सम्पादकीय

यह कैसा विशेष सत्र

Rani Sahu
14 Sep 2023 6:59 PM GMT
यह कैसा विशेष सत्र
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By: divyahimachal
‘खोदा पहाड़, निकली चुहिया और वह भी मरी हुई…।’ संसद के विशेष सत्र की घोषित कार्यसूची पर यह कहावत सटीक बैठती है। मोदी सरकार ने अचानक संसद सत्र की घोषणा की थी, जबकि मानसून सत्र 11 अगस्त को ही स्थगित किया गया था। परंपरा के मुताबिक अब शीतकालीन सत्र आना है। सरकार या तो घोषित करे कि शीतकालीन सत्र नहीं होगा। फिर सवाल है कि लेखानुदान कब पारित किया जाएगा? संपूर्ण बजट तो नई सरकार बनने के बाद ही पारित किया जा सकता है। यदि पारित आर्थिक बजट नहीं होंगे, तो सरकार खर्च कैसे चलाएगी और सरकारी अफसरों, कर्मचारियों के वेतन कैसे दिए जाएंगे? संवैधानिक वर्ग के पदेन चेहरों के वेतन-भत्ते भी लटक कर रह जाएंगे। हमारी व्यवस्था संसदीय कार्यवाही और उसके निर्णयों पर ही आश्रित है। बहरहाल 13 सितंबर को संसद सत्र की कार्यसूची जारी की गई। 17 सितंबर को सर्वदलीय औपचारिक बैठक है। इसी दिन प्रधानमंत्री का जन्मदिवस और ‘विश्वकर्मा जयंती’ है। प्रधानमंत्री नए संसद भवन पर राष्ट्रीय ध्वज ‘तिरंगा’ फहराएंगे। ध्वजारोहण के बाद ही संसद में कामकाज शुरू होगा, क्योंकि देश के ‘फ्लैग कोड’ के मुताबिक, किसी भी सरकारी इमारत को राष्ट्रीय ध्वज फहराने के बाद ही यह दर्जा मिल पाता है।
18 सितंबर से संसद का विशेष सत्र आरंभ होगा। हालांकि यह संयुक्त अधिवेशन के बजाय ‘संयुक्त आयोजन’ के रूप में आहूत किया जाएगा। उस दौरान राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू भी उपस्थित रह सकती हैं। इसे राष्ट्रपति की ‘गरिमामय मौजूदगी’ कहा गया है। गणेश चतुर्थी 19 सितंबर को नए संसद भवन में कामकाज आरंभ किया जाएगा। बहरहाल सत्र में कुल चार बिल पारित किए जाने हैं। इनमें मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य दो आयुक्तों की नियुक्ति और सेवा-शर्तों वाला बिल है, जिसे मानसून सत्र में लोकसभा में पेश किया गया था। इस संदर्भ में देश के प्रधान न्यायाधीश जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और संवैधानिक पीठ का भारत सरकार पर दबाव था कि चुनाव आयुक्तों को चुनने की एक संवैधानिक प्रक्रिया होनी चाहिए। सरकार अपनी मर्जी से किसी को भी चुनाव आयुक्त नहीं बना सकती। सर्वोच्च अदालत का सुझाव था कि प्रधानमंत्री, लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष और प्रधान न्यायाधीश मिलकर चयन करें कि कौन चुनाव आयुक्त के पद पर नियुक्त किया जा सकता है। मोदी सरकार ने इस फॉर्मूले को खारिज कर अपना ही पैनल बनाया है, जिसमें प्रधानमंत्री, कैबिनेट मंत्री और नेता प्रतिपक्ष होंगे। कोई भी कैबिनेट मंत्री प्रधानमंत्री की मानसिक पसंद और उनके फैसले के खिलाफ जाने का दुस्साहस कैसे कर सकता है? लोकसभा में फिलहाल नेता प्रतिपक्ष नहीं है। अलबत्ता विपक्ष में कांग्रेस संसदीय दल सबसे बड़ा है, लिहाजा उसके नेता अधीर रंजन चौधरी को ऐसे पैनल में रखा जाता है। यह उन पर है कि वह शामिल होते हैं अथवा नहीं। संभावना है कि संसद में यह बिल पारित होने के बावजूद सर्वोच्च अदालत की न्यायिक पीठ संवैधानिक समीक्षा के नाम पर हस्तक्षेप कर सकती है। बहरहाल इसके अलावा, अधिवक्ता संशोधन बिल और प्रेस एवं सावधि प्रकाशनों के पंजीकरण का संशोधन बिल मानसून सत्र के दौरान राज्यसभा में पारित किए जा चुके हैं।
डाकघर संशोधन बिल भी मानसून सत्र में राज्यसभा में पेश किया जा चुका है। हमारा मानना है कि ये बिल संसद के शीतकालीन सत्र में भी पारित किए जा सकते थे। इनकी न्यूनतम अवधि 6 माह है और अभी सरकार भी नहीं बदली है। लोकसभा और राज्यसभा के सदन यथावत निरंतर हैं, लिहाजा इन बिलों के संदर्भ में ऐसी कोई तात्कालिक संवैधानिक अड़चन दिखाई नहीं देती कि संसद का विशेष सत्र बुलाना पड़ा। महिला आरक्षण बिल की बहुत चर्चा थी, क्योंकि यूपीए सरकार के दौरान वह बिल राज्यसभा में पारित किया गया था। उसके बाद लोकसभा भी दो बार संगठित की जा चुकी है और बिल को पारित किए करीब 15 साल गुजर चुके हैं। अब वह फैसला खारिज हो चुका है। राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति भी विभिन्न अवसरों पर कह चुके हैं कि सदनों और राजनीति में महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढऩा चाहिए। ऐसी तमाम चर्चाओं को मोदी सरकार ने खारिज कर दिया। ‘एक देश, एक चुनाव’ पर तो फिलहाल समिति काम कर रही है। यह ऐसा विशेष संसद सत्र होगा, जिसमें बेहद सामान्य मुद्दे और बिल पेश तथा पारित किए जाएंगे।
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