सम्पादकीय

रेपो रेट क्या बला? होम लोन, कार लोन, पर्सनल लोन की ईएमआई की किस्तें गले की फांस बनीं

Rani Sahu
8 Oct 2022 4:42 PM GMT
रेपो रेट क्या बला? होम लोन, कार लोन, पर्सनल लोन की ईएमआई की किस्तें गले की फांस बनीं
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By लोकमत समाचार सम्पादकीय
महंगाई कंट्रोल करने के लिए रिजर्व बैंक ने एक बार फिर से रेपो रेट में 0.50 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी कर दी है। आरबीआई के गवर्नर शक्तिकांत दास ने बीते 30 सितंबर 2022 को रेपो रेट में बढ़ोत्तरी का यह ब्रह्मास्त्र मई 2022 के बाद से चौथी बार चलाया। इससे अब तक महंगाई कितनी कम हुई है, यह तो हम सब अपने-अपने व्यक्तिगत अनुभवों से जानते ही हैं। लेकिन इस कवायद से बैंक कर्जदारों में 500 रुपए से लेकर 10000 रुपए मासिक तक ब्याज की बढ़ोत्तरी जरूर हो चुकी है। 30 सितंबर 2022 को रेपो रेट में की गई 0.50 फीसदी की बढ़ोत्तरी के बाद अब रेपो रेट बढ़कर 5.90 फीसदी हो गया है। रेपो रेट दरअसल ब्याज की वह दर होती है जिसमें रिजर्व बैंक, बैकों को कर्ज देती है। मई 2022 के बाद से इसमें अब तक 1.90 फीसदी की बढ़ोत्तरी हो चुकी है। इस कारण जिन लोगों ने होम लोन, कार लोन, पर्सनल लोन ले रखे हैं, उनकी ईएमआई की किस्तें असहनीय बोझ बन गई हैं।
यह कैसी बड़ी विडंबना है कि आरबीआई के गवर्नर ने महंगाई कम करने के नाम पर जो रेपो रेट की बढ़ोत्तरी की है, उससे 20 करोड़ से ज्यादा लोगों के गले में पड़ा ईएमआई का फंदा पिछले छह महीनों में चौथी बार थोड़ा और कस गया है। गौरतलब है कि क्रेडिट इन्फार्मेशन कंपनी (सीआईसी) की 2021 की एक रिपोर्ट के मुताबिक देश की कुल वर्क फोर्स का आधा यानी 20 करोड़ से कुछ ज्यादा लोग कम से कम एक ऋण या क्रेडिट कार्ड से लिए गए उधार की ईएमआई चुका रहे थे। मतलब देश में कम से कम 20 करोड़ से कुछ ज्यादा लोग हर महीने एक मासिक किस्त का भुगतान कर रहे थे। एक अन्य आंकड़े के मुताबिक करीब 11 करोड़ लोगों पर होम लोन और पर्सनल लोन का शिकंजा है। ऐसे में रेपो रेट बढ़ाकर महंगाई पर लगाम लगाने की कोशिश भले अंधेरे में तीर मारने जैसी हो लेकिन रेपो रेट बढ़ने के कारण करीब 20 करोड़ कर्जदारों पर कर्ज का बोझ बढ़ना हकीकत है। सवाल है क्या कर्ज का बोझ बढ़ना महंगाई बढ़ने जितना चिंताजनक नहीं है?
गौरतलब है कि देश में बड़े कर्जदार भले लाखों-करोड़ रुपए की कर्ज अदायगी में डिफॉल्ट कर जाते हों, लेकिन 90 फीसदी से ज्यादा छोटे कर्जदार समय पर अपनी कर्ज किस्त की अदायगी कर रहे हैं। इनमें भी 70 फीसदी से ज्यादा देश के छोटे कर्जदार बिल्कुल सही समय पर कर्ज की किस्त अदा कर रहे हैं। अब ये कैसे अदा कर रहे है, कोरोनाकाल की आफत के बाद वही जानते हैं। लेकिन जिस तरह से उन पर लगातार कर्ज की किस्त का बोझ आहिस्ता-आहिस्ता बढ़ाया जा रहा है, क्या आरबीआई चाहती है कि बड़े पैमाने पर ये छोटे कर्जदार भी किस्त अदा कर पाने में असमर्थ हो जाएं?
Rani Sahu

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