सम्पादकीय

पश्चिमी देशों ने सोचा कि पाबंदियों के जरिए वे रूस को बर्बाद कर देंगे, लेकिन पुतिन ने इस दांव को उलट दिया

Rani Sahu
30 April 2022 12:03 PM GMT
पश्चिमी देशों ने सोचा कि पाबंदियों के जरिए वे रूस को बर्बाद कर देंगे, लेकिन पुतिन ने इस दांव को उलट दिया
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यूक्रेन युद्ध (Ukraine War) शुरू होने से ठीक पहले जब अमेरिका (America) ने रूस (Russia) पर शुरुआती पाबंदियां लगाई

के वी रमेश |

यूक्रेन युद्ध (Ukraine War) शुरू होने से ठीक पहले जब अमेरिका (America) ने रूस (Russia) पर शुरुआती पाबंदियां लगाई, तो सभी की निगाहें इस बात पर थीं कि मास्को इन प्रतिबंधों से कैसे निपटेगा. फरवरी और मार्च में रूस पर प्रतिबंधों की झड़ी लग गई, कयास थे कि लचर आर्थिक उपायों के कारण रूस अपने घुटनों पर आ जाएगा. लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ. पश्चिमी देशों का दांव, फिसड्डी साबित हुआ. ऐसा लगता है कि प्रतिबंध लगाने वाले पश्चिम देशों ने, आर्थिक युद्ध के मामले में रूस की क्षमता को कमतर आंका.
रूस, दुनिया का सबसे बड़ा प्राकृतिक गैस निर्यातक और तीसरा सबसे बड़ा तेल निर्यातक है. रूस की एनर्जी सप्लाई पर निर्भर अधिकतर यूरोपीय देशों ने पश्चिमी देशों, अमेरिका और ब्रिटेन सहित, द्वारा रूसी ऑयल व गैस के आयात पर लगाए गए प्रतिबंधों को मानने से इनकार कर दिया. जर्मनी ने कहा है कि वह साल के अंत तक ही रूसी तेल और गैस की खरीद बंद कर पाएगा. रूस के पास 30 साल लंबा, 400 बिलियन डॉलर की गैस सप्लाई डील भी है, जिससे उसका खजाना भरा रहता है. रूस को हर महीने चीन से एक बिलियन डॉलर मिलते हैं.
रूस को कीमतों में बढ़ोतरी से अच्छा मुनाफा हुआ है
युद्ध का पहला सिद्धांत, दुश्मन की युद्ध करने की क्षमता को कम या नष्ट करना है. पाबंदियों के जरिए, पश्चिमी देशों को रूस की चरमराती और लड़खड़ाती सेना को टारगेट करने के बजाए उसकी विशाल आर्थिक क्षमता को अधिक टारगेट करना चाहिए था, या हो सकता है कि उन्होंने ऐसी कोशिश की भी हो. लेकिन लगता है कि प्रतिबंधों से मास्को को फायदा हुआ. युद्ध और प्रतिबंधों ने सप्लाई को बाधित कर दिया और दुनियाभर में फ्यूल की कीमतें, जो पहले से ही दबाव में थीं, आसमान छू गईं, इससे श्रीलंका समेत कई देशों की हालत खस्ता हो गई है. अमेरिका की अगुवाई में 10 देश, दुनिया की कुल तेल सप्लाई का 72 फीसदी उत्पादन करते हैं. अमेरिका सहित, 85 देश शुद्ध आयातक हैं. इन देशों में मौजूद विशाल तेल भंडार के घरेलू उत्पादन से भी उनकी मांग पूरी नहीं हो पाती.
नतीजतन, इस वर्ष अभी तक वैश्विक क्रूड की कीमतों में 30 फीसदी से अधिक की वृद्धि हो चुकी है. ऊंची वैश्विक मांग के बीच, रूस से आपूर्ति की कमी की चिंताओं के कारण तेल की कीमतें 100 डॉलर प्रति बैरल से अधिक हो गई हैं. गैस की कीमतें भी कई साल के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई हैं. हालांकि, कीमतों में आई इस बढ़ोतरी से सभी ओपेक देशों को फायदा हुआ है और जहां तक बात रूस की है तो, उसके लिए यह युद्ध एक अभिशाप के बजाय एक वरदान साबित हो रहा है. तेल और गैस की बिक्री से राजस्व में जोरदार वृद्धि हुई है, जो पाबंदियों से ग्रसित इस देश को आर्थिक राहत के साथ-साथ फायदा भी पहुंचा रहा है.
Bloomberg के विश्लेषण के मुताबिक, 2022 में रूस का तेल और गैस का अनुमानित निर्यात 321 बिलियन डॉलर हो सकता है. The Guardian की रिपोर्ट का कहना है कि यूक्रेन के साथ दो महीनों के युद्ध के दौरान यूरोपीय यूनियन के देशों को बेचे जीवाश्म ईंधन से रूस ने अपनी आमदनी करीब दोगुनी कर ली है, रूस को कीमतों में बढ़ोतरी से अच्छा मुनाफा हुआ है, भले ही बिक्री की मात्रा में कमी आई है. The Guardian ने सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर (CREA) द्वारा शिपिंग और कार्गो आवाजाही के विश्लेषण का हवाला देते हुए बताया कि युद्ध शुरू होने के बाद से रूस ने तेल, गैस और कोयले के निर्यात से लगभग €62 बिलियन कमाया है.
कई खरीदारों मास्को की मांगों को स्वीकार करने के लिए तैयार हैं
यूरोपीय संघ के देशों ने, जो रूस पर प्रतिबंधों पर अमेरिका के साथ हैं, पिछले दो महीनों में लगभग €44 बिलियन के जीवाश्म ईंधन का आयात किया है, जबकि इन्होंने पिछले वर्ष €140 बिलियन का आयात किया था. इस हिसाब से उन्होंने प्रतिमाह लगभग €12 बिलियन का आयात किया. साथ ही, ऐसा लगता है कि रूस ने फैसला किया है कि यह अपने तेल, गैस और कोयले का उपयोग, जिन पर यूरोप काफी निर्भर है, एक हथियार के रूप में करेगा. उसने कहा है कि वह पोलैंड और बुल्गारिया के लिए गैस सप्लाई रोक देगा, इस फैसले ने सभी को चौका दिया है.
रूस के सबसे मुखर विरोधियों में से एक पोलैंड को अपनी 45 फीसदी गैस, रूस से प्राप्त होती है, जबकि बुल्गारिया की उस पर 73 फीसदी की निर्भरता है. इससे नाराज पोलैंड ने घोषणा की कि वह अब रूस से गैस नहीं खरीदेगा, जबकि बुल्गारिया ने मॉस्को द्वारा गैस आपूर्ति में कटौती करने की कार्रवाई को एक तरह का "ब्लैकमेल" कहा है. रूस ने यह कहते हुए शिकंजा और कस दिया कि वह पोलैंड और बुल्गारिया को गैस आपूर्ति तभी शुरू करेगा, जब सोफिया और वारसॉ रूबल में पेमेंट करेंगे. साइबेरिया से यूरोप तक गैस ले जाने वाली यमल पाइपलाइन, बुल्गारिया और पोलैंड से होकर गुजरती है, गाजप्रोम (रूसी तेल कंपनी) ने यह भी चेतावनी दी है कि यदि दोनों देश अन्य देशों के लिए रूसी ट्रांजिट गैस को बंद करना शुरू कर देते हैं, तो यह कंपनी सोफिया और वारसॉ द्वारा अवैध रूप से रोकी गई राशि के हिसाब से आपूर्ति कम कर देगी.
पोलैंड जर्मनी के साथ, जिसकी रूस से आपूर्ति जारी है, सीमा साझा करता है. गाजप्रोम की चेतावनी से संकेत मिलता है कि उसे पता था कि जर्मनी के लिए दी जाने वाली गैस को पोलैंड भेजा जा सकता है. मॉस्को का यह कदम अन्य यूरोपीय देशों को चेतावनी प्रतीत होता है कि यूक्रेन को सैन्य सप्लाई भेजकर वे ऊर्जा आपूर्ति में आने वाली बाधा के लिए खुद को तैयार रखेंगे. फ्यूल के मामले में रूस की आक्रामकता काम करती दिख रही है. कई खरीदारों ने संकेत दिया है कि वे मास्को की मांगों को स्वीकार करने के लिए तैयार हैं. जर्मनी की सबसे बड़ी रूसी गैस आयातक कंपनी Uniper ने सोमवार को कहा कि पश्चिमी प्रतिबंधों का उल्लंघन किए बिना, भविष्य की सप्लाई के लिए वह पेमेंट करने के लिए तैयार है.
ऐसा लगता है कि इस युद्ध में रूस के हारने की नियति नहीं है
ऑस्ट्रिया और हंगरी पहले ही कह चुके हैं कि रूसी गैस पर पूर्ण पाबंदी लगाना "अकल्पनीय" था. अपनी भारी मांग को पूरा करने के लिए भारत, जो जीवाश्म ईंधन के शुद्ध आयातकों में से एक है, पहले ही संकेत दे चुका है कि जब यूरोप और अमेरिका रूसी तेल खरीद रहे हैं तो वह रियायती दरों पर रूसी तेल खरीदेगा और इसे रोकने के लिए पश्चिम के दबाव को नजरअंदाज करेगा. अप्रैल की शुरुआत में, भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर ने भारतीय खरीद को रोकने के लिए पश्चिमी दबाव को ठुकरा दिया था, उन्होंने कहा था कि मार्च और अप्रैल में भारत द्वारा खरीदी गई रूसी तेल की मात्रा, "दोपहर भर में यूरोप की खरीद से कम है."
नई दिल्ली ने संकेत दिया है कि वह यूक्रेन संघर्ष के बीच अपने हितों की रक्षा करेगा, वह इस युद्ध को विशुद्ध रूप से यूरोपीय संघर्ष के रूप में देखता है और इसका कोई विजेता नहीं होने वाला है. जाहिर है कि रूस के खिलाफ लगाए गए प्रतिबंध सुविचारित नहीं थे. पश्चिमी देशों ने रूस के विशाल ईंधन संसाधनों को कम करके आंका, या इसकी अनदेखी की, जिसकी बदौलत वह इस संकट से पार लगा सकता है. रूस से आयात पर यूरोप करीब-करीब पूरी तरह निर्भर है, इस तथ्य को ध्यान में न रखना एक गलत अनुमान था.
US-NATO गठबंधन ने भले ही यह योजना बनाई थी कि प्रतिबंधों से रूसी एनर्जी की मांग घटने से मास्को पर जोरदार असर होगा. लेकिन कीमतों में वृद्धि ने, आयात की मात्रा घटने से हुए रूसी नुकसान की भरपाई कर दी है. इसके अतिरिक्त, रणनीतिक गलती ने यूरोप को दो फाड़ कर दिया है. उत्तरी यूरोप, ब्रिटेन और फ्रांस, जो पूरी तरह से रूसी आयात पर निर्भर नहीं हैं, मास्को के खिलाफ सख्त कदम उठाने का जोखिम उठा सकते हैं. लेकिन स्पेन, इटली, ऑस्ट्रिया और हंगरी सहित, मध्य और पूर्वी यूरोप के देश पुतिन के खिलाफ नरमी के लिए तैयार हैं. दूसरे शब्दों में कहा जाए तो, यह केवल एक गतिरोध है. यूक्रेन रूस को नहीं हरा सकता, न ही रूस यूक्रेन को पूरी तरह जीत सकता. लेकिन यह लड़ाई पूरे पश्चिम देशों और रूस के बीच है, और ऐसा लगता है कि इस युद्ध में रूस के हारने की नियति नहीं है.
Rani Sahu

Rani Sahu

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