सम्पादकीय

लाउडस्पीकर और इफ्तार विवाद पर नीतीश कुमार की खामोशी के क्या मायने हैं?

Rani Sahu
4 May 2022 9:04 AM GMT
लाउडस्पीकर और इफ्तार विवाद पर नीतीश कुमार की खामोशी के क्या मायने हैं?
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पटना में रविवार को एक इफ्तार पार्टी में बिहार के सीएम नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) शामिल हुए. वहां उनसे पूछा गया कि वे मस्जिदों में लाउडस्पीकर पर प्रतिबंध कब लगा रहे हैं

ब्रजेश पांडेय

पटना में रविवार को एक इफ्तार पार्टी में बिहार के सीएम नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) शामिल हुए. वहां उनसे पूछा गया कि वे मस्जिदों में लाउडस्पीकर पर प्रतिबंध कब लगा रहे हैं, तो उन्होंने इसे बिहार (Bihar) में "गैर-मुद्दा" कहते हुए खारिज कर दिया. जब उन्हें राज्य के बीजेपी (BJP) मंत्रियों और नेताओं द्वारा की जाने वाली मांग की याद दिलाई गई तो उन्होंने कहा कि ये मांगें "बकवास" हैं और राज्य में इनकी कोई प्रासंगिकता नहीं है. बीजेपी नेताओं की मांग को जिस जोरदार ढंग से खारिज किया गया उससे कई लोगों की भौंहें तन गईं. पिछले कुछ समय से नीतीश को काफी करीब से देखा जा रहा है ताकि ये समझा जा सके कि बिहार के मुख्यमंत्री का झुकाव अब किस तरफ होने वाला है.

सबसे पहले अटकलबाजी का ये दौर चला कि अब उन्होंने बिहार की बागडोर बीजेपी को सौंपने का फैसला कर लिया है. सत्ता हस्तांतरण के बाद वे दिल्ली शिफ्ट हो जाएंगे और वो भी या तो उपराष्ट्रपति के पद पर या फिर राज्यसभा में नामांकन के जरिए मोदी कैबिनेट में मंत्री बनेंगे. हालांकि नीतीश ने इन अटकलों का खंडन किया है और उन्हें शुद्ध "राजनीतिक गपशप" कहा है. बहरहाल, अपने निर्वाचन क्षेत्र नालंदा के व्यापक दौरे के दौरान उन्होंने जनता को धन्यवाद दिया कि उन्हें मुख्यमंत्री के रूप में सेवा करने का मौका दिया गया. इन्हीं सब घटनाओं के मद्देनज़र उनके और उनके पार्टी के सहयोगियों के इंकार को लोग संदेह की नज़र से देख रहे हैं.
आरजेडी के साथ जेडीयू का फिलहाल कोई गठबंधन नहीं होगा?
इस बीच, बिहार के सीएम ने आरजेडी द्वारा आयोजित इफ्तार पार्टी में शामिल होने के लिए लालू यादव के घर जाने का फैसला किया. इसके बाद तो हंगामा मच गया. नीतीश और तेजस्वी यादव और उनके परिवार के बीच दोस्ती की तस्वीरों ने अटकलों को और हवा दी. नीतीश का जोर शोर से विरोध करने वाले चिराग पासवान भी थोड़ी देर बाद आए और बिहार के सीएम के पैर छुए. इन दृश्यों ने अपना काम किया. इस नई "दोस्ती" की तस्वीरों को आरजेडी और जेडीयू के एक साथ आने की भूमिका के रूप में देखा जा रहा है.
बहरहाल, दोनों पक्षों ने किसी भी संभावित गठबंधन के बारे में चल रही सभी अफवाहों को खारिज कर दिया है, लेकिन राजनीतिक गलियारों में कई लोग इसे अभी भी मानने को तैयार नहीं हैं. बिहार के मुख्यमंत्री को एक ऐसे व्यक्ति के रूप में देखा जाता है जो अपने पत्ते कभी नहीं खोलते है. फिर भी उन्हें अपने संभावित राजनीतिक भविष्य के बारे में संकेत देते देखा गया. एक तरफ सियासी गलियारों में आरजेडी-जदयु के संभावित गठबंधन को लेकर चर्चा जोरों पर थी तो दूसरी तरफ इन अफवाहों को विराम देते हुए बिहार के सीएम ने हवाई अड्डे पर गृह मंत्री अमित शाह का स्वागत किया.
आरजेडी ने भी जल्दी से जेडीयू के साथ किसी भी संभावित गठबंधन से इनकार किया. तेजस्वी ने भी बहुत स्पष्ट तौर पर कहा है कि इस बार इस तरह के किसी भी गठजोड़ के मुख्यमंत्री सिर्फ वे ही होंगे. हालांकि, उनके भाई तेज प्रताप यादव के ट्वीट और कार्यों की वजह से अब संदेह करने की गुंजाईश नहीं बची थी. तेज प्रताप ने 11 अप्रैल को ट्वीट किया 'Entry Nitish Chacha' ('नीतीश चाचा आ रहे हैं') और एक दिन बाद नीतीश आरजेडी के इफ्तार में शामिल हुए. इसके बाद तेज प्रताप ने कहा कि उनकी नीतीश के साथ गुप्त बातचीत हुई है और बहुत जल्द जेडीयू और आरजेडी सरकार बनाएंगे.
क्या बीजेपी-जेडीयू गठबंधन में सब कुछ ठीक है?
यह याद रखना उचित होगा कि यही तेज प्रताप एक बार नीतीश के आवास के बाहर एक तख्ती लेकर खड़े थे जिस पर लिखा था 'नीतीश चाचा को नो एंट्री'. ये तब की बात है जब जदयुआरजेडी गठबंधन टूट गया था और नीतीश कुमार ने एनडीए में फिर से शामिल होने का ऐलान किया था. दिलचस्प बात यह है कि जब नीतीश ने अपनी इफ्तार पार्टी की मेजबानी की तो नीतीश, तेजस्वी और चिराग के बीच की दोस्ती का पुरजोर प्रदर्शन हुआ. ऐसे वीडियो सामने आए जिसमें नीतीश कुमार इशारे से चिराग को अपने पास बुला रहे हैं या फिर तेजस्वी को कार तक छोड़ने के लिए गए ये सभी राजनीतिक पटकथा का हिस्सा थे जो इस सवाल को जन्म देते हैं कि, क्या बीजेपी-जेडीयू गठबंधन में सब कुछ ठीक है?
राजनीतिक पर्यवेक्षकों ने बिहार में सरकार बनने के बाद से ही जेडीयू और बीजेपी के बीच खराब रिश्तों पर गौर फरमाया है. जेडयू खेमे में यह गहरा विश्वास है कि चिराग को बीजेपी ने ही चुनावी मैदान में उतारा था, जिसके कारण चुनावों में जेडीयू को महत्वपूर्ण सीटों का नुकसान उठाना पड़ा और बीजेपी को संख्या के आधार पर बढ़त मिली. इसके अलावे जिस तरह से बिहार मंत्रिमंडल का गठन किया गया था उससे तो कम से कम ये कहा ही जा सकता है कि बीजेपी और जेडीयू के बीच राजनीतिक समीकरण अब काफी 'असुविधाजनक' हो गया है.
इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि हमेशा "सही" काम करने वाले नीतीश कुमार की छवि अब दागदार हो चुकी है. उन्हें अब एक राजनीतिक अवसरवादी के रूप में जाना जाने लगा है. चाहे लाउडस्पीकर का मुद्दा हो या इफ्तार का मुद्दा या समान नागरिक संहिता — नीतीश बीजेपी के पाले में नहीं दिख रहे हैं. वहीं आरजेडी के राजकुमारों के साथ वे जिस गर्मजोशी से मिल रहे हैं उससे इतना तो तय है कि उन्होंने बीजेपी को दुविधा में डाल रखा है.
Rani Sahu

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