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भ्रष्टाचार के आरोप में फंसे मुलायम सिंह यादव को यह बात पता था कि बुढ़ापे में जेल जाना कितनी परेशानी का सबब बन सकता है
प्रवीण कुमार.
उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) समेत पांच राज्यों में विधानसभा चुनावों (Assembly Elections) की गहमागहमी के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) ने एक बार फिर एक तीर से कई निशाने साधने की जबरदस्त कोशिश की है. संसद के बजट सत्र में राष्ट्रपति के अभिभाषण प्रस्ताव पर राज्यसभा में अपने संबोधन के दौरान कांग्रेस पर निशाना साधते हुए पीएम मोदी ने एक तरफ यूपी, पंजाब और गोवा के मतदाताओं को साधने की पुरजोर कोशिश की वहीं कांग्रेस नीत पूर्ववर्ती यूपीए सरकारों को कठघरे में खड़ा करते हुए कहा कि वो कौन सा दल है जिसने मुलायम सिंह यादव को सिर्फ इसलिए तंग किया था क्योंकि वो केंद्र की बातों से सहमत नहीं होते थे.
दरअसल, मुलायम सिंह यादव, उनके बेटे प्रतीक यादव और अखिलेश यादव सहित परिवार के कई सदस्यों के खिलाफ साल 2005 में आय से अधिक संपत्ति का मामला दर्ज किया गया था. कहा जाता है कि सोनिया गांधी और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने अन्तरराष्ट्रीय परमाणु करार समझौते को लेकर सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव को ब्लैकमेल किया था. पीएम मोदी का इशारा शायद इसी ओर था. ऐसे में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि कांग्रेस और मुलायम की इस कहानी से यूपी की चुनावी बिसात पर पीएम मोदी ने कौन सी चाल चली है?
मोदी को लेकर मुलायम इतने नर्म क्यों हुए थे?
कहते हैं राजनीति में आशीर्वाद के अपने संदेश होते हैं और शुभकामनाओं के अपने मायने. उस दृश्य को कौन भूल सकता है जब 16वीं लोकसभा के आखिरी सत्र के आखिरी दिन तत्कालीन सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव ने नरेंद्र मोदी सरकार का धन्यवाद ज्ञापन कर सत्ता में उनकी वापसी की शुभकामनाएं दी तो उनके ठीक बगल में बैठीं यूपीए सुप्रीमो सोनिया गांधी आवाक रह गईं थी. तब यह सवाल मीडिया की सुर्खियां बनी थी कि आखिर नरेंद्र मोदी को लेकर मुलायम इतने नर्म क्यों हुए? निश्चित तौर यह मोदी समर्थकों और मोदी विरोधियों दोनों के लिए चौंका देने वाला बयान था. राजनीति की समझ रखने वाले अच्छे से जानते हैं कि पहलवानी से राजनीति में आए मुलायम राजनीति का कोई भी दांव यूं ही नहीं चलते.
भ्रष्टाचार के आरोप में फंसे मुलायम सिंह यादव को यह बात पता था कि बुढ़ापे में जेल जाना कितनी परेशानी का सबब बन सकता है. लालू प्रसाद यादव की तरह कंगाली और बदहाली के राह से राजनीति में आए मुलायम ने भी राजनीति के आसरे अकूत संपत्ति हासिल की. लेकिन जिस तरह से सीबीआई का छाया हमेशा उनका पीछा करती थी, उन्हें पता था का एक भी दांव अगर चूक गए तो लालू वाली दुर्गति से कोई नहीं बचा सकता. लिहाजा वे पुत्र अखिलेश को अक्सर समझाते थे कि चोरी और सीनाजोरी साथ नहीं चलती.
मुलायम इस बात को अच्छी तरह से जानते थे कि जब आप भ्रष्टाचार के चंगुल में फंसे हों तो किस तरह से सरकार के आशीर्वाद की जरूरत होती है. और इसका राज तब खुला जब मुलायम की शुभकामनाओं के अनुरूप मोदी सत्ता की दोबारा से वापसी होती है और 21 मई 2019 को सीबीआई मुलायम सिंह यादव और उनके पुत्र अखिलेश यादव को आय से अधिक संपत्ति के मामले में क्लीन चिट दे देती है. सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा दायर कर जांच एजेंसी कहती है कि उसे दोनों पिता-पुत्र के खिलाफ ऐसे कोई सबूत नहीं मिले हैं जिसके आधार पर उन पर नियमित मुकदमा चलाया जा सके.
क्या था आय से अधिक संपत्ति का पूरा मसला?
साल 2005 की बात है. 2004 में कांग्रेस नीत यूपीए सरकार सत्ता में आई थी. प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह बने थे और सत्ता की कमान थी सोनिया गांधी के पास. 145 सीटें जीतने वाली कांग्रेस की सोनिया गांधी के लिए 36 सीटें जीतकर आने वाली समाजवादी पार्टी काफी अहम थी जिसके मुखिया थे मुलायम सिंह यादव. उस वक्त मुलायम उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री हुआ करते थे. माना जाता है कि 2004 में सत्ता में लौटी कांग्रेस अल्पमत में थी. मुलायम के खिलाफ अकूत अवैध संपत्ति की जानकारी सरकार को थी इसीलिए कांग्रेस उनके पीछे अपने एक वकील कार्यकर्ता विश्वनाथ चतुर्वेदी को लगा दिया था. विश्वनाथ चतुर्वेदी ने 2005 में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर मुलायम सिंह यादव, उनके बेटे अखिलेश यादव व बहू डिंपल यादव और छोटे बेटे प्रतीक यादव के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति का मामला दर्ज करा दिया.
इसमें आरोप था कि मुलायम ने 1999 से 2005 तक उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहते 100 करोड़ से ज्यादा की संपत्ति जुटाई थी. सुप्रीम कोर्ट ने चतुर्वेदी की याचिका पर सुनवाई करते हुए मार्च 2007 में सीबीआई को मामले की जांच करने का निर्देश दिया. अक्टूबर 2007 में सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट के सामने अपनी प्राथमिक रिपोर्ट पेश की जिसमें तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव उनके पुत्र अखिलेश यादव, अखिलेश की पत्नी डिंपल यादव और मुलायम के छोटे पुत्र प्रतीक यादव के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति के होने कि पुष्टि की.
सीबीआई की यही रिपोर्ट अल्पमत में फंसी मनमोहन सरकार के लिए वरदान साबित हुआ. 2007 के बाद से कांग्रेस के साथ मुलायम की गलबहियां शुरू हो गईं. फिर मनमोहन की सरकार को मुलायम वक्त-बेवक्त साथ देकर सीबीआई के रडार से बचते रहे. सीबीआई के पास तमाम सुबूत होने के बावजूद मुलायम के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हो पाई क्योंकि 10 साल तक अल्पमत में रही मनमोहन सरकार को बचाने के लिए मुलायम और उनके महारथी अमर सिंह हमेशा जुगाड़ लगाते रहे.
तो कहीं मोदी भी मुलायम को डरा तो नहीं रहे?
पीएम मोदी ने राज्यसभा में दिए गए संबोधन में जिस तरह से कांग्रेस और मुलायम के संबंधों पर कटाक्ष किया है, सवाल उठने लगे हैं कि कहीं कांग्रेस की तरह पीएम मोदी भी मुलायम को ब्लैकमेल तो नहीं कर रहे है? मुलायम सिंह यादव को डरा तो नहीं रहे हैं? कहीं वह भी मुलायम सिंह यादव को यह जताने की कोशिश तो नहीं कर रहे हैं कि आय से अधिक संपत्ति मामले में मुकदमा तो कांग्रेस राज में दर्ज हुआ था लेकिन क्लीनचिट किसके राज में मिली? असल में यूपी चुनाव 2022 जीतना पीएम मोदी के राजनीतिक अस्तित्व से जुड़ गया है.
यूपी की चुनावी बिसात पर मोदी की भाजपा का मुकाबला सीधे तौर पर समाजवादी पार्टी गठबंधन से है जिसकी कमान मुलायम के बेटे अखिलेश यादव के हाथों में है. ऐसा लगता है, यूपी की जमीनी हकीकत का अंदाजा पीएम मोदी को भी हो गया है जिसमें माना जा रहा है कि सत्ता की चाबी भाजपा के हाथ से खिसक सकती है. ऐसे में बहुत संभव है, पीएम मोदी समाजवादी पार्टी के पितृ पुरूष मुलायम सिंह यादव को सांकेतिक तौर पर यह बताने की कोशिश कर रहे हों कि तब सीबीआई कांग्रेस के पास थी और आज हमारे पास. साथ ही यह भी जताने की कोशिश कि आय से अधिक संपत्ति केस में सीबीआई ने जो क्लीन चिट दी है उसका सम्मान किस तरह से कर सकते हैं, आप तय करें.
(डिस्क्लेमर: लेखक एक वरिष्ठ पत्रकार हैं. आर्टिकल में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं.)
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