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युद्धरत पुतिन ने रोजमर्रा की कई वस्तुओं की कीमतों को उच्चतम स्तर पर भेज दिया है
के वी रमेश।
कोरोना महामारी (Corona Pandemic) से हुई तबाही के बाद पहले से ही संघर्ष झेल रही दुनिया को यूक्रेन-रूस युद्ध (Ukraine-Russia War) ने दूसरा झटका दिया है. व्लादिमीर पुतिन (Vladimir Putin) ने जिस नई विश्व व्यवस्था को आकार दिया है, वह शीत युद्ध के सबसे अंधकारमय दिनों से कहीं अधिक अनिश्चितता से भरा है. इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि पुतिन का यूक्रेनी दुस्साहस किस तरह समाप्त होने वाला है. कोविड-19 महामारी ने दुनियाभर में लोगों को तगड़ा झटका दिया है. उसके बाद यूक्रेन पर रूसी आक्रमण ने दुनिया के सामने नई मुसीबतें पैदा की हैं.
युद्धरत पुतिन ने रोजमर्रा की कई वस्तुओं की कीमतों को उच्चतम स्तर पर भेज दिया है. अनिश्चित भविष्य के मद्देनज़र कई देश अपने स्टॉक बढ़ाने पर जोर दे रहे हैं. रूस और यूक्रेन तेल, प्राकृतिक गैस, गेहूं, सूरजमुखी के तेल, कोयला, लोहा, स्टील, टाइटेनियम, पैलेडियम, सोना और तांबे जैसी प्रमुख वस्तुओं के उत्पादक और आपूर्तिकर्ता हैं. युद्ध समाप्त होने के बाद भी इन वस्तुओं की कीमतें अधिक रहने की संभावना है. रूस के खिलाफ यूक्रेन अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ने में व्यस्त है और मास्को पर पश्चिमी देशों ने वित्तीय प्रतिबंध लगाए हैं. इन परिस्थितियों में ग्लोबल सप्लाई चेन फिर से बाधित हो गई है.
रूसी तेल और गैस पर यूरोप की निर्भरता
रूस यूरोप की 40 प्रतिशत गैस जरूरतों को पूरा करता है. रूसी गैस की आपूर्ति यूक्रेन के रास्ते नॉर्ड स्ट्रीम 1 पाइपलाइन के माध्यम से की जाती है. यूरोपीय संघ के अधिकांश देश रूसी गैस पर निर्भर हैं. इनमें से चेक गणराज्य और लातविया 100 फीसदी, हंगरी (95), स्लोवाकिया (85), बुल्गारिया (76), फिनलैंड (67), जर्मनी (65) और पोलैंड 55 फीसदी जरूरतों के लिए रूस पर निर्भर हैं. हालांकि पश्चिमी प्रतिबंधों ने खास तौर पर गैस से संबंधित रूसी बैंक लेनदेन को छूट दी है, लेकिन रूस चाहे तो नॉर्ड स्ट्रीम-1 गैस पाइपलाइन बंद करने का फैसला ले सकता है. हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि जर्मनी पहले ही बाल्टिक सागर के रास्ते जाने वाली नॉर्ड स्ट्रीम 2 पाइपलाइन परियोजना के सर्टिफिकेशन प्रोसेस को रोकने की घोषणा कर चुका है.
जर्मनी की हालत सबसे ख़राब है क्योंकि घरों को गर्म करने और कारखानों को चलाने के लिए उसकी 65 प्रतिशत गैस की जरूरत रूस पूरी करता है. उसके पास बिजली का कोई अन्य स्रोत नहीं है क्योंकि 2011 के फुकुशिमा दुर्घटना के बाद उसने अपने परमाणु रिएक्टरों को बंद कर दिया था और कोयला पर निर्भरता को धीरे-धीरे कम कर रहा है. जर्मनी के पास एलएनजी को फिर से गैसीकृत करने के लिए कोई टर्मिनल नहीं है जो अमेरिका टैंकरों के माध्यम से दे सकता है.
यूरोप सहित पूरी दुनिया के लिए प्राकृतिक गैस जीवन रेखा रही है. मौजूदा यूक्रेन संकट शुरू होने से पहले एक दशक तक यह ऊर्जा का सबसे सस्ता स्रोत भी रहा है. सोमवार को रिकॉर्ड स्तर पर प्राकृतिक गैस की कीमत 345 यूरो प्रति मेगावाट-घंटा दर्ज की गई थी. ग्लोबल डिमांड बढ़ने से पहले के 10 वर्षों के दौरान इसकी कीमत 15-25 यूरो प्रति मेगावाट के आसपास थी. हालांकि कीमत स्थिर हो गई है, लेकिन यूक्रेन पर रूसी हमले ने प्राकृतिक गैस की कीमतों को ऊपर धकेल दिया है. प्राकृतिक गैस के अलावा तेल की कीमतें भी बढ़ रही हैं. रूस के डिप्टी प्राइम मिनिस्टर अलेक्जेंडर नोवाक ने चेतावनी दी है कि अगर पश्चिम अपने प्रतिबंधों को जारी रखता है तो तेल की कीमत 300 डॉलर तक पहुंच सकती है. मॉस्को ने यह भी चेतावनी दी है कि वह ईरान परमाणु समझौते को विफल कर सकता है. ऐसी स्थिति में ईरान से पश्चिमी प्रतिबंधों को हटाया जा सकता है और यूरोप को तेल और गैस सप्लायर के रूप में रूस की जगह ईरान ले सकता है.
पश्चिमी देशों के इरादे को कमजोर कर सकती हैं बढ़ती कीमतें
तेल और गैस के साथ-साथ यूरोपीय उद्योगों के लिए आवश्यक गेहूं, धातु और खनिज पदार्थों की कीमतें आसमान छू रही हैं. दिसंबर के मुकाबले गेहूं की कीमतों में 30 फीसदी की वृद्धि हो चुकी है. चिप बनाने और नैनोटेक इंडस्ट्री के लिए जरुरी निकेल के दाम 60 प्रतिशत, कैटेलिटिक कन्वर्टर्स के लिए आवश्यक पैलेडियम 70 प्रतिशत, कोयला 400 डॉलर प्रति टन के रिकॉर्ड स्तर पर है. सोना और तांबा की कीमतों में भी तेजी देखी जा रही है. पुतिन जितना लंबा युद्ध जारी रखेंगे, कीमतें बढ़ती रहेंगी. इससे लोगों के बीच असंतोष बढ़ेगा और पुतिन के खिलाफ आक्रामक कार्रवाई करने का पश्चिमी संकल्प कमजोर होगा. तेल और गैस की कीमतों में बढ़ोतरी का प्रतिकूल असर पड़ेगा. भारत सहित दुनिया भर के पेट्रो-आयातक देशों में उपभोक्ता सामानों की कीमतों में उछाल आएगा.
आवश्यक वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि से पुतिन को भी लाभ होगा, क्योंकि वायदा बाजार कीमतों को लेकर पहले से ही अनाप-सनाप भविष्यवाणी कर रहा है. इसका मतलब है कि रूसी सरकार को लाभ हो रहा है और उसे इस बात की परवाह नहीं कि यूक्रेन में युद्ध किस दिशा में जाता है. चाहे स्थिति जो भी हो, निकट भविष्य में भी रूस लाभ कमाना जारी रखेगा. बता दें कि रूस के सरकारी गैस उत्पादक गज़प्रोम (Gazprom) ने 2019 में 23 अरब डॉलर का शुद्ध लाभ कमाया था.
यूक्रेन युद्ध से COP-26 के लक्ष्यों को लगा झटका
पुतिन के युद्ध से पश्चिम को तगड़ा झटका लगा है. इसने पश्चिम को आर्थिक रूप से आहत करने के अलावा ग्लोबल नेट-जीरो कार्बन उत्सर्जन के लक्ष्यों को भी झटका दिया है. कॉप-26 (COP-26) शिखर सम्मलेन के बाद, कोयला, तेल और गैस के निर्यातक देशों का भविष्य अंधकारमय दिख रहा था, क्योंकि जयादातर देशों ने तीन दशकों में शुद्ध-शून्य कार्बन उत्सर्जन करने का संकल्प लिया था. इसका मतलब है कि पांच साल में हाइब्रिड कारों के आने के साथ पेट्रोल और डीजल की कीमतें गिरना तय था, क्योंकि नई तकनीकों के प्रभावी होने से पहले और उत्पादक अधिक लाभ कमाने के उद्देश्य से अधिक तेल निकाल रहे होंगे. लेकिन यह उम्मीद अब खत्म हो चुकी है.
रूसी जीवाश्म ईंधन (fossil fuel) की आपूर्ति पर निर्भरता कम करने के लिहाज से दुनिया भर के देश स्थानीय रूप से उपलब्ध संसाधनों, खासकर कोयले, पर निर्भर हो गए हैं. पिछले साल COP-26 शिखर सम्मेलन के दौरान कोयला एक डर्टी वर्ड था. अब कई देशों के लिए उसी कोयले पर निर्भरता बढ़ रही है. भारत ने अपने कोयला उत्पादकों से उत्पादन में पर्याप्त वृद्धि करने को कहा है. संक्षेप में कहा जाए तो रूसी तेल और गैस पर राजनीति करने के लिए पश्चिमी देशों को भारी कीमत चुकानी पड़ेगी और उनके पास कोई आसान विकल्प नहीं होगा. यह कहना सही नहीं है कि मास्को के पास खोने के लिए कुछ नहीं है. रूस के दूसरे सबसे बड़े तेल उत्पादक लुकोइल (Lukoil) ने पहले ही यूक्रेन के साथ युद्ध को आगे बढ़ाने पर चिंता व्यक्त की है. महज पश्चिमी प्रतिबंधों का सामना करने की संभावना से घबराए व्यापारी पहले से ही रूसी कच्चे तेल और गैस की आपूर्ति से अलग हट रहे हैं.
इस बात का जिक्र करना सही होगा कि जलवायु परिवर्तन जीरो-सम गेम (zero-sum game) नहीं है. यह एक ऐसा मुद्दा है जिसमें एक पक्ष का लाभ दूसरे के नुकसान के बराबर होता है. यदि यह युद्ध जलवायु परिवर्तन पर लगाम लगाने के वैश्विक प्रयास को विफल करता है, तो रूस परिणामों से नहीं बच पाएगा. यूक्रेन पर हमले और पश्चिम को चुनौती देकर पुतिन ने अकेले ही विश्व व्यवस्था को बदल दिया है. यदि यही उनका मूल लक्ष्य था तब वे इससे बेहतर योजना नहीं बना सकते थे.
(आर्टिकल में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं.)
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