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- ये कैसी धर्म-संसद

हम सनातन, वैदिक, पौराणिक और प्राचीन भारतीय संस्कृति और सभ्यता के लोग साधु-संतों का बेहद सम्मान करते हैं। उन्हें आदरणीय मानते हैं और 'देवदूत' के रूप में स्वीकार करते हैं, लिहाजा उन्हें नमन् कर उनका अभिनंदन भी करते हैं। प्रतीकात्मक तौर पर प्रत्येक भगवाधारी, जटाधारी, मस्तक पर चंदन का लेप या बिंदी लगाए और रुद्राक्ष माला धारण किए व्यक्ति को हम साधु-संत के तौर पर ग्रहण करते हैं, लेकिन 'धर्म-संसद' के मंच से ऐसे भगवाधारी, तिलकधारी जब राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को गालियां देते हैं, हत्यारे नाथूराम गोडसे को वंदन कर उसके मंदिर बनाने का आह्वान करते हैं और एक समुदाय विशेष के नरसंहार की हुंकार भरते हैं, तो एक साथ कई मोहभंग होते हैं। कई आस्थाएं टूटती हैं और धारणाएं चटकती हैं। गांधी के राष्ट्रीय वंदन नौटंकी लगते हैं। भगवा लिबास का व्यक्ति साधु-संत नहीं, क्रूर दुर्जन प्रतीत होता है। सार्वजनिक मंच से ऐसे अपशब्दों का इस्तेमाल किया जाता है, जिन्हें लिखने को हमारी नैतिकता रोकती है। साधु के लिबास में ये शैतान दोनों हाथों में शस्त्र धारण करने का आह्वान भी करते हैं। किसी मंच पर सार्वजनिक रूप से भारत को 'हिंदू राष्ट्र' बनाने का संकल्प भी दिलाया जा रहा है और म्यांमार की तर्ज़ पर 'सामुदायिक सफाई' का अभियान छेड़ने की हुंकार भी भरी जा रही है।
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