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By NI Editorial
आज सात फीसदी की महंगाई ज्यादा चुभने वाली है क्योंकि नोटबंदी, जीएसटी और कोरोना महामारी ने आर्थिक रूप से लोगों की कमर तोड़ी है। वैसे थोक महंगाई पिछले एक साल से दहाई में ही है।
संसद के मॉनसून सत्र का दूसरा हफ्ता चल रहा है और सात दिन की बैठकें हो चुकी हैं। विपक्ष छाती पीट रहा है कि सरकार महंगाई पर चर्चा नहीं करा रही है। सरकार भी पता नहीं क्यों महंगाई पर चर्चा नहीं करा रही है। कायदे से तो सरकार को पहले दिन महंगाई पर चर्चा करा कर मामला खत्म करना चाहिए था। सरकार और विपक्ष दोनों को पता है कि महंगाई पर चर्चा से कुछ नहीं होता है। संसद में इतनी बार महंगाई पर चर्चा हो चुकी है कि लोग गिनती भूल गए हैं। लेकिन उससे हुआ क्या? क्या उस चर्चा से महंगाई कम हो गई? आज तक संसद के इतिहास में ऐसा नहीं हुआ है कि महंगाई पर चर्चा हुई हो और सरकारें इस बात से सहमत हुई हों कि महंगाई बढ़ रही है या चर्चा के बाद सरकार ने महंगाई घटाने का कोई फैसला किया हो।
उलटे महंगाई पर चर्चा नहीं कराने से ज्यादा अटेंशन मिल रहा है। विपक्ष को हंगामा करने का ज्यादा मौका मिल रहा है। संसद की कार्यवाही बाधित हो रही है और सरकार को ज्यादा सफाई देनी पड़ रही है। राज्यसभा में भाजपा के नेता और केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने सफाई देते हुए कहा कि यूपीए की सरकार में महंगाई दहाई में होती थी। सही बात है कि तब महंगाई दहाई में होती थी और इसी का ढिंढोरा पीट कर भाजपा सत्ता में आई। 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के प्रचार की थीम थी कि 'बहुत हुई महंगाई की मार, अबकी बार मोदी सरकार'। सो, उस बात को अब दोहराने का कोई मतलब नहीं है क्योंकि आठ साल से यूपीए सत्ता से बाहर है।
यूपीए की सरकार में महंगाई की दर जब दहाई में थी तब देश का सकल घरेलू उत्पादन यानी जीडीपी बढ़ने की रफ्तार भी दहाई के करीब थी। अभी हकीकत यह है कि मार्च 2018 की तिहाई से लेकर अभी तक वास्तविक जीडीपी की दर चार फीसदी या उससे नीचे ही है। कोरोना काल में निगेटिव रही विकास दर अब सुधर जरूर रही है लेकिन भारत का जीडीपी अब भी 2019 के आसपास ही है। सो, इस तर्क का कोई मतलब नहीं है कि यूपीए के समय मुद्रास्फीति दहाई में थी। आज सात फीसदी की महंगाई ज्यादा चुभने वाली है क्योंकि नोटबंदी, जीएसटी और कोरोना महामारी ने आर्थिक रूप से लोगों की कमर तोड़ी है। ऊपर से थोक महंगाई पिछले एक साल से दहाई में ही है।
Gulabi Jagat
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