सम्पादकीय

West Bengal Election Result 2021 : चुनावी रण में अकेली पड़ गईं थीं ममता बनर्जी, कैसे कारवां को मोड़ लिया अपने पीछे

Tara Tandi
2 May 2021 8:49 AM GMT
West Bengal Election Result 2021 : चुनावी रण में अकेली पड़ गईं थीं ममता बनर्जी, कैसे कारवां को मोड़ लिया अपने पीछे
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देश की सबसे ताकतवर पार्टी, सबसे लोकप्रिय नेता और भारी प्रचार मशीनरी के सामने एक साधारण सी साड़ी पहनने वाली साधारण शक्ल सूरत की एक महिला ने अपने जिद्दी स्वाभाव , लड़ाका छवि और कभी न हार मानने वाली पहचान की बदौलत बंगाली जनमानस में ऐसी जगह बनाने में सफल हुईं

जनता से रिश्ता वेबडेस्क | संयम श्रीवास्तव देश की सबसे ताकतवर पार्टी, सबसे लोकप्रिय नेता और भारी प्रचार मशीनरी के सामने एक साधारण सी साड़ी पहनने वाली साधारण शक्ल सूरत की एक महिला ने अपने जिद्दी स्वाभाव , लड़ाका छवि और कभी न हार मानने वाली पहचान की बदौलत बंगाली जनमानस में ऐसी जगह बनाने में सफल हुईं कि लगातार तीसरी बार पश्चिम बंगाल की जनता का प्यार उसके लिए उमड़ पड़ा. जिस लड़ाई में सभी संगी साथी उनका छोड़कर चले गए, जिन क्षत्रपों के सहारे उन्होंने ढाई दशक से कब्जा जमाएं वामपंथियों से बंगाल को छीन लिया था इस बार उनके साथ कोई नहीं था. बंगाल की राजनीति में नितांत अकेली पड़ चुकी इस महिला ने समय रहते आपदा को अवसर में बदल लिया. अपने इस एकाकीपन में वो अपने प्रदेश की जनता से मानो यही कह रही थीं कि जब कोई न दे साथ तो एकला चलो रे… इस अकेली पड़ चुकी योद्धा ने ऐसी राह पकड़ी कि पीछे कारवां बनता गया. आइए देखते हैं कि कैसे हारी हुई लड़ाई जीत ली ममता ने? कैसे ममता ने बंगाली मानूष को यह संदेश देने में सफल हुईं कि वह अकेली योद्धा हैं जो मां-मांटी-मानूष की लड़ाई लड़ रही हैं.

1- खुद को बंगाली प्राइड के रूप में स्थापित किया
चुनाव प्रचार के दौरान उन्होंने एक भाषण में कहा कि "मैं अपने एक पैर पर खड़ी हो कर बंगाल जीतूंगी और भविष्य में मैं अपने दोनों पैरों पर खड़ी होकर दिल्ली में जीत हासिल करुंगी.' इसी तरह उन्होंने प्रचार के दौरान एक बार कहा कि पश्चिम बंगाल 2024 के लोकसभा इलेक्शन में वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ वाराणसी (Varanasi) लोकसभा से चुनाव लड़ेंगी. इस तरह के भाषण देकर बंगाली मतदाताओं में अपना कद देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बराबर करने में वे सफल रहीं. भारतीय राजनीति में ऐसा कई बार होता रहा है. इसके पहले दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, और तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमत्री स्वर्गीय जयललिता , बिहार के मुख्यमत्री नीतीश कुमार जैसे लोग भी खुद को किसी ने किसी बहाने प्रधानमंत्री बनने की उम्मीद बताकर अपने समर्थकों के बीच अपनी छवि चमकाने की कोशिश करते रहे हैं. यही ममता बनर्जी ने भी किया. इसके पहले भी उन्होंने खुद के नेतृत्व में राष्ट्रीय राजनीति में तीसरा मोर्चा बनाने की कोशिश की थी. दरअसल बंगाली समुदाय के पास हमेशा कोई न कोई अपना हीरो (आइडियल) रहा है. मशहूर क्रिकेटर सौरव गांगुली और मशहूर फिल्म ऐक्टर मिथुन चक्रवर्ती इस समय बीजेपी के साथ थे. वर्तमान को छोड़ दिया जाए तो हर दौर में आम बंगाली जनमानस के साथ कोई न कोई लिविंग लीजेंड रहा है. ममता बनर्जी ने बड़ी चतुराई से बंगाली जन मन के बीच खुद को लिविंग लीजेंड के रूप में खड़ा कर लिया . यही छवि उनको लगातार तीसरी बार मुख्यमंत्री पद का ताज पहना रहा है.

2- खुद को एलोन वॉरियर के रूप में स्थापित किया
13 अप्रैल का दिन, पार्क स्ट्रीट के मेयो रोड पर प्रसिद्ध गांधी प्रतिमा के नीचे एक बहुत लगातार बोलने वाली महिला अपने मुंह सिलकर चुपचाप बैठकर पेंटिंग बना रही है. उसके मौन में गुस्सा, डर और कसमसाहट छुपी हुई थी. थोड़ी ही दूरी पर तृणमूल कांग्रेस के बहुत से नेता भी डेरा डाले हुए थे पर वह उनसे दूरी बनाकर एकदम अकेले बैठीं थीं. दरअसल मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की कथित भड़काउ टिप्पणी करने के आरोप में चुनाव आयोग ने 24 घंटे के लिए चुनाव प्रचार पर रोक लगा दी थी. ममता बनर्जी ने आरोप लगाया था ऐसे ही भाषण करने पर बीजेपी नेताओं के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं होती, जबकि टीएमसी नेताओं पर चुनाव आयोग तुरंत एक्शन ले लेता है.

बताया जाता है कि गांधी प्रतिमा के नीचे धरना देना ममता बनर्जी की एक सोची-समझी रणनीति थी. ममता बनर्जी यह संदेश देना चाहतीं थीं कैसे चुनाव आयोग, सीआरपीएफ, सीबीआई (कोल घोटाले में अभिषेक बनर्जी से पूछताछ) और बीजेपी के भारी-भरकम तंत्र के सामने वे अकेली पड़ चुकी हैं, फिर भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी है. यह धरना उनके समर्थकों के बीच उनके लिए एक सहानुभूति पैदा कर गया. इस दौरान एक बंगाली प्राइड जया बच्चन(भादुड़ी) का उनको खुल कर सपोर्ट करना भी काम आ गया. समाजवादी पार्टी की राज्य सभा और बॉलीवुड एक्ट्रेस ने बंगाल पहुंचकर कहा कि अनेक अत्याचारों के खिलाफ लड़ रही अकेली महिला के लिए मेरे मन मन में अत्यंत सम्मान है. बाद में कोलकाता रोड शो के दौरान जया बच्चन ने व्हील चेयर सवार मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को गले भी लगाया.

3-ममता बनर्जी ने ऐसा महौल बनाया कि बीजेपी महिला विरोधी है
बंगाल की जनता वामपंथ की सरकार से तो मुक्त हो गई पर उसके चरित्र में अब भी वामपंथ रचा बसा हुआ है. तृणमूल कांग्रेस नेता ममता बनर्जी ने यह साबित करने का कोई भी मौका नहीं छोड़ा कि बीजेपी एक सामंती पार्टी है जो ऊंच नीच और सांप्रादायिकता के आधार पर चुनाव लड़ रही है. ममता बनर्जी ने यह साबित किया कि बीजेपी महिला विरोधी भी है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के एक भाषण में दीदी ओ दीदी कहने को जिस तरह टीएमसी नेताओं ने लपक लिया और उसे मुद्दा बनाया वह बीजेपी के लिए भारी पड़ गया. तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा ने एक टीवी चैनल के सामने इस मुद्दे पर फट पड़ीं थीं. महुआ ने कहा कि ये प्रधानमंत्री हैं जो मौजूदा मुख्यमंत्री से ऐसी घटिया किस्म की चुहलबाजी कर रहे हैं. इसके बाद पश्चिम बंगाल की महिला और बाल विकासमंत्री ने भी इस मुद्दे पर मोर्चा संभाला था. यह सर्वविदित है कि बंगाल में महिला मतदाता अन्य राज्यों के मुकाबले में अपने वोट का इस्तेमाल अपने विवेक से करतीं रही हैं.. करीब 10 करोड़ मतदाताओं में आधी महिला मतदाताओं की संख्या है. इसके साथ ही महिला मतदाताओं का वोटिंग परसेंटेज भी पुरुष मतदाताओं की तुलना में बहुत ज्यादा है. टीएमसी पहले से महिला वोटरों को लुभाने की तैयारी भी कर रही थीं. करीब 12 हजार करोड़ रुपये की महिला कल्याणकारी योजनाएं जिसमें लड़कियों की उच्च शिक्षा , लड़कियों के विवाह, छात्रवृत्ति आदि शामिल हैं को बनाकर ममता बनर्जी बंगाली महिलाओं की नजर में एक योद्धा ही हैं. इसके साथ ही वो बीजेपी शासित राज्यों में महिलाओं पर होने वाले अत्याचार को भी मुद्दा बनाने में सफल रहीं.


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