सम्पादकीय

क्या है चर्चा

Rani Sahu
7 March 2022 6:58 PM GMT
क्या है चर्चा
x
हिमाचल भी अब पूछने लगा, चर्चा क्या है। चर्चा में रहने की चर्चा क्या है

हिमाचल भी अब पूछने लगा, चर्चा क्या है। चर्चा में रहने की चर्चा क्या है। बजट पेश करने की अदा और उसके निष्कर्षों की फिज़ा केवल चर्चा को बढ़ाने की भरपूर कोशिश ही तो है। समाज जो सुनना चाहता है, उसी के परिप्रेक्ष्य में राजनीति अपनी चर्चा शुरू करती है और इस लिहाज से देखंे तो बजट की समीक्षा के हाथ भी वित्तीय बंटवारे से सने मिलेंगे। आम जनता के लिए बजट के भीतर न कर चाहिए और न ही कटौतियां, इस तरह हमारी चर्चा का संवाद सापेक्ष है यानी हिमाचली समाज ने भी नीर क्षीर विवेचन करना छोड़ दिया है। दरअसल सफलता के मानदंड अब चर्र्चा का रुख तय करते हैं और इसकी व्यापकता में प्रदेश अपना माहौल बना रहा है। बजट से परे देखें तो हमारे खेत अपनी ऊर्जा खो चुके हैं या जंगली जानवरों, आवारा पशुओं व बंदरों से निजात पाने के बजाय खेती का मकसद ही हार चुके हंै। हर किसान सरकारी मुलाजिम बनकर खुशहाल होना चाहता है। हर पढ़ा-लिखा अपना घर चलाने के लिए सरकारी नौकरी का वरदान चाहता है और इसे हासिल करने के लिए एक तयशुदा राजनीति चाहिए। राजनीति के लिए सत्ता और सत्ता के लिए बजट की चर्चा चाहिए। इस बार भी बजट चर्चा करता है कि तीस हज़ार सरकारी नौकरियां मिलेंगी। इस तर्ज पर इश्तिहार तैयार होंगे तथा आवेदन मांगे जाएंगे।

यानी एक पद के लिए दस लोग आवेदन करें, तो तीस हजार पदों के लिए तीन लाख बेरोजगारों की नुमाइश हो जाएगी। हर चयन प्रक्रिया की चर्चा और इंटरव्यू की सुरक्षा में पूरी राजनीति गुजर जाएगी। हम हिमाचली भिन्न हैं, इसलिए सपने भी भिन्न हैं। पूरा बजट उन्हीं सपनों को कुरेदता है, जिनकी आस लिए हर बेरोजगार सरकारी नौकरी पाने की उम्मीद में 45 साल तक इंतजार कर सकता है और अब तो बाकी वर्षों में इंतजार करके एक आदि सामाजिक पेंशन का लाभार्थी बन सकता है। हमारी सरकारें इसीलिए औद्योगिक इकाइयों में 70 फीसदी हिमाचलियों के लिए नौकरी आरक्षित करने की चर्चा करती हैं, मगर हमारे बच्चे यह सीखे ही नहीं कि उत्पादन करने के लिए नीली वर्दी पहनी जाती है। इसलिए चर्चा यह नहीं कि निजी क्षेत्र में जान खपाने वाले 25 लाख लोगों की बेहतरी में क्या किया जाए, बल्कि बजट यह सोचता है सरकारी कर्मचारी इसकी चर्चा कैसे करेंगे। इस बार भी बजट की चर्चा में यही देखा जा रहा है कि कर्मचारी को क्या मिला, जबकि कोई यह चर्चा नहीं कर रहा कि कोविड के कारण निजी क्षेत्र की जितनी नौकरियां घट गईं, उसकी क्षति पूर्ति कैसे करें। वैसे विमर्श के लिए बजट के साथ खड़ा होने के लिए कई हाथ खड़े किए जाएंगे, लेकिन प्रदेश की आर्थिक स्थिति के आधार पर विवेचन नहीं होता।
पूर्व मुख्यमंत्री शांता कुमार बजट को साधुवाद देते हुए हिमाचल के आर्थिक संसाधनों की चर्चा नहीं करते। ऐसे में चर्चा के लिए जादू दिखाना पड़ता है या भाषा के जादूगर ही चर्चा करते हंै। विधानसभा सत्र में न तो अब चर्चा और न ही भाषा के जादूगर दिखाई दे रहे हैं। विधानसभा में कभी विक्रमादित्य बनाम राकेश पठानिया या कभी मुख्यमंत्री बनाम नेता प्रतिपक्ष के बीच चर्चा के आयाम बदल जाते हैं। बजट अगर बड़ी राह दिखा रहा है, तो छोटे मसलों पर भी बड़ी चर्चा चाहिए। आखिर संसाधनों का सही आबंटन ही हिमाचल को आगे ले जाएगा, लेकिन बजट को केवल कुछ सुर्खियां चाहिएं। ऐसे में चर्चा यह भी कि क्या बजट के मार्फत सरकार मिशन रिपीट कर पाएगी या बजटीय प्रावधानों का कार्यान्वयन हमेशा की तरह कई तरह के क्षेत्रवाद पैदा कर देगा। आज भी तलाश करेंगे, तो शिलान्यासों के सैकड़ों पत्थर, उदास और मायूस मिल जाएंगे। यह सब इसलिए कि कहीं विधायक या मंत्री चुनाव हार गए या कहीं सत्तारूढ़ दल के भीतर ही मलाल खड़ा हो गया। बजट पेश करने के बाद सत्ता के मायने अपने अंतिम वर्ष कैसी चर्चा छेड़ते हैं या इनके रास्ते में विपक्ष किस तरह की आपत्तियां खड़ी करता है, यही चर्चा का विषय है। आम आदमी के लिए बजट को बजट के स्वरूप में देखना असंभव है, लेकिन पक्ष-प्रतिपक्ष के बीच चर्चा जब शोर मचाती है, तो उसका राजनीतिक मानस सामने आता है। बजट चर्चा के कितने पन्ने सुर्ख या सुर्खी बनकर पेश होते हैं, यह अभी चर्चा का विषय होना चाहिए।

क्रेडिट बाय दिव्याहिमाचल

Rani Sahu

Rani Sahu

    Next Story