सम्पादकीय

राष्ट्रीय स्तर के नेता यशवंत सिन्हा का क्षेत्रीय दल TMC में शामिल होना क्या कहानी बयां करता है?

Gulabi Jagat
16 March 2021 7:25 AM GMT
राष्ट्रीय स्तर के नेता यशवंत सिन्हा का क्षेत्रीय दल TMC में शामिल होना क्या कहानी बयां करता है?
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पूर्व विदेश मंत्री यशवंत सिन्हा (Yashwant Sinha) शनिवार को तृणमूल कांग्रेस (TMC) में शामिल हो गए

पूर्व विदेश मंत्री यशवंत सिन्हा (Yashwant Sinha) शनिवार को तृणमूल कांग्रेस (TMC) में शामिल हो गए. यशवंत सिन्हा 2018 में नरेन्द्र मोदी-अमित शाह से खफा हो कर भारतीय जनता पार्टी को अलविदा कह चुके थे. यहां सिन्हा का किसी और पार्टी में शामिल होना बड़ी बात नहीं है, उनका तृणमूल कांग्रेस में शामिल होना थोड़ा चौंकाने वाला फैसला ज़रूर था. एक राष्ट्रीय स्तर का नेता जिसे लोग विदेश में भी जानते हों, उसका एक क्षेत्रीय दल में शामिल होना ज़रा अटपटा ज़रूर लगता है.

सिन्हा मूल रूप से बिहार के हैं और अब हजारीबाग जो झारखण्ड का हिस्सा है, वहां के निवासी हैं. पूर्व में वह बिहार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष रह चुके हैं. इस लिहाज से अगर वह बिहार या झारखण्ड के किसी पार्टी में शामिल होते तो बात समझी जा सकती थी. सवाल है कि फिर उन्होंने राजनीति में नई पारी खेलने के लिए तृणमूल कांग्रेस को ही क्यों चुना?
यशवंत सिन्हा ने तृणमूल को नहीं, TMC ने उनको चुना
यह सवाल ही गलत है. सिन्हा ने तृणमूल कांग्रेस नहीं चुना, बल्कि तृणमूल कांग्रेस ने उन्हें चुना है. इस कदम के पीछे पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस अध्यक्ष ममता बनर्जी के राजनीतिक सलाहकार प्रशांत किशोर का दिमाग साफ दिख रहा है. तृणमूल कांग्रेस से नेताओं का पलायन अभी भी जारी है और सभी को बीजेपी गले लगा रही है. चुनाव के दौरान यह पलायन तृणमूल कांग्रेस के लिए किसी सिरदर्द से कम नहीं था, क्योंकि माहौल ऐसा बनता जा रहा था कि तृणमूल कांग्रेस एक डूबती नाव है जिसमे पार्टी के बड़े-बड़े नेता भी अब सवारी नहीं करना चाहते.
5 वीं पार्टी है TMC
तृणमूल कांग्रेस यशवंत सिन्हा के लिए उनके 36 साल के राजनीतिक सफर में पांचवीं पार्टी है. सिन्हा के राजनीतिक सफर की शुरुआत जनता पार्टी के साथ हुई थी, जनता पार्टी का जनता दल में विलय हो गया और जब 1990 में चंद्रशेखर ने जनता दल तोड़ कर समाजवादी जनता पार्टी नाम का दल गठित किया और कांग्रेस पार्टी के सहयोग से प्रधानमंत्री बने तो यशवंत सिन्हा उस सरकार में वित्त मंत्री बने. ज्ञात हो कि चंद्रशेखर सरकार ने विदेश में भारत का सोना गिरवी रख कर सरकार चलाई थी और भारत विदेशी क़र्ज़ को इस तरह चुकाने में सक्षम रहा था. अब भारत का सोना विदेश में गिरवी रखना यशवंत सिन्हा द्वारा लिया गया देश हित में सही कदम था या गलत, यह आज की चर्चा का विषय नहीं है.
वाजपेयी सरकार में थे मंत्री
जनता परिवार डूब गया और सिन्हा बीजेपी में शामिल हो गए. बीजेपी में उन्हें सम्मान मिला और वाजपेयी सरकार में वह पहले वित्त मंत्री और फिर विदेश मंत्री रहे. उनकी गिनती उन दिनों बीजेपी के बड़े नेताओं में और अटल बिहारी वाजपेयी के करीबियों में होती थी. विदेश मंत्री के रूप में उनका कार्य सराहनीय रहा, खास कर भारत-अमेरिका के संबंधों में पूर्व की कटुता ख़त्म कर मधुर संबंध बनाने की दिशा में, जब दस वर्षों के बाद 2014 में केंद्र में एक बार फिर से बीजेपी सत्ता में आई तो मंत्रिमंडल के गठन के सवाल पर कई बुजुर्ग नेता खफा दिखे. नरेन्द्र मोदी ने प्रधानमंत्री बनने के बाद फैसला लिया की 75 वर्ष से अधिक उम्र ने नेता मंत्री नहीं बनेगे, बल्कि पार्टी और सरकार का मार्गदर्शन करेंगे. इस सूचि में लाल कृष्णा अडवाणी, मुरली मनोहर जोशी समेत यशवंत सिन्हा का नाम भी शामिल था.
यशवंत सिन्हा राजनीति से अभी नहीं लेना चाहते रिटायरमेंट
मोदी ने सिन्हा को खुश करने के लिए उनके सांसद बेटे जयंत सिन्हा को अपने मंत्रिमंडल में राज्य मंत्री बनाया, पर यशवंत सिन्हा को यह कहां मंज़ूर था. उसी दिन से वह मोदी और बीजेपी में खिलाफ हो गए और धीरे-धीरे बीजेपी ने उनकी दूरियां और खटास बढ़ती चली गई. सिन्हा किसी भी दल में शामिल हो सकते थे, DMK में भी, बस उन्हें एक सम्मानजनक आमंत्रण की प्रतीक्षा थी. 83 वर्ष की उम्र में फिलहाल सिन्हा रिटायर होने के मूड में नहीं हैं. उनकी इच्छा एक बार फिर से केंद्र के राजनीति में सक्रिय होने की थी.
राज्यसभा में जाएंगे सिन्हा?
प्रशांत किशोर ने सोचा क्यों ना बीजेपी को थोड़ा झटका दिया जाए और यशवंत सिन्हा को तृणमूल कांग्रेस में शामिल होने के लिए राजी कर लिया. सौदा साफ़ है, अगर तृणमूल कांग्रेस एक बार फिर से सरकार बनाने में सक्षम रही तो दिनेश त्रिवेदी का तृणमूल कांग्रेस और राज्यसभा से इस्तीफा देने से खाली हुई सीट से यशवंत सिन्हा को राज्यसभा भेजा जाएगा, ताकि वह बीजेपी और मोदी की नाक में दम करते रहें.
क्या मिलेगा चुनावी फायदा?
चूंकि सिन्हा का बंगाल से दूर-दूर तक कोई संबंध नहीं है. पर तृणमूल कांग्रेस को एक झुनझुना मिला गया है जो वह जनता के बीच बजाती देखेगी कि अटल बिहारी वाजपयी के करीबी यशवंत सिन्हा अब तृणमूल कांग्रेस में शामिल हो गए हैं, ज़मीनी स्तर पर या मतों के लिहाज से तृणमूल कांगेस को सिन्हा के आने से कोई फायदा नहीं मिलने वाला है, हां बीजेपी के खिलाफ पब्लिसिटी के लिए एक टॉपिक ज़रूर मिल गया है. सिन्हा किस पार्टी में शामिल हुए यह उनका निजी फैसला है और बीजेपी ने भी उनके खिलाफ कुछ नहीं कहा है. शायद ज़रुरत ही नहीं है, क्योकि उनका तृणमूल कांग्रेस में शामिल होना चुनाव के मद्देनज़र कोई मायने नहीं रखता.
370 हटाने के विरोध में दे चुके हैं बयान
संभव है कि सिन्हा राज्यसभा के सदस्य भी बन जाएं. पर उम्मीद यही की जानी चाहिए कि उनकी बीजेपी और मोदी से नाराज़गी देश के खिलाफ नाराज़गी में ना बदल जाए. 2019 में एक सिटीजन ग्रुप के सदस्य के रूप में सिन्हा मोदी सरकार द्वारा धारा 370 खत्म करने और जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य से केन्द्र शासित प्रदेश बनाये जाने के बाद श्रीनगर गए थे. वहां जा कर वह आग उगलते दिखे और जो कुछ भी कहा उससे पाकिस्तान ज्यादा खुश दिखा था. उम्मीद यही की जानी चाहिए की एक पूर्व विदेश मंत्री होने के कारण यशवंत सिन्हा को देश हित की चिंता रहेगी और एक 'भद्रो मानुष' की तरह भद्र भाषा में ही सरकार और मोदी की आलोचना करेंगे.
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