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किसी भी समाज में क्या चल रहा है केवल 3 लोगों से बातचीत करके अंदाजा नहीं लगाया जा सकता है
संयम श्रीवास्तव।
किसी भी समाज में क्या चल रहा है केवल 3 लोगों से बातचीत करके अंदाजा नहीं लगाया जा सकता है. पर जब देश की राजधानी की एक प्रमुख मस्जिद के इमाम, जामिया जैसी यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर और कई मुस्लिम संगठनों से जुड़े एक्सपर्ट हों तो उनकी राय केवल अल्पसंख्यक मुस्लिम समुदाय के लिए ही नहीं पूरे हिंदुस्तान के लिए महत्वपूर्ण हो जाती है. दरअसल किसी भी समाज के लिए इस तरह के लोग किसी खास विषय पर जनमत का निर्माण करते हैं. आम जनता इनके मुंह से निकली बातों पर चिंतन-मनन करती है और फिर अपनी राय बनाती है. और ये लोग खुद अपनी राय अपने समाज के लोगों के हित और उनकी खुशी को देखकर बनाते हैं. दरअसल ये लोग ही अपने समाज के असली नेता होते हैं.
इन तीनों खास लोगों से बातचीत कर ऐसा लगा कि सभी अपनी कौम के साथ देश की भलाई ही चाहते हैं, बस सबका सोचने का तरीका अलग है. देश और सरकार के खिलाफ जाने का इनका कोई इरादा नहीं है. और इन्हें विश्वास भी है कि सरकार वही कर रही है जो आम मुसलमान चाहता है. ये जानते हुए भी सरकार में इस समय भारतीय जनता पार्टी की सरकार है सभी को भरोसा है कि सरकार कोई ऐसा फैसला लेगी ही नहीं जो मुस्लिम समाज के खिलाफ जाएगा. मॉब लिंचिंग और मुसलमानों को गद्दार कहने वालों से नाराजगी जरूर है पर देश के लिए मर मिटने का जज्बा भी है.
ना तालिबान का विरोध, ना समर्थन. जिस पक्ष में हमारी सरकार रहेगी हम उसके साथ हैं : प्रोफेसर इक्तिदार मोहम्मद खान, जामिया
हिंदुस्तान का मुसलमान अपने देश की पॉलिसी के साथ रहता है, क्योंकि हमारा धर्म, हमारा कुरान हमें यही सिखाता है कि जिस मुल्क में रहो, हमेशा उस मुल्क के साथ वफादार रहो. पर दुनिया में इस्लाम एक है जो कुरान से चलता है कोई मौलवी जो अपनी निजी राय रखता है उसे फतवा कहते हैं और फतवा को मानना हर मुसलमान के लिए जरूरी नहीं है. यह बात अलग है कि किसी मुल्क में वहां की मेजॉरिटी, वहां के हालात के हिसाब से कुछ मौलवियों ने सो कॉल्ड इस्लामिक शासन में कुछ नियम बना दिए, लेकिन हम हिंदुस्तान में रहते हैं जो एक सेक्युलर मुल्क है और यहां चीजें संविधान के हिसाब से चलती हैं.
-तालिबान को लेकर कोई बात ही नहीं है. बात है हिंदुस्तान के फायदे में क्या है और उसके फायदे में क्या नहीं है? हमने अफगानिस्तान में हजारों करोड़ों के निवेश किए हैं. इसलिए हमें यह देखना होगा कि वह निवेश बर्बाद ना हो. हम दुनिया भर में एक शांतिप्रिय मुल्क हैं जो कहता है जियो और जीने दो. तालिबान से हमारा कोई ज्यादा ताल्लुक नहीं है. इसलिए हमें उस पर ज्यादा एनर्जी बर्बाद करने की जरूरत नहीं है. जैसा कि आजकल बीते 15 दिनों से टीवी चैनलों पर देखा जा रहा है.
-फिल्म एक्टर नसीरुद्दीन शाह ने जो कहा है वह बिल्कुल सही कहा है. हम उनके साथ हैं कि जो चीज हमारे मुल्क के हक में है हमें उसके साथ रहना होगा. अगर जरूरत पड़ी तो आप हिंदुस्तान के 30 करोड़ मुसलमानों को खड़ा कर दीजिए हम तालिबान से मुकाबला कर लेंगे. इसमें कोई मसला नहीं है. हमारे मुल्क के साथ अगर कोई ज्यादती करेगा तो हम आगे बढ़ कर कुछ भी करने को तैयार हैं. अपने मुल्क की हिफाजत के लिए. जहां हमें अपनी पूरी मजहबी आजादी मिली है वहां हमारा मजहबी फर्ज बनता है कि हम अपने मुल्क की रक्षा करें. हमें अपनी सरकार पर भरोसा करना चाहिए. क्योंकि वह यकीनन हमारे मुल्क की बेहतरी के लिए सोचती है.
-तालिबान की तारीफ करना या विरोध करना मैं इस बात पर नहीं जाना चाहता. मैं सिर्फ यह कहना चाहता हूं कि जो हमारी सरकार कहेगी जिस पक्ष में हमारी सरकार रहेगी हम उसके साथ हैं. और सरकार के साथ सिर्फ मुसलमानों को ही नहीं बल्कि सभी को होना चाहिए, सभी हिंदुस्तानियों को होना चाहिए. अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों पर जो देश के खिलाफ सरकार के खिलाफ जाएगा वह देशद्रोही है. जो लोग तालिबान का सपोर्ट कर रहे हैं वह मुनासिब नहीं है. हमें अपने मुल्क की पॉलिसी के साथ रहना चाहिए.
-तालिबान में मुसलमानों का कोई इंटरेस्ट नहीं है. ना उनसे उनको कोई फायदा है ना नुकसान है. हमारा फायदा और हमारा नुकसान हमारे मुल्क की पॉलिसी में है, और हम अपने देश के साथ हैं. हमें बेगानी शादी में अब्दुल्ला दिवाना की तरह नहीं दिखना चाहिए. मैं जितना नमाज को अहमियत देता हूं, उतनी ही अहमियत अपने मुल्क को देता हूं. जो लोग अपनी नमाज को अहमियत देते हैं और अपने मुल्क से गद्दारी करते हैं वह किसी भी मायने में सच्चे मुसलमान नहीं हो सकते.
-दूसरी बात हमारा इस्लाम कहता है कि अगर आप किसी ऐसे देश में हैं जहां आपको अपने मजहब के हिसाब से नहीं चलने दिया जा रहा है. आप की सुन्नत को फॉलो नहीं करने दिया जा रहा है तो आप वहां से माइग्रेट कर जाइए. जैसे 1947 में पाकिस्तान ने झूठ बोलकर बंटवारा कर लिया और यहां से 1.5 करोड़ मुसलमान पाकिस्तान पहुंच गए. लेकिन आज भी उन्हें पाकिस्तानी का दर्जा नहीं प्राप्त है, उन्हें आज भी मुहाजिर कहा जाता है. लेकिन मैं हिंदुस्तानी हूं क्योंकि मेरे दादा परदादा यह मुल्क नहीं छोड़ कर गए. और वो उनका एक बेहतर फैसला था.
-मुसलमान पूरी दुनिया में है कहीं शासक हैं, तो कहीं किसी देश के बाशिंदे. हम हिंदुस्तान में रहते हैं जहां हमें अपने मजहब के हिसाब से चलने की पूरी आजादी है. यहां हम सरकारी नौकरियों में हैं जैसे हिंदू हैं. यहां हम वैसे ही पढ़ाई कर सकते हैं जैसे हिंदू पढ़ सकते हैं. हमें पानी पीने का अधिकार वैसे ही है जैसे हिंदुओं को है. यह अलग बात है कि कभी पावर में कोई ऐसा व्यक्ति आ जाए जो कम्युनल हो और आपके मजहब का है तो आपकी बेहतरी के लिए काम करे और मेरे मजहब का है तो मेरी बेहतरी के लिए काम करे. यह दोनों बातें गलत हैं. हमें 1947 में चुनने की आजादी थी, हमने हिंदुस्तान चुना. हिंदुस्तान एक सेक्युलर देश है. यहां जो भी गलत करेगा उसे सजा मिलेगी. कुछ लोग जरूर हैं जो कुरान को हदीस को अपने हिसाब से लोगों के सामने रखते हैं और एक अलगाव की सियासत करते हैं. हम उन्हें नहीं मानते. ऐसे लोग हर मजहब में हैं चाहे हिंदू हो या मुसलमान.
जो मॉब लिंचिंग कर रहे हैं उन्हें कोई क्यों नहीं बोलता? वो भी तो आतंक फैला रहे हैं : मुफ्ती मुकर्रम साहब, फतेहपुरी मस्जिद
अफगानिस्तान में तालिबान के कब्जे पर कोई मुसलमान जश्न नहीं मना रहा है. बॉलीवुड एक्टर नसीरुद्दीन शाह मुसलमानों के लीडर नहीं हैं जो इनकी बात से फर्क पड़े. नसीरुद्दीन शाह एक आम आदमी हैं. भारत में 20 करोड़ मुसलमान हैं उसमें से कोई एक मुसलमान कुछ बोल देता है तो वह उसका एक निजी मामला होता है, उससे पूरी मुस्लिम कौम का कोई वास्ता नहीं. मुसलमानों ने तालिबान की तारीफ कभी नहीं की, हिंदुस्तान का मुसलमान देश के साथ है. हामिद करजई मुसलमान हैं, अशरफ गनी मुसलमान हैं, इमरान खान मुसलमान हैं. जब हम इन लोगों की तरफ नहीं देखते तो तालिबान की तरफ क्यों देखेंगे जो कि तालिबान भी तो मुसलमान ही है.
-आज दुनिया तालिबान के साथ है. यूएनओ तालिबान के साथ है तो हम तालिबान की बुराई क्यों करें. यूएनओ ने उनको दहशतगर्दी के लिस्ट से निकाल दिया, अमेरिका ने भी उन्हें दहशतगर्दी की लिस्ट से निकाल दिया. भारत भी कहता आया है कि हम उन्हें कभी दहशतगर्द नहीं कहते थे. इस्लाम अलग-अलग नहीं है. पूरी दुनिया का इस्लाम एक है, हमारे एक प्रॉफेट हैं और एक कुरान है. हिंदुस्तान का मुसलमान वैसे ही मुसलमान है जैसे दुनिया के मुसलमान हैं.
-आप सऊदी अरब में देखिए वहां कितने हिंदू कितने सिख हैं क्या वहां कोई मुसलमान किसी हिंदू या सिख को मार रहा है. अफगानिस्तान में भी एक साथ आज सिख-मुसलमान रह रहे हैं. दिल्ली गुरुद्वारा समिति के अध्यक्ष मनजिंदर सिरसा जी का एक बयान है, जिसमें वह कह रहे हैं कि काबुल के गुरुद्वारे में तालिबानी लीडर आए और उन्होंने गुरुद्वारे के प्रधान जी से कहा कि आप को डरने की कोई जरूरत नहीं है. आप लोग यहां सुरक्षित तरह से रहिए. वहां के सिख भाइयों के बयान को अगर आप देखेंगे तो वह हमेशा कहते हैं कि आज से 20 साल पहले भी जब तालिबान का शासन था तब भी यह हमें कुछ नहीं कहते थे और आज भी कुछ नहीं कहते हैं. काबुल में आज तक जो भी हुकूमत आई है उसने सिख भाइयों को कभी कुछ नहीं कहा.
-चाहे हिंदुस्तान का मुसलमान हो या दुनिया का मुसलमान वह हर आदमी से प्यार करता है. एक होता है धर्म एक होती है इंसानियत. धर्म के हिसाब से हम भले अलग हों लेकिन इंसानियत के नाते तो हम सब एक साथ हैं. हर इंसान को हर इंसान से दोस्ती रखनी चाहिए. हालांकि कुछ खबरें जरूर आती हैं जब लोग मॉब लिंचिंग कर देते हैं जैसे कि आजकल कई खबरें आ रही है कि जो रेहड़ी पटरी वाले मुसलमान हैं उनके साथ बहुत ज्यादतियां हो रही हैं. जो लोग ऐसा कर रहे हैं वह भी तो आतंक फैला रहे हैं. उन्हें क्यों कोई नहीं देखता. मैं नसीरुद्दीन शाह को नहीं जानता मैं उन्हें नहीं मानता. हम प्रेम प्यार वाले लोग हैं. हम आपके लिए भी दुआ करते हैं और उन लोगों के लिए भी दुआ करते हैं.
हिंदुस्तान के मुसलमान उसी के पक्ष में रहेंगे जो देश चाहेगा : हमीद नोमानी
नसीरुद्दीन शाह जैसे लोग अपनी फिल्मों के लिए फिल्मी दुनिया में लोकप्रिय हैं. लेकिन इस्लाम और मुसलमानों की जानकारी के लिए ये लोग फेमस नहीं है उन्हें मुसलमान और इस्लाम की कोई जानकारी नहीं है. ना देश स्तर पर न विश्व स्तर पर. इसलिए ऐसे लोगों की बातों पर ज्यादा तवज्जो नहीं देनी चाहिए. तालिबान की जीत पर जश्न और मातम का मसला हिंदुस्तान में नहीं है. यह मसला अफगानिस्तान के लोगों का है. हिंदुस्तान के मुसलमान उसी के पक्ष में रहेंगे जो हिंदुस्तान की सरकार का कदम होगा. हिंदुस्तान की सरकार भी फिलहाल अफगानिस्तान के मसले पर बहुत फूंक फूंक कर कदम रख रही है, क्योंकि उसे डर है कि अफगानिस्तान में लगी उसकी हजारों करोड़ की पूंजी कहीं बर्बाद ना हो जाए. अफगानिस्तान हमारा पड़ोसी मुल्क है इसलिए वहां जो कुछ भी घटनाएं घटेंगी उसका असर हिंदुस्तान पर भी होगा. इसलिए इस मुद्दे को हिंदू मुस्लिम या इस्लाम के नजरिए से ना देखा जाए बल्कि इसे भारत के हित के नजरिए से देखना चाहिए.
-तालिबान को लेकर हिंदुस्तान का नजरिया सुरक्षा परिषद में दिए उसके बयान से समझ आता है. दूसरी बात यह कि हिंदुस्तान ने कभी भी तालिबान को आतंकी संगठन नहीं माना है ना पहले ना अब. यह सही पॉलिसी है. क्योंकि अफगानिस्तान का इतिहास अगर हम उठा कर देखें तो पता चलेगा कि वहां इस्लाम और मुसलमान का नाम जरूर लिया जाता है. लेकिन इतिहास में वहां कबीलाई सिस्टम हुआ करता था. इसलिए कभी वहां कबीलाई सिस्टम सामने आ जाता है और कभी इस्लामिक सिस्टम.
-नसीरुद्दीन शाह का बयान के इस्लाम को मॉडर्नाइज कर दिया जाए, यह स्वीकार करने लायक नहीं है. हर देश में अलग-अलग इस्लाम नहीं होता है. पूरी दुनिया का इस्लाम एक है. फिल्मी दुनिया एक काल्पनिक दुनिया है इसलिए नसीरुद्दीन शाह जैसे फिल्मी कलाकार अगर इस्लाम के बारे में कुछ भी बोलते हैं तो उसके बारे में हम ध्यान नहीं देते. नसीरुद्दीन शाह जैसे लोग ना इस्लाम को जानते हैं ना मुस्लिम समाज को. अफगानिस्तान में मसला तालिबान का नहीं है, मुद्दा सरकार का और शासन का है. 1994 से पहले तालिबान को कौन जानता था. तालिबान को खड़ा करने वाला अमेरिका ही है. नसीरुद्दीन शाह फिल्मी दुनिया के लोग हैं वह अपनी दुनिया के बारे में बात करें, इस्लाम और मुसलमान के बारे में ना उन्हें कोई जानकारी है ना ही उन्हें इसके बारे में कुछ बोलने का हक है, क्योंकि उनका इस्लाम से कुछ लेना देना ही नहीं है.
-फिल्मी दुनिया के लोग इस्लाम की दुनिया से बिल्कुल कटे हुए लोग हैं. इसलिए जब यह इस्लाम पर कोई बयान देते हैं तो इस पर हमें देखना चाहिए कि इनके बयानों पर हमें कितना रिएक्ट करना चाहिए कितना नहीं. इसलिए नसीरुद्दीन शाह की बातें बिल्कुल भी ध्यान देने योग्य नहीं है. ना इस्लाम के बारे में, ना मुस्लिम समाज के बारे में, ना अफगानिस्तान के बारे में, ना भारत के बारे में. मुस्लिम समाज सरकार की जो पॉलिसी होगी भारत के हित में उसके साथ रहेगा. यह सत्ता और सरकार का मामला है. सरकार जो भी देश हित में कर रही है वह सही है. सरकार अगर देश हित में तालिबान से बातचीत करती है तो वह भी सही है.
-नसीरुद्दीन शाह को बताना चाहिए कि उनके कहने का मतलब क्या था वह किस तरह का आधुनिक इस्लाम चाहते हैं, सिर्फ शब्दों का जाल फेंक देने से कुछ नहीं होता है, उन्होंने जो बोला उसे क्लियर करना चाहिए था. इस्लाम में कहीं भी महिलाओं की शिक्षा पर रोक लगाने की बात नहीं की गई है. ना ही अफगानिस्तान में महिलाओं की शिक्षा पर रोक है. ना हजरत मोहम्मद साहब के समय महिलाओं के शिक्षा पर रोक था ना आज है और ना कभी हो सकता है. हालांकि इस पुरुष प्रधान समाज में कभी-कभी कुछ नियम जबरन बना दिए जाते हैं उनके खिलाफ हम सब को एक होने की जरूरत है.
-अपने तहजीब तमीज लोक लाज को बचाने के लिए हिंदू मुस्लिम दोनों समाज संघर्ष करते हैं. आखिरकार जब भोजपुरी गीतों में नग्नता ज्यादा बढ़ गई तो इसको लेकर भी तो विरोध हो रहा है इसलिए हर समाज को अपनी परंपराओं और तमीज तहजीब को बचाने का हक है. लड़का-लड़की के लिए शिक्षा व्यवस्था अलग अलग होनी चाहिए यह तो खुद दयानंद सरस्वती ने लिखा है. यह एक आदर्श है इसे खत्म नहीं किया जा सकता है. हां अगर कहीं कुछ गलत है तो उसमें सुधार जरूर किया जा सकता है.
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