सम्पादकीय

क्या बताती है ये कहानी?

Gulabi
8 Dec 2021 7:15 AM GMT
क्या बताती है ये कहानी?
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केरल की छात्रा दीपा पी मोहनन की कहानी ने पूरे देश में दलित छात्रों के साथ जारी भेदभाव पर फिर से रोशनी डाली
केरल की छात्रा दीपा पी मोहनन की कहानी ने पूरे देश में दलित छात्रों के साथ जारी भेदभाव पर फिर से रोशनी डाली है। दलित छात्रा दीपा पी मोहनन को अपनी पीएचडी पूरी करने से पहले जातिगत भेदभाव से लड़ना पड़ा। इसके विरोध में उन्होंने 11 दिन की भूख हड़ताल की। उन्होंने अपनी लड़ाई जीत ली, लेकिन देश एक अलग-अलग हिस्सों में हजारों दलित छात्रों के लिए चुनौतियां जस की तस हैँ। दीपा मोहनन ने कहा है कि पीएचडी हासिल करने के पहले वे अपने साथ सालों से हो रहे अन्याय को सबके सामने लाना चाहती थीं। इसमें वे सफल रहीं। इसी महीने मोहनन की 11 दिन लंबी भूख हड़ताल तब खत्म हुई, जब उनकी शिकायतों पर महात्मा गांधी यूनिवर्सिटी के नैनोसाइंस और नैनोटेक्नोलॉजी सेंटर के अध्यक्ष को बर्खास्त कर दिया गया। यूनिवर्सिटी ने वाइस चांसलर की अध्यक्षता में एक कमेटी भी बनाई है, जो दलित विद्यार्थियों के साथ कैंपस में हो दुर्व्यवहार और शोषण के आरोपों की जांच करेगी। लेकिन यह केरल में हुआ।
क्या देश के बाकी राज्यों में भी ऐसी संवेदनशीलता की अपेक्षा आज की जा सकती है? भारत में लगभग 20 करोड़ दलित आबादी है। सच्चाई यह है कि उन्हें आज भी अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करना पड़ता है। उच्च शिक्षा तक गए दलित छात्रों की ये शिकायत रही है कि विश्वविद्यालय परिसरों में जातिगत उत्पीड़न आम बात है। उनके मुताबिक शर्मिंदगी और यातनाओं से बचने के लिए बहुत से छात्र कक्षाओं में नहीं जाते हैं।
सरकार के उच्च शिक्षण संस्थानों के आंकड़े दिखाते हैं कि 18-23 साल के दलित या अन्य पिछड़ी जातियों के बच्चों की संख्या मात्र 14.7 प्रतिशत है, जबकि उन्हें बहुत से विषयों में तो 15 प्रतिशत आरक्षण हासिल है। मोहनन सौ छात्रों के अपने पोस्टग्रैजुएट बैच में एकमात्र दलित थीं। बिना जीवन साथी के अपने बच्चे को पाल रहीं मोहनन अपने परिवार की पहली व्यक्ति हैं, जो यूनिवर्सिटी तक पहुंची हैं। उन्होंने कहा है कि दाखिला लेने से पहले उन्हें आशंका नहीं थी कि यूनिवर्सिटी में इतना भेदभाव होगा। इसी घटना की रिपोर्टिंग के क्रम में मीडिया से बातचीत में कई दलित छात्रों ने कहा कि बहुत बार छात्रों को असेसमेंट में फेल कर दिया जाता है और पोस्टडॉक्टरल स्टडीज के लिए बहुत से सुपरवाइजर हमारे गाइड बनने से ही इनकार कर देते हैं। क्या इस बात की पूरी जांच नहीं होनी चाहिए? अगर यह सच है, तो सुधार के उपाय अवश्य उठाए जाने चाहिए।
नया इण्डिया
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