- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- सम्पादकीय
- /
- कोरोना के उपचार के लिए...
x
ऑक्सीजन की कमी का सच क्या है
संयम श्रीवास्तव। पंकज कुमार। भारत में ऑक्सीजन का डेली प्रोडक्शन 7 हजार 1 सौ 27 मीट्रिक टन है और खपत 6 हजार सात सौ 85 मीट्रिक टन फिर भी देश में ऑक्सीजन की कमी को लेकर हाहाकार मचा हुआ है. पिछले 14 दिनों में मेडिकल ऑक्सीजन की खपत तकरीबन 76 से 80 फीसदी बढ़ी है फिर भी खपत से ज्यादा प्रोडक्शन है. सरकारी आंकड़े के मुताबिक 12 अप्रैल को मेडिकल ऑक्सीजन की जरूरत 3842 मीट्रिक टन थी जो 22 अप्रैल को बढ़कर 6785 मीट्रिक टन हो गई. यानि कागज पर अभी भी खपत से ज्यादा प्रोडक्शन है. महामारी से पहले भारत को एलएमओ (Liquid Medical oxygen) 7 सौ 50 मैट्रिक टन से लेकर 800 मीट्रिक टन की जरूरत पड़ती थी.
इसके अलावा बाकी का ऑक्सीजन इंडस्ट्रीज में इस्तेमाल के लिए तैयार किया जाता था. भारत में ऑक्सीजन की पैदावार करने वाली प्रमुख कंपनियां इन्नॉक्स एयर प्रोडक्ट्स, लिंडे इंडिया, गोयल एमजी गैसेज, नेशनल ऑक्सीजन लिमिटेड और तैयो निप्पॉन सांसो कॉरपोरेशन हैं. इन्नॉक्स एयर प्रोडक्ट्स के दावे के मुताबिक कंपनी 60 फीसदी मेडिकल ऑक्सीजन की डिमांड को पूरा करती है और देश में 800 अस्पतालों को ऑक्सीजन सप्लाई करती है. लेकिन अभी एलएमओ की मांग बढ़कर 6785 मीट्रिक टन से ज्यादा हो गई है इसलिए इस स्थिति में जरूरत को पूरा करना कई मायनों में एक बड़ी चुनौती है.
राज्यों तक ऑक्सीजन पहुंचाना बड़ी चुनौती
कहा जाता है कि ऑक्सीजन का स्टॉक 40 हजार मीट्रिक टन पहले से भारत के अलग अलग-राज्यों में है. लेकिन जरूरतमंद राज्यों तक पहुंचाना बड़ी चुनौती है. यही वजह है कि सरकार को "ऑक्सीजन एक्सप्रेस" तक चलाना पड़ा है. इनॉक्स एयर प्रोडक्ट्स के डायरेक्टर सिद्धार्थ जैन ने मनी कंट्रोल में दिए अपने साक्षात्कार में कहा कि पूर्वी भारत के बाजार जैसे कि झारखंड और उड़ीसा में ऑक्सीजन की सप्लाई ज्यादा है. जबकि मांग भारत के पश्चिम स्थित राज्यों से ज्यादा है, जिनमें महाराष्ट्र, गुजरात और मध्य प्रदेश शामिल हैं.
सप्लाई चेन की खामियों की वजह से हो रही है मुश्किल
महामारी से पहले मेडिकल ऑक्सीजन के ट्रांसपोर्ट के लिए 1172 क्रायोजेनिक टैंक उपलब्ध थे. लेकिन महामारी के तीव्र गति को देखते हुए एलएमओ (Liquid Medical oxygen) की सप्लाई बढ़ाने के लिए ऑर्गन और नाइट्रोजन ढोने वाली टैंक का इस्तेमाल एलएमओ (Liquid Medical oxygen) ले जाने के लिए किया जा रहा है. दरअसल ऑक्सीजन की कमी के लिए मचे हाहाकार के पीछे सप्लाई चेन मैनेजमेंट की खामियां बड़े पैमाने पर उजागर हो रही हैं. सरकार महामारी की जरूरतों को देखते हुए क्रायोजेनिक टैंक का इम्पोर्ट करने वाली है. इतना ही नहीं सरकार 50 हजार मीट्रिक टन ऑक्सीजन इम्पोर्ट करने का ऑर्डर दे चुकी है, ताकि कमी और आगे होने वाली जरूरतों को पूरा किया जा सके.
मेडिकल ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ाने में देर क्यों?
भारत सरकार इंडस्ट्रियल ऑक्सीजन मैन्युफैक्चरर को मेडिकल ऑक्सीजन प्रोड्यूस करने के लिए बढ़ावा दे रही है. सरकार के दावों के मुताबिक 33 सौ मीट्रिक टन मेडिकल ऑक्सीजन प्रोड्यूस अब ज्यादा होने लगा है. वहीं सरकार देश में 162 पीएसए (Pressure Swing Adsorption) मशीन लगाने की घोषणा कर चुकी है. इनमें 59 पीएसए 17 राज्यों में लगाया जाएगा जिससे 1 सौ 54 मीट्रिक टन मेडिकल ऑक्सीजन का प्रोड्यूस होगा. भारत सरकार ने नौ इंडस्ट्रियल प्लांट की जरूरतों को छोड़कर बाकी ऑक्सीजन मेडिकल इस्तेमाल के लिए प्रोड्यूस करने का निर्देश दिया है. ज़ाहिर है सरकार मेडिकल ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ाने की ओर अग्रसर है लेकिन महाराष्ट्र, गुजरात, एमपी, यूपी, कर्नाटक, तमिलनाडु, दिल्ली, छत्तीसगढ़, पंजाब और राजस्थान में मेडिकल ऑक्सीजन की खपत कहीं ज्यादा है.
वहीं दिल्ली, यूपी, हरियाणा और गुजरात जैसे राज्य जरूरत के हिसाब से कम मिल रही ऑक्सीजन की शिकायत खुलेआम कर रहे हैं.
ज़ाहिर है ये वो राज्य हैं जहां ऑक्सीजन का डिमांड सप्लाई से कहीं ज्यादा है और इसकी वजह ऑक्सीजन प्लांट की कमी है या फिर लगा भी है तो इनकी जरूरतों को पूरा करने के लिए नाकाफी है. इसलिए पीएम मोदी के साथ मीटिंग में दिल्ली की मांग को रखते हुए सीएम अरविन्द केजरीवाल ने कहा था कि देश की संपदा पर सबका हक बराबर है फिर दिल्ली आ रही ऑक्सीजन टैंकरों को बीच में पड़ने वाले राज्य क्यों रोक ले रहे हैं.
क्राइसिस मैनेज करने में क्या दिक्कतें हैं?
सरकार के लिए चुनौती कम जरूरत वाले राज्यों (जहां सरप्लस ऑक्सीजन है) से ज्यादा जरूरत वाले राज्यों को मेडिकल ऑक्सीजन मुहैया कराने का है. सरकार उन राज्यों को चिह्नित कर रही है जहां सरप्लस ऑक्सीजन है. केन्द्र सरकार ज्यादा जरूरत वाले महाराष्ट्र, गुजरात, एमपी, यूपी, दिल्ली और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों को मुहैया कराने के लिए मेडिकल ऑक्सीजन मैनुफैक्चरर, सहित राज्य सरकार और अन्य स्टेक होल्डर्स के साथ समन्वय स्थापित कर रही है.
केन्द्र सरकार की योजना 30 अप्रैल तक सभी जरूरतमंद राज्यों को जरूरत के हिसाब से चिह्नित कर ऑक्सीजन मुहैया कराने का है. इसके लिए ट्रांसपोर्ट मिनिस्ट्री, रेल मंत्रालय, और राज्य ट्रांसपोर्ट मिनिस्ट्री समन्वय स्थापित कर काम कर रहा है. इसमें स्वास्थ्य मंत्रालय समेत स्टील मंत्रालय, और अन्य स्टेक होल्डर्स की भी भूमिका है. इसलिए इतने व्यापक कॉर्डिनेशन के बीच क्राइसिस को मैनेज करना एक चुनैती जरूर है. जहां देश के एक हिस्से से बुरी तरह प्रभावित हिस्सों में मेडिकल ऑक्सीजन पुहंचाना किसी चुनौती से कम नहीं है. वहीं केन्द्र सरकार के लिए इतने सारे अंगों को एक प्लेटफॉर्म पर लाना एक चुनौती है. जहां ज्यादा सप्लाई वाली जगहों से ज्यादा डिमांड वाली जगहों तक प्राणवायु समय पर पहुंचाना निश्चित तौर पर कई चुनौतियों से भरा है. लेकिन सरकार की परीक्षा ऐसी ही घड़ी में होती है और दूसरी लहर में अब तक प्लानिंग से लेकर मौके की गंभीरता को भांपने में सरकार से देरी जरूर हुई है.
Next Story