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पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास पूजा सिंहल प्रकरण पर खामोश क्यों हैं
Faisal Anurag
पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास पूजा सिंहल प्रकरण पर खामोश क्यों हैं ? इसका राज क्या है ? रघुवर दास ने पिछले तीन सालों में हेमंत सोरेन और उनकी सरकार पर अनेक बयान दिए और आरोपों की झड़ी लगायी है. पूजा सिंहल और उनके निकट के लोगों पर ईडी के छापे के बाद उनके ट्वीटर हैंडल से 12 ट्वीट हुए हैं लेकिन एक भी छापे के संदर्भ में नहीं हैं.
सवाल इसलिए महत्वपूर्ण है कि पूजा सिंहल को चतरा और खूंटी मामले में सरकार का क्लीन चिट उनके ही मुख्यमंत्रित्व के कार्यकाल में मिला था. यह तो सर्वविदित है कि सरकार किसी की भी रही हो पूजा सिंहल सभी सरकारों में महत्वपूर्ण बनी रहीं हैं. जब भाजपा के कई नेता छापे को लेकर हेमंत सरकार को निशाने पर ले रहे हैं, रघुवर दास की खामोशी अनायास तो नहीं ही है.
राजनैतिक विरोधियों के भ्रष्टाचार के खिलाफ मुखर रहने वाले आइएएस या फिर आइपीएस अक्सर अफसरों के भ्रष्टचार के खिलाफ आक्रमकता क्यों नहीं दिखाते. पिछले कुछ समय से झारखंड सहित देश के अनेक राज्यों में उच्चपदस्थ अधिकारियों के भ्रष्टाचार में संलिप्तता के अनेक मामले उजागर हो चुके हैं. झारखंड में भी भ्रष्टाचार में अधिकारियों की संलिप्ता नयी नहीं है और न ही आरोपित अफसरों को महत्वूपर्ण विभागों का दायित्व देने की परिघटना.
रघुवर दास को इस सवाल का जबाव तो देना ही चाहिए कि आखिर किन परिस्थितियों में 2017 में पूजा सिंहल को गंभीर आरापों के बावजूद क्लीन चिट दे दिया गया. भाकपा माले विधायक विनोद सिंह के फेसबुक पोस्ट का यह अंतिम पारा बेहद महत्वपूर्ण है कि पिछले विधानसभा यानी रघुवर दास जी के कार्यकाल में अरूप चटर्जी ने भी मामले को उठाने की कोशिश की. लेकिन सरकार इसे टालती रही. और अंततः आज के छापे के बाद स्प्ष्ट है कि सरकारों ने हमेशा भ्रष्ट अधिकारियों के बचाव का काम ही किया है और अपनी जरूरत के हिसाब से कर्रवाई की है.
राजनैतिक नैतिकता का सवाल तो अब मायने नहीं रखता. अधिकारी भी अपने राजनैतिक आकाओं को लेकर खामोश ही रहते हैं. पूजा सिंहल के मामले से एक बात को स्पष्ट हो गयी है कि मुख्यमंत्री या पार्टी के सत्ता से बाहर जाने के बाद भी उसकी ताकत बरकरार रहती है. यह ताकत कहां से आती है इसकी जांच भले ही एजेंसियां नहीं करे, लेकिन लोग हकीकत को खूब जानते हैं.
पूजा सिंहल का निलंबल और गिरफ्तारी अभी तो नहीं हुयी है लेकिन ईडी ने उन्हें समन भेजने की बात कहीं है. तो क्या ऐसे मामले में आरोपी के पूरे कार्यकाल,निर्णयों और उसने संरक्षण देने वालों की भी जांच नहीं की जानी चाहिए. लेकिन यह तभी संभव है जब भ्रष्टचार उन्मूलन के लिए इरादा मजबूत हो और राजनेता ऐसे नेताओं को संरक्षण ओर मलाईदार पोस्ट देने से परहेज करें. रघुवर दास को खुलकर क्लीन चिट की हकीकत को बताना चाहिए. यह सवाल तो अहम है ही उनकी खामोशी का राज क्या है ?
Rani Sahu
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