सम्पादकीय

यात्रा से क्या मिला

Triveni
26 Dec 2022 4:51 AM GMT
यात्रा से क्या मिला
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फाइल फोटो 

यात्रा से क्या मिला

जनता से रिश्ता वेबडेस्क | भारत जोड़ो यात्रा 108 दिनों में करीब 3000 किलोमीटर की दूरी नापते हुए शनिवार को दिल्ली पहुंची। यहां इस यात्रा का पहला चरण पूरा हुआ बताया गया। दूसरा चरण 3 जनवरी से शुरू होने वाला है। इन 108 दिनों में इस यात्रा ने राहुल गांधी को क्या दिया, देश और देशवासियों को लेकर उनकी समझ कितनी समृद्ध हुई, यह भी एक महत्वपूर्ण सवाल है, लेकिन इसका सही जवाब आने वाले दिनों में राहुल गांधी के फैसलों और उन फैसलों के असर के माध्यम से देश दुनिया के सामने खुलेगा। इस बीच, देश के अलग-अलग हिस्सों से गुजरती इस यात्रा ने देशवासियों पर, उनके मन मिजाज पर और, कांग्रेस तथा राहुल गांधी के प्रति उनकी धारणा पर कोई असर डाला है या नहीं? अगर हां तो वह असर किस तरह का है?

क्या वह तात्कालिक है या उसके कुछ समय तक टिके रहने के भी आसार हैं? ये सवाल भी कठिन और जटिल हैं लेकिन इनकी थोड़ी-बहुत पड़ताल की जा सकती है और जवाब के रूप में कुछ ऐसे ऑब्जर्वेशन भी दिए जा सकते हैं, जिन पर आगे बहस की जा सके या जिन्हें समय की कसौटी पर चढ़ाकर नतीजे का इंतजार किया जा सके। इस क्रम में पहली बात यह नोट की जा सकती है कि एक के बाद एक चुनावी हार से जूझती और परसेप्शन की लड़ाई में संघ-बीजेपी से शिकस्त खाती कांग्रेस और इसके नेता राहुल गांधी पर यह आरोप लग रहा था कि वह अपने सामने मौजूद राजनीतिक चुनौतियों को लेकर गंभीर नहीं हैं।
100 दिनों से ज्यादा की इस यात्रा ने राहुल गांधी की उस छवि को निस्संदेह कमजोर किया है। इस दौरान देश के अलग-अलग हिस्सों से गुजरते हुए, लोगों की बातें सुनते हुए और उन्हें संबोधित करते हुए वह अलग-अलग तरीकों से यह बात दोहराते रहे हैं कि उनकी नजर में कैसे संघ-बीजेपी से भारतीयता को खतरा है। उनकी इस धारणा से सहमत हुआ जाए या नहीं, पर इतना जरूर है कि लोग अब उनकी बात को पहले से ज्यादा गंभीरता से सुन रहे हैं।
अगर विपक्षी स्पेस की बात करें तो राहुल गांधी ने भारत जोड़ो यात्रा को चुनावी हार-जीत से अलग रखकर यह भी सुनिश्चित किया कि बीजेपी से परेशानी महसूस करती लेकिन कांग्रेस से दूर खड़ी आबादी भी उन तक पहुंचने में संकोच न करे। यह इस यात्रा का एक अतिरिक्त फायदा कहा जा सकता है। लेकिन एक राजनीतिक पार्टी के तौर पर कांग्रेस के सामने मौजूद चुनौतियों के संदर्भ में देखें तो इतना काफी नहीं है। सबसे बड़ा सवाल है कि क्या राहुल के हिस्से में आए लोगों के इस सद्भाव को वोट की शक्ल में बदला जा सकता है?
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