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- ऐसा संयुक्त राष्ट्र...
आदित्य नारायण चोपड़ा; रूस ने यूक्रेन की राजधानी कीव पर उस समय हमला किया जब संयुक्त राष्ट्र महासचिव अंटोनियो गुटारेस कीव में ही मौजूद थे। रूसी मिसाइल हमले में एक पत्रकार की मौत हो गई और दस लोग घायल हो गए। इससे पहले संयुक्त राष्ट्र महासचिव ने मास्को जाकर रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से भी मुलाकात की थी। हालांकि इन मुलाकातों के बाद भी मारियोपोल में फंसे लोगों को निकालने के लिए रास्ता बनाने पर कोई सहमति नहीं बन सकी। पुतिन ने अंटोनियो की एक भी बात नहीं मानी। अंटोनियो मास्को से यूक्रेन पहुंचे और उन्होंने यूक्रेन की जनता के लिए समर्थन बढ़ाने का संकल्प जताया। उन्होंने यूक्रेन के राष्ट्रपति बोलोदिमीर जेलेंस्की से वार्ता की और यूक्रेन को असहनीय व्यथा का केन्द्र करार देते हुए लाखों जरूरतमंदों तक सहायता सुनिश्चित करने और राहत प्रयासों का दायरा बढ़ाने का भरोसा दिलाया। संयुक्त राष्ट्र जाे विश्व का प्रतिनिधित्व करने का दावा करता है आज वह एक असहाय संस्था बन चुकी है। संयुक्त राष्ट्र अपनी प्रतिष्ठा और प्रासंगिकता खो चुका है। इस संस्था के प्रति रूस के रवैये से साफ है कि संयुक्त राष्ट्र का अब कोई महत्व नहीं रह गया। इसी बीच रूस-यूक्रेन युद्ध 67वें दिन में प्रवेश कर गया है। यूक्रेन पर रूस के ताबड़तोड़ हमले जारी हैं। मानवता क्रंदन कर रही है। लाखों लोग उजड़ गए हैं, कोई कुछ नहीं कर पा रहा। कोई भी इस बात को तय नहीं कर पा रहा कि युद्ध के लिए रूस जिम्मेदार है या यूक्रेन या फिर यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की काे उकसाने वाले अमेरिका या यूरोपीय देश। यह बात सत्य है कि प्रथम युद्ध के उपरांत लीग ऑफ नेशन्स की कार्यशैली की असफलता के बाद सारे विश्व में यह महसूस किया गया कि अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर शांति प्रसार और सुरक्षा की नीति तब ही सफल हो सकती है जब विश्व के सारे देश अपने स्वार्थ से ऊपर उठकर सम्पूर्ण विश्व काे एक इकाई समझ कर अपनी सोच को विकसित करें। 7 अक्तूबर, 1944 को वाशिंगटन डीसी में यह निर्णय लिया गया कि संयुक्त राष्ट्र की सबसे प्रमुख इकाई सुरक्षा परिषद होगी जिसके पांच स्थाई सदस्य होंगे चीन, फ्रांस, सोवियत संघ (अब रूस), िब्रटेन और अमेरिका, सोवियत संघ के विखंडन के बाद अब रूस सुरक्षा परिषद का स्थाई सदस्य है। प्रारम्भिक प्रारूप में सुरक्षा परिषद के 11 सदस्यों का प्रावधान था जिनमें से 5 तो स्थाई सदस्य थे और शेष 6 सदस्य जनरल एसैम्बली द्वारा 2 वर्ष की अवधि के लिए होते थे जो अस्थाई सदस्य कहलाते थे। इसके बाद सुरक्षा परिषद में संशोधन की जरूरत महसूस की गई। 17 दिसम्बर, 1963 को एक प्रस्ताव पारित और अंगीकृत किया गया जिसे 31 अगस्त, 1965 को लागू किया गया। इसके अनुसार सुरक्षा परिषद के 15 सदस्य होंगे और जनरल एसैम्बली 10 सदस्यों का चयन करेगी। इन सदस्यों का चयन इस आधार पर होगा कि किस देश ने अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर कितना और किस रूप में अपना योगदान दिया है। संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना का उद्देश्य तांडव से आने वाली पीढ़ियों की रक्षा करना। संसार को प्रजातंत्र के लिए सुरक्षित स्थान बनाना और एक ऐसी शांति की स्थापना करना है जो न्याय पर आश्रित हो किन्तु यह मानवता का दुर्भाग्य रहा कि राष्ट्र संघ अपने महान आदर्श, महत्वकांक्षी सपने और उद्देश्यों की प्राप्ति में सफल नहीं हो सका। संयुक्त राष्ट्र संघ कई कारणों से असफल होता गया। न तो वह परमाणु निशस्त्रीकरण की योजना को लागू करने में सफल रहा और न ही वह परमाणु हथियारों की होड़ के रोकने में सफल रहा। संयुक्त राष्ट्र संघ के चार्टर में संवैधानिक और सरंचनात्मक कमजोरियां थीं और महाशक्तियों ने इसका प्रयोग अपनी स्वार्थपूर्ति के लिए किया। उसकी सबसे बड़ी चुनौती यह थी कि संयुक्त राष्ट्र के पांचों स्थाई सदस्यों में किसी न किसी बात को लेकर मतभेद बने रहते थे। संयुक्त राष्ट्र के गठन के 10 साल बाद ही अमेरिका और वियतनाम के बीच युद्ध शुरू हुआ था जो 10 साल चला जिसमें वियतनाम के करीब 20 लाख लोग मारे और 30 लाख से ज्यादा लोग घायल हुए। 1980 में ईरान और इराक में युद्ध भड़क उठा जो आठ साल चला इसमें भी 10 लाख लोग मारे गए। 1994 में अफ्रीकी देश रवांडा में नरसंहार शुरू हुआ। वहां के बहुसंख्यक समुदाय हुतू ने अल्पसंख्यक समुदाय तुत्सी के आठ लाख लोगों को मार दिया। फ्रांस ने अपनी सेना वहां भेजी लेकिन वह भी तमाशबीन बनी रही। अमेरिका ने भी इराक, अफगानिस्तान और लीबिया में विध्वंस का खेल खेला और आज तक इन देशों में राजनीतिक स्थिरता कायम नहीं हुई। धीरे-धीरे संयुक्त राष्ट्र अमेरिका की कठपुतली की तरह काम करने लगा। युद्ध रोकने में विफलता के चलते संयुक्त राष्ट्र पूरी तरह से विफल होता गया। भारत कई वर्षों से संयुक्त राष्ट्र की स्थाई सदस्यता के लिए दावेदारी करता आ रहा है और भारत चाहता है कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का विस्तार किया जाए। संयुक्त राष्ट्र के महासचिव रहे बुतरस घाली ने अपनी जीवनी में वीटो सिस्टम की आलोचना करते हुए लिखा था कि जब तक वीटो सिस्टम खत्म नहीं होता तब तक सुरक्षा परिषद स्वतंत्र होकर काम नहीं कर सकता। संपादकीय :हिन्दी पर नाज हैराष्ट्रसंघ में दिल्ली विकास माडलतपाती गर्मी रूलाती बिजलीराजद्रोह कानून की प्रासंगिकतापेट्रोल-डीजल पर वैट का सवालक्या 'बेनजीर' होंगे बिलावल भुट्टो?वीटो पावर के जरिये यह देश किसी भी मामले को रोक देते हैं। एेसा संयुक्त राष्ट्र किस काम का जो युद्ध न रोक पाए। रूस-यूक्रेन युद्ध का उदाहरण हमारे सामने है। रूसी राष्ट्रपति अब आगे क्या रणनीति अपनाते हैं इसका अनुमान कोई नहीं लगा सकता। कुल मिलाकर आज विश्व को ऐसी संस्था की जरूरत है जो मानवता की रक्षा कर सके।