सम्पादकीय

किस स्तर का मानव संसाधन

Gulabi
6 Nov 2021 4:59 AM GMT
किस स्तर का मानव संसाधन
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मानव संसाधन

दिव्याहिमाचल. छात्र करियर के दो संगम पिछले दिनों उभरे तो मालूम हुआ कि एनआईटी हमीरपुर के 330 छात्रों की प्लेसमेंट का रिकार्ड दर्ज हुआ, तो दूसरी ओर केंद्रीय विश्वविद्यालय प्रिंट मीडिया में उज्ज्वल भविष्य दिखाता हुआ इस मुगालते में है कि वर्तमान दौर में पत्रकारिता का व्यावसायिक पहलू किसी मांग में है। शिक्षा में आजीविका खोजता हिमाचल आज ऐसी स्थिति में पहुंच गया है कि तमाम सरकारी शिक्षण संस्थान कोरे कागज बने हुए हैं। एनआईटी हमीरपुर, आईआईटी मंडी और इक्का-दुक्का निजी विश्वविद्यालयों को छोड़कर सरकारी शिक्षा के दरवाजे अब नौकरी के लिए छोटे पड़ गए हैं। एनआईटी की छात्रा सभ्या सूद को मिला 1.09 करोड़ का पैकेज या एक साथ 11 छात्रों का एमजॉन में प्रवेश अगर हमीरपुर का एक संस्थान करवा सकता है, तो बाकी सैकड़ों राज्य स्तरीय शिक्षण संस्थानों का अवमूल्यन क्यों। क्या हमीरपुर तकनीकी विश्वविद्यालय के अस्तित्व में ऐसी खूबी दर्ज होगी या इसके तहत दर्जनों इंजीनियरिंग कालेज उजड़ रहे हैं, तो विचार यह करना होगा कि राज्य में किस स्तर का मानव संसाधन पैदा हो रहा है। ताज्जुब यह कि केंद्रीय विश्वविद्यालय पत्रकारिता के हलक में उपाधियों की खुराक का मुआयना करते हुए यह विश्वास प्रकट कर रहा है कि यूं ही कोई छात्र मीडिया की हर संभावना के काबिल हो जाएगा।


सारे हिमाचल ने अपने कद से कहीं अधिक पत्रकारिता की तालीम उगानी शुरू कर दी है, लेकिन ऐसी शिक्षा के लिए कहीं कोई मार्केट सर्वेक्षण हुआ है क्या। क्या पिछले चंद सालों में पत्रकारिता की डिग्री से इस व्यवसाय को तरक्की मिली या पत्रकार बनने का जज्बा परवान चढ़ा। वही पाठ्यक्रम और उसी के ताने-बाने में जब डिग्रियां छात्रों के चरित्र को न बदल पाएं, तो बड़े परिवर्तन की जरूरत है। विडंबना यह है कि अपने शैशव काल से केंद्रीय विश्वविद्यालय धर्मशाला की यात्रा में शिक्षा के विषय भटक रहे हैं। अब तक के तमाम राष्ट्रीय सेमिनारों के विषय को खंगालें तो मालूम होगा कि यह संस्थान कश्मीर अध्ययन के आईने के सामने खड़ा है। राज्य की तासीर से कहीं अलग विषयों की बपौती में जब शिक्षण संस्थान रूपांतरित होंगे तो इनके उद्देश्य भटक जाएंगे। कभी शिमला विश्वविद्यालय परिसर में प्रवेश करियर की अच्छी प्लेसमेंट की गारंटी होती थी, लेकिन आज वहां पैदा होते प्रोफेशन की परवरिश ही धूमल हो रही है।


ऐसी कोई खबर नहीं आती कि फलां छात्र की किसी बढि़या पैकेज पर नियुक्ति हो गई। प्रदेश में तकनीकी विश्वविद्यालय की नींव पर खड़े इंजीनियरिंग कालेजों की यह औकात नहीं कि अपने छात्रों की प्लेसमेंट करवा पाएं। आश्चर्य तो यह कि बिजनेस स्कूलों की बाढ़ के बीच छात्रों की योग्यता ऐसी बह गई कि उन्हें कोई बिजनेस हाउस पुकारता तक नहीं। कारण छात्रों के बजाय संस्थानों की योग्यता का है और यह इस दृष्टि से भी कि निजी विश्वविद्यालयों के अधिकांश कुलपति ही अगर जांच में अयोग्य हो गए हों, तो फैकल्टी की शर्तें कैसे पूरी होंगी। आखिर हिमाचल पढ़ क्यों रहा और इस तरह क्यों पढ़ रहा जहां शिक्षा महत्त्वहीन और अप्रासंगिक हो रही है। शैक्षणिक स्तर पर आज तक ऐसी कोई बहस नहीं हुई और न ही रोजगार के क्षेत्रों पर आधारित शिक्षा का उन्नयन करने की कोशिश हुई। हिमाचल में शिक्षा को क्षेत्रवाद के सांकल से बांधने की कोशिश हुई और इसके परिणामस्वरूप ढेरों कालेज, इंजीनियरिंग कालेज, मेडिकल कालेज और प्रोफेशनल संस्थान खुल तो गए, लेकिन ये रोजगार की संभावना नहीं खोल पाए। आश्चर्य तो यह कि केंद्रीय विश्वविद्यालय में शिक्षा के बजाय देहरा की आर्थिक तरक्की को मापने की ख्वाहिश कहीं अधिक रही। ऐसे में अब शिक्षा की गुणवत्ता में प्रतिस्पर्धी माहौल बनाना होगा। सरकारी शिक्षण संस्थानों को अपने औचित्य के साथ यह भी नत्थी करना होगा कि वहां केवल औपचारिक शिक्षा या किसी तरह की उपाधि का जन्म नहीं, बल्कि भविष्य की करियर खोज का सपना भी पूरा करना होगा। हमीरपुर के एनआईटी ने फिर से यह साबित किया कि अगर भविष्य का वास्तविक शृंगार करना है, तो शिक्षा का उपार्जन आंतरिक दुरस्ती से होगा और इसके लिए सबसे पहले हिमाचल की शिक्षा नीति को ही सीखना होगा।


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