों में लड़ाई तुरत बंद करने की अपील करते हुए बताया है कि सोमवार और मंगलवार के बीच लश्करगाह में कम से कम 40 लोग मारे गए और 118 घायल हुए. Human Rights Watch ने भी राष्ट्रसंघ से सहमत रहते हुए कहा है कि जंगी जहाज़ों, रॉकेट्स, और मोर्टार से हो रहे बेकाबू हमलों से लश्करगाह में मौतें हो रही हैं और लोग गंभीर रूप में घायल हो रहे हैं. हेलमंद की राजधानी से मिल रही तस्वीरों और वीडियोज़ में साफ दिख रहा है कि शहर में स्थित यूनिवर्सिटी में आग लगी हुई है. तालिबान का दावा है कि बोस्त यूनिवर्सिटी पर जंगी जहाज़ से हमला किया गया. अफ़ग़ानिस्तान की सरकार ने इस बारे में कुछ नहीं कहा है.
लेकिन अब साफ़ है कि लश्करगाह का सरकारी TV स्टेशन और दो पुलिस ज़िले तालिबान के कब्ज़े में हैं.
ये शहर सभी दिशाओं में जाने वाले सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हाइवेज के मुहाने पर स्थित है. इनमें कंधार और हेरात को जाने वाला हाइवे शामिल है. अफ़ग़ानिस्तान की सरकार के एक अफसर ने माना है कि हेलमंद पर तालिबान का कब्ज़ा पक्का हो सकता है. ध्यान देने वाली बात यह है कि हाल के दिनों में अमेरिका ने लश्करगाह में तालिबान का आगे बढ़ना रोकने के लिए उसके ठिकानों पर जंगी जहाज़ों से हमलों में इज़ाफ़ा किया है. ऐसे अमेरिकी हमले हेरात और कंधार में तालिबान के ठिकानों पर भी हुए हैं.
प्रेसिडेंट बाइ़डेन पर लगेगा आरोप
उधर, एक अमेरिकी रक्षा अधिकारी ने CNN से बातचीत में माना है कि अफ़ग़ानिस्तान में हालात अच्छे नहीं हैं. हेरात में लड़ाई चल रही है और वहां 16 ज़िलों में से 13 पर अब तालिबान का कब्ज़ा है. तालिबान ने ये कब्ज़े जुलाई महीने में हासिल किये. साफ़ है, राष्ट्रपति बाइडेन के अमेरिकी फ़ौज को वापस बुलाने के फैसले के बाद तालिबान का हौसला बुलंद है और अब इस बात का अंदेशा पैदा हो गया है कि वो जल्द ही पूरे मुल्क पर कब्ज़ा कर सकते हैं और इसके साथ ही अफ़ग़ानिस्तान में 20 साल पहले डेमोक्रेसी की जो नींव रखी गयी थी वो पूरी तरह हिल जाएगी. अगर ऐसा होता है तो फिर अफ़ग़ानिस्तान में एक बार फिर तालिबान का सामंती शासन काबिज़ हो जाएगा और औरतों-बच्चियों के हक़ और तरक्की के काम बुरी तरह प्रभावित होंगे.
राष्ट्रपति बाइडेन पर यह आरोप भी लगेगा कि उन्होंने अपने राजनीतिक मक़सद के लिए अफ़ग़ानिस्तान के लोगों को उनके हाल पर छोड़ दिया. अफ़ग़ानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ ग़नी ये साफ़ कर चुके हैं कि उन्हें बाइडेन से ऐसी उम्मीद नहीं थी, और वो ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं. बाइडेन का अफ़ग़ानिस्तान से फ़ौज हटाने का फैसला उनकी विदेश नीति के लिए एक बड़ी विफलता माना जाएगा.
यही नहीं, भारत जैसे देश, जिन्होंने अफ़ग़ानिस्तान की सरकार को अमेरिका के समर्थन के भरोसे ही इस देश के विकास के लिए अरबों डॉलर का निवेश किया, उन्हें अब इस बात कि चिंता सता रही है कि कहीं तालिबान पिछली बार की तरह ही इस बार फिर सड़कों, पुलों, बिल्डिंगों और पावर स्टेशनों को बर्बाद करना न शुरू कर दें. अमेरिका को अब फिर से अपने मित्र देशों से यह कहने में परेशानी आ सकती है कि वे ऐसे किसी देश में विकास के काम में हाथ बटाएं जहां की सुरक्षा व्यवस्था सुनिश्चित न हो.
क्या राष्ट्रपति बाइडेन अपने फैसले पर फिर से विचार कर सकते है?
ऐसा लगता तो नहीं है, क्योंकि वो शुरू से ही अफ़ग़ानिस्तान में अमेरिकी फौजों की लम्बी मौजूदगी के खिलाफ थे. फिर, अमेरिकी जनता भी का भी इस बारे में ऐसा कोई ख़याल नहीं लगता कि अफ़ग़ानिस्तान में डेमोक्रेसी को महफूज़ रखने के लिए अमेरिका वहां साल दर साल अपने फौजी तैनात रखे. जो बाइडेन ने अपना फैसला सुनते हुए कहा था कि अमेरिका अफ़ग़ानिस्तान में अपनी फ़ौज लेकर इस लिए आया था कि उसे अल क़ायदा का खात्मा करना था. हमारा कहना है कि अगर यही वजह थी तो अमेरिका को अभी भी अफ़ग़ानिस्तान में बने रहने की ज़रुरत है क्योंकि खबर है और दिख भी रहा है कि इस मुल्क में अल क़ायदा और ISIS फिर से पूरी तरह सक्रिय हो चुके हैं.