- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- सम्पादकीय
- /
- ममता की पॉलिटिक्स क्या...

x
तीन बार लगातार भारी बहुमत से चुनाव जीत कर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री बनने के बाद ममता बनर्जी के मन में अगर ये बात आई हो
लेफ्ट फ्रंट के खिलाफ अपनी सागदी भरी जीवन शैली और सड़क पर उतर कर लगातार संघर्ष करने की छवि से उन्होंने बंगाल में एक खास ढंग की प्रमाणिकता बनाई थी। लेकिन संघ-भाजपा या नरेंद्र मोदी से संघर्ष के लिए उनकी कोई वैचारिक या प्रतिबद्धता संबंधी उनकी कोई प्राणामिकता नहीं है।
तीन बार लगातार भारी बहुमत से चुनाव जीत कर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री बनने के बाद ममता बनर्जी के मन में अगर ये बात आई हो (या बैठा दी गई हो) कि अब प्रधानमंत्री बनने का उनका वक्त आ गया है, तो ऐसी खुशफहमी का संदर्भ समझा जा सकता है। दरअसल, वे अपने सामने नरेंद्र मोदी की मिसाल रखती होंगी। मोदी ने भी गुजरात में तीन बार बड़ी जीत के बाद अपनी बनी हैसियत और शख्सियत के आधार पर ही राष्ट्रीय स्तर पर खुद को लॉन्च किया था। लेकिन ये समानता यहीं खत्म हो जाती है। मोदी राष्ट्रीय स्तर पर उभर पाए और गुजरात जैसी ही लोकप्रियता इस स्तर पर भी बना पाए, तो उसके पीछे दो खास वजहें थीं। पहली तो यह कि वे एक राष्ट्रीय पार्टी से जुड़े हैं, जिसका उनका उभरने के पहले ही राष्ट्रीय स्तर पर उदय हो चुका था। फिर इस पार्टी के पीछे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की ताकत है, जो दशकों में समाज में गहरे पैठ चुकी है। दूसरी वजह यह थी कि मुख्यमंत्री रहते हुए मोदी ने संघ-भाजपा का ऑथेन्टिक प्रतिनिधि होने की धारणा पुख्ता की। जबकि उस समय के भाजपा के राष्ट्रीय नेतृत्व के बारे में यह धारणा बनने लगी थी कि सत्ता के तकाजों के मुताबिक समझौता करने में वे नेता गुरेज नहीं करते।
ये दीगर बात है कि ऐसे ही समझौतों को माध्यम बनाते हुए वाजपेयी-आडवाणी के दौर में भाजपा हाशिये से आगे बढ़ते हुए देश की सबसे बड़ी पार्टी बनी थी। बहरहाल, 2002 गुजरात दंगों के बाद मोदी ने संघ की विचारधारा का प्रामाणिक प्रतिनिधि होने की छवि बनाई, जो 2014 में उनके काम आई। अब सवाल है कि क्या ममता बनर्जी के पास ये दोनों पहलू हैं? उनकी तृणमूल कांग्रेस पश्चिम बंगाल की क्षेत्रीय पार्टी है। और ममता बनर्जी की प्रमाणिकता क्या है, यह खुद उनकी पार्टी के नेताओं को भी नहीं मालूम होगा। लेफ्ट फ्रंट के खिलाफ अपनी सागदी भरी जीवन शैली और सड़क पर उतर कर लगातार संघर्ष करने की छवि से उन्होंने बंगाल में एक खास ढंग की प्रमाणिकता बनाई थी। लेकिन संघ-भाजपा या नरेंद्र मोदी से संघर्ष के लिए उनकी कोई वैचारिक या प्रतिबद्धता संबंधी उनकी कोई प्राणामिकता नहीं है। इसलिए राष्ट्रीय स्तर पर खुद को प्रक्षेपित करने का उनका अभियान विफल होगा, इसमें कोई शक नहीं है। हां, उनकी ये मुहिम भाजपा विरोधी विपक्षी गोलबंदी को और कठिन जरूर बना देगी।
नया इण्डिया

Gulabi
Next Story