सम्पादकीय

ये कैसी धर्म-संसद हैं!

Rani Sahu
28 Dec 2021 6:59 PM GMT
ये कैसी धर्म-संसद हैं!
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हम सनातन, वैदिक, पौराणिक और प्राचीन भारतीय संस्कृति और सभ्यता के लोग साधु-संतों का बेहद सम्मान करते हैं

हम सनातन, वैदिक, पौराणिक और प्राचीन भारतीय संस्कृति और सभ्यता के लोग साधु-संतों का बेहद सम्मान करते हैं। उन्हें आदरणीय मानते हैं और 'देवदूत' के रूप में स्वीकार करते हैं, लिहाजा उन्हें नमन् कर उनका अभिनंदन भी करते हैं। प्रतीकात्मक तौर पर प्रत्येक भगवाधारी, जटाधारी, मस्तक पर चंदन का लेप या बिंदी लगाए और रुद्राक्ष माला धारण किए व्यक्ति को हम साधु-संत के तौर पर ग्रहण करते हैं, लेकिन 'धर्म-संसद' के मंच से ऐसे भगवाधारी, तिलकधारी जब राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को गालियां देते हैं, हत्यारे नाथूराम गोडसे को वंदन कर उसके मंदिर बनाने का आह्वान करते हैं और एक समुदाय विशेष के नरसंहार की हुंकार भरते हैं, तो एक साथ कई मोहभंग होते हैं। कई आस्थाएं टूटती हैं और धारणाएं चटकती हैं। गांधी के राष्ट्रीय वंदन नौटंकी लगते हैं। भगवा लिबास का व्यक्ति साधु-संत नहीं, क्रूर दुर्जन प्रतीत होता है। सार्वजनिक मंच से ऐसे अपशब्दों का इस्तेमाल किया जाता है, जिन्हें लिखने को हमारी नैतिकता रोकती है। साधु के लिबास में ये शैतान दोनों हाथों में शस्त्र धारण करने का आह्वान भी करते हैं। किसी मंच पर सार्वजनिक रूप से भारत को 'हिंदू राष्ट्र' बनाने का संकल्प भी दिलाया जा रहा है और म्यांमार की तर्ज़ पर 'सामुदायिक सफाई' का अभियान छेड़ने की हुंकार भी भरी जा रही है।

ये तमाम गतिविधियां देश के संविधान में दी गई धार्मिक आस्था की आज़ादी, पंथनिरपेक्षता, कानून के राज आदि की व्यवस्था को खंडित करती हैं। करीब 10 दिन पहले उत्तराखंड के हरिद्वार में ऐसी धर्म-संसद का आयोजन किया गया था। हमने अनदेखी कर दी। अब छत्तीसगढ़ के रायपुर में उससे भी उग्र धर्म-संसद को देखा और सुना। उसकी आड़ में गांधी और संविधान को ही खारिज कर दिया गया। कुछ टीवी चैनलों ने साधुत्वधारी इन दुर्जनों के नफरती भाषणों का सीधा प्रसारण भी किया। साक्ष्य सार्वजनिक हैं, पुलिस ने सब कुछ देखा-सुना है, लेकिन अभी तक ऐसे किसी भी तत्त्व की गिरफ्तारी नहीं की गई है। यह निष्क्रियता और भी ज़हर उगलने को उत्प्रेरित करती है। महात्मा गांधी का सम्मान दुनिया करती है, तो भारत भी सम्मानित होता है। जिस देश को आज़ादी दिलाने में गांधी ने अपनी जि़ंदगी होम कर दी, आज उसी देश के कुछ अराजक तत्त्व राष्ट्रपिता के महान योगदान को खारिज कर रहे हैं। यह बिल्कुल भी स्वीकार्य नहीं है। ऐसे शैतानों के खिलाफ कोई वैधानिक कार्रवाई नहीं, यह सोच कर ही ग्लानि होती है कि व्यवस्था क्या है? कौन हैं ये कथित साधु-संत? देश के प्रधानमंत्री, गृहमंत्री और भाजपा नेतृत्व खामोश हैं। उन्होंने कान बंद कर लिए हैं और आंखें मूंद रखी हैं। व्याख्या की जा रही है कि यह जमात, भीड़ मुट्ठी भर है, लिहाजा नजरअंदाज़ किया जाए। हमारा मानना हैै कि ये भगवाधारी दुर्जन बहुसंख्यकवादी राजनीति के मोहरे हैं, जिन्हें एक रणनीति के तहत खेला जा रहा है।
संस्कृति और संविधान हमें सांप्रदायिक समभाव, मानवीय मूल्य, सहिष्णुता और 'वसुधैव कुटुम्बकम्' के पाठ पढ़ाते हैं, लेकिन धर्म-संसद के मंच पर धर्म के बजाय मारने, काटने के उन्माद भड़काए जा रहे हैं। ये कैसी धर्म-संसद हैं? ये कैसे साधु-संत और देवदूत हैं? ये हिंदू राष्ट्र के स्वयंभू प्रवक्ता कौन हैं? ये कुछ भी हो सकते हैं, लेकिन आचार्य, महाराज और साध्वी आदि विशेषणों के पात्र नहीं हो सकते। इन तत्त्वांे की हुंकारों की प्रतिक्रिया में ही हिंदू धर्म की तुलना बोको हराम और आईएसआईएस सरीखे बर्बर, हत्यारे आतंकी संगठनों से की जाती है। कुछ राजनीतिक दल औरंगज़ेब और जिन्ना की भाषा बोलते हुए पलट कर धमकियां देने लगते हैं। हमने उनकी भी कड़ी भर्त्सना की है। यह देश लोकतांत्रिक, सर्वजन हिताय और सुखाय और धर्मनिरपेक्ष है, लिहाजा ऐसी हुंकारों और दुष्प्रचारों की कोई गुंज़ाइश नहीं है। ऐसे तत्त्वों के नेताओं और संगठनों पर कानूनी पाबंदी थोपनी चाहिए। ऐसे संबोधनों के बाद देश के विभिन्न हिस्सों में सांप्रदायिक घटनाएं हुई हैं, जो रुझान देशहित में नहीं माना जा सकता। जो आज चिंगारियां लग रही हैं, यदि उन पर काबू नहीं पाया गया, तो आने वाले वक्त में ये सांप्रदायिक दावानल का रूप धारण कर सकती हैं। मारने-काटने का उन्माद पैदा करना किसी भी स्थिति में जायज नहीं है। ऐसे लोगों पर केस दर्ज करके कार्रवाई की जानी चाहिए। इस मसले पर विपक्ष भी सक्रिय हो गया है। सोनिया गांधी का कहना है कि जिन लोगों का आजादी की लड़ाई में कोई योगदान नहीं है, वे लोग देश में माहौल खराब कर रहे हैं। अगर सरकार इस विषय में कार्रवाई नहीं करती है तो विपक्ष को एक बड़ा मुद्दा मिल जाएगा।

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