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- क्या है चर्चा
हिमाचल भी अब पूछने लगा, चर्चा क्या है। चर्चा में रहने की चर्चा क्या है। बजट पेश करने की अदा और उसके निष्कर्षों की फिज़ा केवल चर्चा को बढ़ाने की भरपूर कोशिश ही तो है। समाज जो सुनना चाहता है, उसी के परिप्रेक्ष्य में राजनीति अपनी चर्चा शुरू करती है और इस लिहाज से देखंे तो बजट की समीक्षा के हाथ भी वित्तीय बंटवारे से सने मिलेंगे। आम जनता के लिए बजट के भीतर न कर चाहिए और न ही कटौतियां, इस तरह हमारी चर्चा का संवाद सापेक्ष है यानी हिमाचली समाज ने भी नीर क्षीर विवेचन करना छोड़ दिया है। दरअसल सफलता के मानदंड अब चर्र्चा का रुख तय करते हैं और इसकी व्यापकता में प्रदेश अपना माहौल बना रहा है। बजट से परे देखें तो हमारे खेत अपनी ऊर्जा खो चुके हैं या जंगली जानवरों, आवारा पशुओं व बंदरों से निजात पाने के बजाय खेती का मकसद ही हार चुके हंै। हर किसान सरकारी मुलाजिम बनकर खुशहाल होना चाहता है। हर पढ़ा-लिखा अपना घर चलाने के लिए सरकारी नौकरी का वरदान चाहता है और इसे हासिल करने के लिए एक तयशुदा राजनीति चाहिए। राजनीति के लिए सत्ता और सत्ता के लिए बजट की चर्चा चाहिए। इस बार भी बजट चर्चा करता है कि तीस हज़ार सरकारी नौकरियां मिलेंगी। इस तर्ज पर इश्तिहार तैयार होंगे तथा आवेदन मांगे जाएंगे।
क्रेडिट बाय दिव्याहिमाचल