सम्पादकीय

आफत की यह कैसी बारिश

Rani Sahu
13 July 2022 6:59 PM GMT
आफत की यह कैसी बारिश
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हिमाचल प्रदेश एक ऐसा नाम जिस नाम में ही प्राकृतिक सौंदर्य व शांति तथा प्रकृति मां की गोद में बसे होने का अहसास होने लग जाता है

हिमाचल प्रदेश एक ऐसा नाम जिस नाम में ही प्राकृतिक सौंदर्य व शांति तथा प्रकृति मां की गोद में बसे होने का अहसास होने लग जाता है। पहाड़ों की खूबसूरती जहां एक तरफ लोगों को आकर्षित करती है, वहीं दूसरी तरफ ये पहाड़ हर साल कई लोगों की जान ले लेते हैं। कई लोग अपने आशियानों से बेघर हो जाते हैं तो किसी को जान से हाथ धोना पड़ता है। यही सच्चाई है। इस बरसात में तो न जाने प्रकृति अपने दोहन का पूरा हिसाब बराबर करने पर आतुर हो चुकी है क्योंकि 2022 की बरसात हिमाचल प्रदेश के लोगों के लिए आफत बनकर बरस रही है। हर साल न जाने कितने लोगों के घर बरसात के समय टूटते हैं। पहाड़ी राज्य होने के साथ हिमाचल प्रदेश को कई तरह के नुकसान झेलने को मिलते हैं जोकि यहां के लोगों व प्रदेश की सुंदरता पर जख्मों की तरह नजर आते हैं। ऐसे जख्म जो बहुत पीड़ादायक हैं। बरसात हर बार होती है, लेकिन इस बार तो अभी ढंग से शुरू ही नहीं हुई कि 'मानो पानी की जगह आफत बरस रही हो' या कहा जा सकता है कि पिछली बरसातों से कोई सीख नहीं ली गई जिसका खामियाजा इस बरसात में भुगतना पड़ रहा है। यह मानसून हिमाचल के लिए आफत बनकर बरस रहा है। दो हफ्तों में ही 116 करोड़ रुपए का नुकसान प्रदेश पीडब्ल्यूडी को हो चुका है। हिमाचल प्रदेश में मानसून सीजन को शुरू हुए अभी आधा महीना भी पूरा नहीं हुआ है, लेकिन नुकसान का आंकड़ा 100 करोड़ पार कर चुका है। मात्र 13 दिनों में हिमाचल प्रदेश के मानसून से 116 करोड़ रुपए का नुकसान हो चुका है। पीडब्ल्यूडी को अकेले 110 करोड़ से ज्यादा के नुकसान का आकलन है। वहीं, प्रदेश में बारिश से 17 सड़कों पर आवाजाही बंद है। साथ ही सात ट्रांसफार्मर और 17 वाटर सप्लाई की स्कीमें भी ठप पड़ी हैं।

हिमाचल प्रदेश में 15 जुलाई के बाद कुछ दिनों तक बारिश का भले ही दौर थम जाएगा, लेकिन जख्म याद दिलवाते रहेंगे। राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण की ओर से जारी रिपोर्ट के अनुसार प्रदेश में मानसून के कारण हुई दुर्घटनाओं में अभी तक 67 लोगों की मौत हो चुकी है। इनमें सबसे ज्यादा मौतें कुल्लू में 16, मंडी में दस, बिलासपुर में तीन, हमीरपुर में 6, कांगड़ा में 2, किन्नौर और लाहुल-स्पीति में 1-1, शिमला में 8, सिरमौर में 5, सोलन और ऊना जिला में 4-4 लोगों की मौत हुई है। वहीं प्रदेश में मानसून के कारण हुई दुर्घटनाओं में घायलों का आंकड़ा 69 पहुंच गया है। कहें तो इस बरसात ने सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं तथा बरसात की जगह आफत नाम धारण कर लिया है। प्रत्येक सुबह समाचारों में एक ही खबर आजकल सुनने व देखने को मिलती है और वो होती है 'यहां बादल फटा और इतना नुकसान'। लोग रात को सोते हैं, लेकिन आफत की बरसात सोचने पर मजबूर कर देती है कि सुबह हो न हो, कहीं घर के साथ ही न बह जाएं। ऐसी स्थिति इस बरसात में आ गई है। चाहे उदाहरण कुल्लू में बादल फटने की घटना का हो या घुमारवीं में, सभी तरफ नदी-नाले अचानक से उफान पर चले जा रहे हैं। इसलिए वर्तमान समय में आवश्यकता है कि प्राकृतिक जल क्षेत्रों नदी, नालों से जितना दूर रहा जाए उतना ही जीवन के लिए लाभदायक है। दूसरी तरफ हिमाचल प्रदेश एक पर्यटन प्रदेश है जहां प्रकृति के सौंदर्य का नजारा लेने के शौक के कारण अन्य प्रदेशों से लोग खुले या खराब मौसम में भी दुर्गम क्षेत्रों में घूमने निकल जाते हैं, लेकिन बरसात के कारण किन्नौर जिला के 'पागल नाला' जैसे कई ऐसे नदी-नाले हिमाचल में हैं जो कभी भी बाढ़ का रूप धारण कर तबाही मचा देते हैं।
इसलिए पर्यटकों को भी इस मौसम में पहाड़ों की ओर रुख करने से परहेज करना चाहिए अन्यथा स्वयं तो मुसीबत में फंसंेगे ही, साथ में प्रशासन को भी रैस्क्यू में लगने का काम बेवजह सौंप जाएंगे। प्रशासन अपना काम तो करेगा ही, लेकिन कुदरत के आगे आखिर किसकी चलती है? वर्तमान मौसम के परिदृश्य में बेवजह सफर से भी बचना चाहिए क्योंकि कोई पता नहीं होता कब कहां से सड़क धंस जाए या पत्थर आपके ऊपर आकर गिर जाए। इसलिए आवश्यक है कि आवश्यक न हो तो अनावश्यक खराब मौसम में सफर से परहेज करना जीवन के लिए लाभप्रद है। आजकल युवा पीढ़ी पहाड़ों पर घूमने के लिए अपने अभिभावकों पर अनावश्यक दबाव भी डालती है। माता-पिता को अपने बच्चों को समझाना चाहिए कि जान है तो जहान है। यह समय घूमने के लिए अनुकूल नहीं है। जान रहेगी तो घूमना-फिरना फिर कभी हो जाएगा। युवा पीढ़ी को भी अपने माता-पिता की बात को समझना चाहिए। वास्तव में अभिभावक नहीं चाहते कि उनके बेटे-बेटियां संकट में पड़ जाएं। इसलिए बरसात में घूमने का कार्यक्रम रद कर देना चाहिए। बरसात के मौसम में हिमाचल में किन्नर कैलाश, मणिमहेश व श्रीखंड जैसी यात्राएं भी होती हैं। इन यात्राओं का संचालन प्रशासन की देखरेख में होता है। बिना पंजीकरण के किसी भी यात्री को यात्रा पर नहीं निकलना चाहिए। इन यात्राओं के मार्ग काफी दुर्गम हैं जहां एक से अनेक खतरे हैं। इतिहास साक्षी है कि ये यात्राएं खतरे से खाली नहीं हैं। लोगों को सोच-विचार करके ही इन यात्राओं पर निकलना चाहिए ताकि किसी अनहोनी से बचा जा सके।
प्रो. मनोज डोगरा
लेखक हमीरपुर से हैं

सोर्स- divyahimachal


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