सम्पादकीय

शराबबंदी से क्या मिला

Triveni
16 Dec 2022 1:58 PM GMT
शराबबंदी से क्या मिला
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फाइल फोटो 

बिहार में नकली शराब पीने से हुई मौतों को लेकर विधानसभा में विरोध प्रदर्शन कर रहे विपक्षी विधायकों पर भड़क उठने वाले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने गुरुवार को मृतकों के परिजनों को किसी तरह का मुआवजा देने से इनकार कर दिया।

जनता से रिश्ता वेबडेस्क | बिहार में नकली शराब पीने से हुई मौतों को लेकर विधानसभा में विरोध प्रदर्शन कर रहे विपक्षी विधायकों पर भड़क उठने वाले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने गुरुवार को मृतकों के परिजनों को किसी तरह का मुआवजा देने से इनकार कर दिया। हालांकि गुरुवार को वह गुस्से में नहीं दिखे, लेकिन उन्होंने कहा, जो शराब पिएगा वह तो मरेगा ही। देखना दिलचस्प है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की प्रतिक्रिया उसी विचार पद्धति की सहज अभिव्यक्ति है, जिससे शराबबंदी का तर्क निकलता है। शराब को गलत और अनैतिक चीज मानते हुए ही कोई राज्य सरकार इसे निषिद्ध घोषित करती है। मकसद यह भी होता है कि इससे महिला वोटरों को अपने पाले में लाया जाए। इसके साथ सरकारें अपराध और सड़क हादसों में कमी, स्वास्थ्य के लिहाज से सही और घरेलू हिंसा पर लगाम लगाने जैसे तर्क भी इसके पक्ष में देती हैं। लेकिन नैतिकता की दुहाई हो या कोई और तर्क दिया जाए, सच यही है कि शराबबंदी की वजह से लोग शराब पीना बंद नहीं कर देते। इसीलिए देश में ज्यादातर राज्यों में शराबबंदी नहीं है। आज की तारीख में बड़े राज्यों में सिर्फ गुजरात और बिहार में ही शराबबंदी लागू है। गुजरात में लंबे समय से शराबबंदी है, लेकिन बिहार ने 2016 में इसे लागू किया। इसके दुष्परिणाम वहां कई स्तरों पर देखे जा रहे हैं।

अवैध शराब की बड़े पैमाने पर बिक्री की शिकायतें तो हैं ही, इसके आदी हो चुके लोगों की गिरफ्तारी के मामले भी बढ़ गए हैं। पहले से ही लंबित मामलों के बोझ से दबी न्यायपालिका के लिए शराबबंदी उल्लंघन के ये मामले नया सिरदर्द साबित हो रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट तक इस ओर ध्यान दिला चुका है। इस संदर्भ में यह बात भी गौर करने लायक है कि तमिलनाडु, केरल और हरियाणा जैसे राज्यों ने शराबबंदी लागू करने के कुछ समय बाद इसे वापस ले लिया था और उसकी जायज वजह उनके पास थी। पहली तो यह कि शराबबंदी का बहुत असर नहीं होता। लोग शराब न मिलने पर दूसरे नशे करने लगते हैं। आसपास के राज्यों से शराब की स्मगलिंग बढ़ती है और अवैध शराब का धंधा फलने-फूलने लगता है। दूसरे, इससे उनकी वित्तीय स्थिति पर बुरा असर पड़ता है। शराब पर जो टैक्स राज्य लगाते हैं, उसका उनकी कुल आमदनी में अच्छा-खासा हिस्सा होता है। शराब की बिक्री पर प्रतिबंध लगाए जाने से यह आमदनी पड़ोसी राज्यों को चली जाती है। वहीं, इस आमदनी के हाथ से निकलने से शराबबंदी लागू करने वाले राज्य को मजबूरन दूसरे मदों पर खर्च घटाना पड़ता है। इससे खासतौर पर टूरिज्म सेक्टर पर बड़ी चोट पड़ती है और निवेशक भी बिदकते हैं। अच्छा हो कि शराबबंदी के बजाय राज्य शराब से जुड़े अपराधों को नियंत्रित करने के लिए सख्त कानून और उन पर अमल सुनिश्चित करें।

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