सम्पादकीय

जो अंदेशा था, वो हुआ

Gulabi
3 Feb 2021 5:23 AM GMT
जो अंदेशा था, वो हुआ
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तो आखिरकार म्यांमार में सेना ने तख्ता पलट दी

तो आखिरकार म्यांमार में सेना ने तख्ता पलट दी। नव निर्वाचित संसद की बैठक से ठीक पहले वाली रात में वहां एक दशक पहले वाली हालत बहाल कर दी गई। आंग सान सू ची सहित तमाम राजनेता जेल में डाल दिए गए। जबकि दो दिन पहले ही म्यांमार की सेना ने सफाई दी थी कि देश में तख्ता पलटने का उसका कोई इरादा नहीं है। लेकिन उससे ऐसे कयासों का दौर नहीं था। इसलिए हालात इसी दिशा में जाते दिख रहे थे। सेना के इरादे को लेकर संदेह इतना गहरा हो चुका था कि यंगून स्थित अमेरिका और यूरोपियन यूनियन समेत एक दर्जन से अधिक दूतावासों ने बयान जारी कर म्यांमार में सभी पक्षों से लोकतांत्रिक कायदों का पालन करने की अपील की थी। इसके पहले संयुक्त राष्ट्र ऐसी अपील कर चुका था।


गौरतलब है कि एक दशक पहले तक म्यांमार में सैनिक शासन था। ये सैनिक शासन लगभग 50 साल तक जारी रहा। यानी म्यांमार का लोकतंत्र की अभी जड़ें जमी नहीं हैं। ऐसे में सेना मौके की तलाश में थी। पिछले नवंबर में हुए संसदीय चुनाव में सत्ताधारी नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी (एनएलीडी) पर चुनावी धांधली करने के आरोप लगे। इससे ये मौका मिल गया। चुनाव में एनएलडी की भारी जीत हुई, लेकिन उसकी जीत को तब से संदेह की निगाह से देखा जाता रहा है। तो पिछले हफ्ते सेना के प्रवक्ता ने सैनिक तख्ता पलट की संभावना से इनकार नहीं किया। प्रवक्ता से पूछा गया था कि क्या कथित राजनीतिक संकट के हल के लिए सेना अपने हाथ में सत्ता लेगी। तख्ता पलट का भय उस समय और बढ़ गया, जब सेनाध्यक्ष मिन आंग हलायंग ने पिछले बुधवार को यह कह दिया कि कुछ खास परिस्थितियों में देश के संविधान को रद्द किया जा सकता है। एक फरवरी से शुरू हो रहे संसदीय सत्र को देखते हुए पहले से ही यंगून में कड़ी सुरक्षा व्यवस्था की गई थी। इसके मद्देनजर सेना के सत्ता हथिया लेने की अटकलें और मजबूत हो गई। आखिरकार म्यांमार एक बार फिर सैनिक तानाशाही के अधीन हो गया है। इस बार हालात ज्यादा पेचीदा हो सकते हैं क्योंकि जो देश लोकंत्र के लिए दबाव डालते थे, वे अपनी मुसीबत में फंसे हुए हैं। ऐसे में सेना ज्यादा बेखौफ होकर देश को अपने शिकंजे में जकड़ सकती है।


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