सम्पादकीय

तालिबानियों के पीछे दिखाई दे रही तस्वीर का भारत से क्या कनेक्शन है? मराठों के इतिहास से क्या कनेक्शन है? जानिए विस्तार से

Rani Sahu
17 Aug 2021 8:17 AM GMT
तालिबानियों के पीछे दिखाई दे रही तस्वीर का भारत से क्या कनेक्शन है? मराठों के इतिहास से क्या कनेक्शन है? जानिए विस्तार से
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तालिबान का पूरे अफगानिस्तान पर आखिर कब्जा हो गया. काबुल के राष्ट्रपति आवास में भी वे दाखिल हो गए. वहां के राष्ट्रपति आवास (Presidential Palace) के अंदर की कुछ तस्वीरें

शमित सिन्हा। तालिबान का पूरे अफगानिस्तान पर आखिर कब्जा हो गया. काबुल के राष्ट्रपति आवास में भी वे दाखिल हो गए. वहां के राष्ट्रपति आवास (Presidential Palace) के अंदर की कुछ तस्वीरें, वीडियोज अलग-अलग पत्रकारों और मीडिया संस्थाओं की ओर से जारी किए गए हैं. इन सारी तस्वीरों और वीडियोज में एक चीज जो बार-बार ध्यान खींचती है, वो है तालिबानियों के पीछे दिखाई देने वाली एक पेंटिंग. इस पेंटिग का रहस्य क्या है? इस पेंटिंग का अपने देश से क्या संबंध है? मराठों के इतिहास से इसका क्या संबंध है? आइए जानने की कोशिश करते हैं.

इस पेंटिंग में अफगानिस्तान के इतिहास की झलक है और इसका भारत के इतिहास से सीधा संबंध है. इस पेंटिंग में दिखाई दे रहे बादशाह से मराठों ने इतिहास की सबसे बड़ी लड़ाई लड़ी. इस तस्वीर में पहली बात तो यही साफ हो रही है कि तालिबानी लड़ाके अफगानिस्तान के राष्ट्रपति आवास के अंदर आ चुके हैं, यानी अब अफगानिस्तान में तालिबान का शासन है. इन तालिबानियों के हाथ में हथियार हैं. किसी आतंकवादी संगठन द्वारा पूरे देश में कब्जा करने की यह अकेली मिसाल है. इस पेंटिंग में दिखाई दे रहे बादशाह ने भारत को वो जख्म दिया जिस वजह से भारत अंग्रेजों का गुलाम होता चला गया. इस पेंटिंग में दिखाई दे रहे बादशाह ने भारत के राजे-रजवाड़ों की आपसी फूट की वजह से मराठों को हराने में कामयाबी पाई थी. मराठों की पढ़ियां गुजर गईं, उस हार का सदमा नहीं गया. वो ज़ख्म अब तक भरा नहीं.
अहमदशाह दुर्रानी (अब्दाली) के राज्याभिषेक की पेंटिंग. फोटो सौ. विकिपीडिया
यह पेंटिंग कब की है? कहां लगी है?
अब तक यह बताया जा चुका है कि यह पेंटिंग काबुल के प्रेसिडेंशियल पैलेस में लगी है. यह अफगान राष्ट्रपति का आवास है. राष्ट्रपति के आवास को अफगान लोग अर्ग (Arg) कहते हैं. करीब 34 हेक्टेयर में यह राष्ट्रपति आवास फैला हुआ है. 1880 में इसका निर्माण हुआ था. इससे पहले भी यहां एक महल था. लेकिन एक बड़ी लड़ाई में यह ध्वस्त हो गया था. इसके बाद बना यह प्रेसिडेशियल पैलेस आज काबुल के पॉश इलाके में स्थित है. और तब से अब तक अलग-अलग राष्ट्रपतियों का आवास बनता रहा है.
इस पेंटिंग में क्या दिखाई दे रहा है?
इस पेंटिंग में कुछ सरदार दिखाई दे रहे हैं. उनकी कमर में बरछे हैं. हाथ में तलवार और अन्य हथियार हैं. एक शख़्स एक फ़कीर के सामने झुक कर दुआएं ले रहा है. फकीर इस राजा जैसे दिखाई देने वाले शख्स के सर पर अक्षत जैसा कुछ छिड़क रहा है. फोटो में अफगानिस्तान की पहचान बताते हुए पहाड़ हैं. तस्वीर में कबीले और टोलियों के लोग दिखाई दे रहे हैं. जो व्यक्ति फकीर के सामने झुकता हुआ दिखाई दे रहा है, वो कोई और नहीं अहमद शाह दुर्रानी है. भारत के इतिहास में इसे अहमद शाह अब्दाली के नाम से जाना जाता है. अहमद शाह अब्दाली को अफगानिस्तान पहला शासक माना जाता है. यह पेंटिंग उसके राज्याभिषेक से संबंधित है. यह वही अहमदशाह अब्दाली है जिसके खिलाफ मराठों ने पानीपत की तीसरी लड़ाई लड़ी.

कबीलों में बंटे अफगानिस्तान को एक छत के नीचे लाना मुश्किल रहा है
अफगानिस्तान अनेक टोलियों और कबीलों से मिलकर बना हुआ देश है. अलग-अलग ढेर सारे कबीलों में बंटे अफगानिस्तान को किसी एक राजा या केंद्रीय सत्ता द्वारा एकजुट करना एक नामुमकिन को मुमकिन करने जैसा काम है. लेकिन अहमद शाह ने वो काम कर दिखाया था. तब अलग-अलग कबीलों की एक सभा आयोजित की जाती थी. यह सभा ही किसी अहम मुद्दे पर मिलकर फैसले लिया करती थी. इसे 'लोया जिरगा' कहा जाता था.अपने यहां गांवों में जिस तरह पंचायत होती है, समझिए यह व्यवस्था उसी तरह की होती थी. इसी लोया जिरगा ने 1747 में अहमद शाह अब्दाली को अपना राजा घोषित किया.
यह वही कंधार है
अहमद शाह दुर्रानी (अब्दाली) का राज्याभिषेक जिस शहर में हुआ था वो कंधार है. यह वही कंधार है जहां भारत के विमान को हाईजैक कर ले जाया गया था. यह वही कंधार है जहां बादशाह औरंगजेब को भी हार का सामना करना पड़ा था. अगर प्राचीन समय में चले जाएं तो यह वही कंधार है जिसका जिक्र महाभारत में गांधार के तौर पर हुआ है, जहां की दुर्योधन सहित 100 कौरव भाइयों की मां गांधारी थी.
और फिर यह वही कंधार है जहां तालिबान का जन्म हुआ. इस कंधार में पहली बार पूरे अफगानिस्तान को एक करने वाले अहमद शाह दुर्रानी का जब राज्याभिषेक हुआ तब वह 25 साल का था. राज्याभिषेक की यह वही घटना है जो इस पेंटिंग में दिखाई गई है.
लुटेरे की पेंटिंग अफगानिस्तान के राष्ट्रपति आवास में कैसे ?
भारत के इतिहास में अहमद शाह अब्दाली को लुटेरा कहा जाता है. लूट के इरादे से अहमद शाह अब्दाली ने भारत में एक-दो बार नहीं बल्कि 5 बार हमले किए. कभी उसने पंजाब लूटा, कभी काश्मीर तो कभी दिल्ली. पांचवी बार जब वह हिंदुस्तान आया तो पानीपत की तीसरी लड़ाई में वो मराठों से भिड़ा. अगर वो लुटेरा नहीं होता तो पांच बार हिंदुस्तान नहीं आता. अगर वह लुटेरा नहीं होता तो मुगलों की तरह यहां आकर जीत के बाद अपना राज कायम करता. लेकिन वो बार-बार आकर हमले करता था, रक्तपात करता था और लूट का माल बटोर कर अफगानिस्तान लौट जाता था.
लेकिन अफगानियों के लिए वो मोतियों में मोती था. नादिरशाह ने उसे यह टाइटल दिया था. आज का जो अफगानिस्तान है वो अहमद शाह अब्दाली की ही देन है. एक देश के तौर पर अफगानिस्तान को एक करने वाला अब्दाली ही था. यही वजह है कि भारतीयों के लिए लुटेरा अहमद शाह अब्दाली अफगानियों के लिए 'बाबा 'महान है. यही वजह है कि उसके राज्याभिषेक की पेंटिंग अफगानिस्तान के राष्ट्रपति आवास पर लगी है.


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