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पाकिस्तान के हुकमरानों की यह नीति रही है कि जब भी उनकी गद्दी खतरे में पड़ती है
पाकिस्तान के हुकमरानों की यह नीति रही है कि जब भी उनकी गद्दी खतरे में पड़ती है, तब-तब वह कश्मीर का राग अलापना शुरू कर देते हैं। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान भी अपने पूर्ववर्ती हुकमरानों से अलग नहीं हैं। इमरान खान ने भी इस्लामिक सहयोग संगठन के विदेश मंत्रियों की परिषद की बैठक में कश्मीर का मुद्दा उठाया और कहा कि अवैध तरीके से कश्मीर में अनुच्छेद 370 को खत्म किया गया। इमरान ने कश्मीर मुद्दा उठाकर अपनी कुर्सी को बचाने का प्रयास किया है लेकिन लगता नहीं कि इससे उनकी कुर्सी का संकट कम हो जाएगा।
खुद को इस्लाम से जोड़कर देखने वाला पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान वक्त-वक्त पर अपनी असलियत दिखा ही देता है। इस्लामिक सहयोग संगठन की बैठक में चीन को विशेष अतिथि के तौर पर शामिल किए जाने को लेकर पाकिस्तान के राजनीतिक क्षेत्र भी हैरान हैं। इस्लामिक देशों के इस संगठन की किसी भी बैठक में चीन पहली बार शामिल हुआ है। सोचने वाली बात तो यह है कि चीन जो अपने देश में मुसलमानों पर लगातार जुल्म ढा रहा है, उसका इस्लामिक देशों के संगठन से क्या लेना-देना। चीन की तरफ से इस बैठक में विदेश मंत्री वांग यी के शिरकत करने पर इस्लामिक देश भी महसूस कर रहे हैं कि ''हमारे अंगने में चीन का क्या काम है।'' इससे इतना जरूर स्पष्ट हो गया है कि पाकिस्तान इस्लामी देशों की बजाय चीन को ज्यादा तरजीह देता है। चीन के विदेश मंत्री ने भी अपने बयान में कश्मीर का जिक्र किया जो भारत को नागवार गुजरा है। भारत ने इस पर कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए जम्मू-कश्मीर पर दिये गए बयानों को अनावश्यक बताते हुए खारिज कर दिया। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंंदम बगानी ने कहा है कि चीन सहित अन्य देशों को टिप्पणी करने का कोई अधिकार नहीं है। उन्हें भारत के आंतरिक मामलों पर टिप्पणी करने से परहेज करना चाहिए।
चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने कहा था कि कश्मीर पर हमने फिर अपने इस्लामिक मित्रों की बातें सुनीं, चीन भी यही उम्मीद करता है। वांग यी द्वारा कश्मीर का जिक्र करना आश्चर्यजनक है। इस तरह का बयान भारत-चीन संबंधों में तनाव पैदा कर सकता है। पूर्वी लद्दाख में दोनों देशों में दो वर्ष से ज्यादा समय से गतिरोध बना हुआ है और अभी तक वार्ताएं चल रही हैं। हाल ही में दोनों देशों में हुई वार्ता से पहले वांग यी ने सकारात्मक संकेत दिए थे और वह भारत दौरे पर आने के इच्छुक हैं।
रूस के यूक्रेन पर हमले के मुद्दे को भी भारत-चीन रूस एक पाले में दिखाई दिए हैं। वांग यी गुरुवार को अचानक दिल्ली पहुंच गए। चीन का एजैंडा क्या है यह अभी तक स्पष्ट नहीं है। दरअसल चीन सीमा विवाद को लेकर सौदेबाजी के लिए भारत पर दबाव बनाए रखना चाहता है। आमतौर पर चीन कश्मीर पर बयान देने से परहेज करता रहा है और भारत ने भी हमेशा हांगकांग में मानवाधिकारों के उल्लंघन और शिन जियांग प्रांत में ऊईगरों पर चीन के अत्याचारों के मुद्दे पर आलोचना नहीं करता है। वांग यी के कश्मीर संबंधी बयान को लेकर भारत को उसके निहितार्थ समझने होंगे। चीन के विदेश मंत्री ने बयान देकर गलती की है। यहां तक कश्मीर मुद्दे पर इस्लामी देशों का संबंध है बयानबाजी कितनी भी क्यों न हुई हाे सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात समेत कई देशों के विदेश मंत्री खामोशी से बयानबाजी सुनते रहे और जब उनकी बारी आई तो सऊदी अरब ने बड़ी ही सधी हुई प्रतिक्रिया व्यक्त की।
इस्लामी देशों के केवल 24 विदेश मत्रियों ने हिस्सा लिया जबकि अन्य देशों ने केवल अपने प्रतिनिधि ही भेज कर रस्म अदायगी ही की। जिस वक्त इस्लामिक सहयोग संगठन की बैठक इस्लामाबाद में चल रही थी उसी दौरान सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात का बड़ा बिजनेस डैलीगेशन श्रीनगर पहुंचा हुआ था। इस डैलीगेशन में दोनों देशों की बड़ी-बड़ी कम्पनियों के सीईओ और बड़े अधिकारी शामिल थे। दोनों देशों के प्रतिनिधियों ने जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल मनोज सिन्हा के साथ वार्ता की। जिसमें जम्मू-कश्मीर में भारी-भरकम निवेश पर सहमति बनी। जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने विदेशी निवेश के लिए 2000 एकड़ जमीन आरक्षित की है। यह सब सरकारी जमीन है। जम्मू-कश्मीर सरकार का कहना है कि अगर आम लोग चाहें तो वह भी स्वतंत्र रूप से उद्यमियों को जमीन देने का फैसला कर सकते हैं। सऊदी अरब और यूएई जम्मू-कश्मीर में फलों की फूड प्रोसैसिंग, खेलों के उपकरण, सूखे मेवे, आईटी समेत कई अन्य सैक्टर में निवेश करने जा रहे हैं। यह निवेश पाकिस्तान के हुकुमरानों पर एक तरह से करारा तमाचा है जो आए दिन कश्मीर का राग अलापते रहते हैं। सऊदी अरब व यूएई के निवेश से जम्मू-कश्मीर तरक्की की राह पर तेजी से दौड़ने लगेगा और पाकिस्तान का कश्मीर राग भी हमेशा के लिए खत्म हो जाएगा। वैसे भी धारा 370 खत्म किए जाने के बाद कश्मीर वादी की फिजाओं में बहुत कुछ बदल चुका है और जम्मू-कश्मीर के लोग राष्ट्र की मुख्यधारा से जुड़ने लगे हैं। अब उन्हें वह सभी अधिकार प्राप्त हैं जो पूरे देश में भारतीय नागरिकों को मिलते हैं। ऐसे में चीन की अनावश्यक बयानबाजी कोई मायने नहीं रखती।
आदित्य नारायण चोपड़ा
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