सम्पादकीय

क्या हिंदू प्राचीन काल में मांसाहारी थे? हमारे इतिहास, पुरातत्व और पौराणिक कथाओं से क्या पता चलता है

Gulabi Jagat
8 April 2022 6:57 AM GMT
क्या हिंदू प्राचीन काल में मांसाहारी थे? हमारे इतिहास, पुरातत्व और पौराणिक कथाओं से क्या पता चलता है
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नवरात्रि के दौरान मीट की दुकानों पर प्रतिबंध का आधिकारिक आदेश अभी जारी नहीं हुआ है
अली नदीम रिजवी।
बीजेपी सांसद परवेश साहिब सिंह वर्मा (Parvesh Sahib Singh Verma) ने नवरात्रि के दौरान अपनी पार्टी शासित दक्षिण दिल्ली नगर निगम (SDMC) के मेयर द्वारा मीट की दुकानें बंद करने के निर्देश का समर्थन किया है. वर्मा ने कहा कि इस तरह के प्रतिबंध पूरे देश में लगाए जाने चाहिए. एसडीएमसी के मेयर मुकेश सूर्यन ने सोमवार को कहा कि नवरात्रि के दौरान 11 अप्रैल तक मांस की दुकानों को खोलने की अनुमति नहीं दी जाएगी और उन्होंने नगर आयुक्त (Municipal Commissioner) से उनके निर्देश का कड़ाई से पालन सुनिश्चित करने को कहा.
नवरात्रि के दौरान मीट की दुकानों पर प्रतिबंध का आधिकारिक आदेश अभी जारी नहीं हुआ है. एसडीएमसी मेयर के निर्देश का स्वागत करते हुए वर्मा ने कहा कि दिल्ली के अन्य दो नगर निगमों को भी इसका पालन करना चाहिए. उन्होंने कहा, 'वास्तव में, इसे पूरे देश में लागू किया जाना चाहिए'.
पाखंड का नाम बीजेपी है: सलमान निजामी
राजनेताओं ने पार्टी लाइन से हटकर सोशल मीडिया साइटों का सहारा लिया और नवरात्रि के दौरान मीट बैन (meat ban) का विरोध किया. नवरात्रि के दौरान मीट पर प्रतिबंध लगाने के कदम की समाज के विभिन्न वर्गों में तीखी आलोचना हुई है. तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा (Trinamool Congress MP Mahua Moitra) ने बुधवार को कहा कि संविधान उन्हें जब चाहे मीट खाने की इजाजत देता है, उसी तरह यह दुकानदार को अपना व्यापार चलाने की आजादी देता है. कांग्रेस नेता सलमान निजामी (Salman Nizami) ने भी ट्वीट किया, 'उन्हें मीट की दुकानों से दक्षिण दिल्ली में समस्या है, लेकिन पूर्वोत्तर और गोवा में क्वॉलिटी वाले बीफ का वादा किया है. पाखंड तुम्हारा नाम बीजेपी है!'
जगह के साथ बदलता पैमाना
ऐसा लगता है कि मीट पर प्रतिबंध राजनीतिक विवाद का बड़ा मुद्दा बन गया है क्योंकि नेशनल कॉन्फ्रेंस (National Conference) के नेता उमर अब्दुल्ला (Omar Abdullah) ने भी ट्वीट किया, 'रमजान के दौरान, हम सूर्योदय और सूर्यास्त के बीच नहीं खाते हैं. मुझे लगता है कि हर गैर-मुस्लिम निवासी या पर्यटक के खुलेआम खाने पर पाबंदी लगा दी जाए तो ठीक रहेगा, खास तौर पर मुस्लिम आबादी वाले इलाकों में. जो दक्षिण दिल्ली के लिए बहुसंख्यकवाद (majoritarianism) के लिए सही है, वह जम्मू और कश्मीर के लिए भी मुनासिब होना चाहिए.'
मीट की बिक्री और उपभोग पर बैन लगाने की मांग, विशेष रूप से हिंदू त्योहारों के आसपास, दिन-ब-दिन तेज होती जा रही है. कुछ समय पहले ऐसा शिवरात्रि के दौरान हुआ और अब नवरात्रि के अवसर पर हो रहा है. मंदिर परिसर के आसपास और कुछ तीर्थ क्षेत्रों में भी मीट परोसने वाले दुकानों की सेल पर बैन लगाने की मांग बढ़ रही है. इसके पीछे तर्क दिया जा रहा है कि 'हिंदू' तब से शाकाहारी (vegetarian) रहे हैं जब से उनके धर्म का सूत्रपात हुआ और 'हिंदू धर्म' में किसी भी तरह के मांसाहार के लिए कोई जगह नहीं है.
शाकाहारी चरित्र दिखाना किसे सूट करता है?
सोच की यह धारा दरअसल थोड़ी सी सफलता पाने के लिए है और आमतौर पर लोग इस पर आसानी से यकीन करने लगे हैं. हम भारतीयों को वास्तव में अपना शाकाहारी चरित्र दिखाना अच्छा लगता है और हम इस पर गर्व करते हैं. हम इस लोकप्रिय धारणा का ढिंढोरा पीटते रहते हैं कि हमारे प्राचीन पवित्र ग्रंथों ने मांसाहार को वर्जित बताया है और तब से देश स्ट्रिक्ट वेजिटेरीअन (strict vegetarian) रहा है. वास्तव में, इस दलील में कुछ मेरिट है, लेकिन केवल तभी जब ऐतिहासिक तथ्यों को ध्यान में लाया जाए कि एक धर्म के रूप में 'हिंदू धर्म' की उत्पत्ति केवल 19 वीं शताब्दी से औपनिवेशिक (colonial) काल के दौरान हुई है. इससे पहले, धर्म के तौर पर हिंदुत्व (Hinduism) का कोई कॉन्सेप्ट नहीं था.
मनुस्मृति में मांस खाने का ज़िक्र है
धार्मिक प्रथाओं (religious practices) की व्याख्या करने के लिए 19वीं शताब्दी से पहले न तो हिंदू नामक अखंड धर्म था और न ही इस्लाम या ईसाई धर्म की तरह कोई भी धार्मिक किताब. आइए इस बात को समझने के लिए थोड़ा पीछे चलते हैं और अपनी समझ विकसित करने के लिए न केवल पुराने ब्राह्मण ग्रंथों (Brahmanical texts) बल्कि पुरातात्विक साक्ष्यों (archaeological evidence) की भी मदद लेते हैं.
उदाहरण के लिए हिंदुओं के सबसे लोकप्रिय, मौलिक और पवित्र ग्रंथों में से एक मनुस्मृति (Manusmriti) क्या कहती है? इस ग्रन्थ के श्लोक 30, अध्याय 5 में लिखा है, 'खाने योग्य जानवरों का मांस खाना पाप नहीं है क्योंकि ब्रह्मा ने खाने वाले (eaters) और खाने योग्य (eatables) दोनों को बनाया है.' मनुस्मृति में वर्णित ये 'खाने योग्य जानवर' क्या थे? इसका उत्तर महर्षि याज्ञवल्क्य ने सतपथ ब्राह्मण (3/1/2/2) में दिया है 'मैं बीफ खाता हूं क्योंकि यह बहुत नरम और स्वादिष्ट होता है'. वह शायद ऋग्वेद की ओर इशारा कर रहे हैं, जो एक जगह (10/85/13) कहता है कि 'एक लड़की की शादी के मौके पर बैलों और गायों का वध किया जाता है'. एक अन्य स्थान पर, ऋग्वेद का एक भजन (7/17)1) कहता है, 'इंद्र गाय, बछड़े, घोड़े और भैंस का मांस खाते थे.'
वास्तव में कुछ साल पहले इतिहासकार प्रो द्विजेंद्र नारायण झा (Prof Dwijendra Narayan Jha) ने एक किताब 'द मिथ ऑफ होली काउ' – The myth of Holy Cow – लिखी थी. इसमें कई अन्य धार्मिक ग्रंथों के आधार पर यह बताया गया कि किसी ज़माने में मांस और गोमांस भारतीय आहार की आदतों में शामिल थे, उनमें ब्राह्मण भी शामिल थे. उन्होंने ब्राह्मणवादी, बौद्ध और जैन धार्मिक ग्रंथों के साक्ष्य का इस्तेमाल किया है. हालांकि, उनके अनुसार 'पवित्र गाय की अवधारणा' बहुत बाद में विकसित हुई और धीरे-धीरे गोमांस खाने को अछूत जातियों से जोड़ा जाने लगा, जबकि धर्मशास्त्र (Dharmashastras) के अनुसार यह एक मामूली भूल या पथ भ्रष्टता है.
अयोध्या मंदिर के आसपास मिली अस्थियां
आर्कियोलॉजी (archaeology) हमें यह भी बताता है कि गोमांस सहित मांसाहार पूर्व-आधुनिक काल तक खूब जारी रहा. 2003 में जब उत्तर प्रदेश हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने उस टीले की खुदाई का आदेश दिया, जहां कभी बाबरी मस्जिद खड़ी थी. वहां गड्ढों में, जहां एएसआई (ASI) की रिपोर्ट के अनुसार मस्जिद से पहले का मंदिर पाया गया, 'पालतू जानवरों की पकाई गई हड्डियों' के ढेर मिले. तब मीडिया ने 2003 की खुदाई को बढ़-चढ़कर कवर करते हुए इन खाने योग्य जानवरों की हड्डियों के बरामद होने की खबर दी थी.
हाई कोर्ट को सौंपी गई एएसआई की फाइनल रिपोर्ट में भी इन हड्डियों का उल्लेख केवल पासिंग रेफरेंस (passing reference) में किया गया. मैं हाई कोर्ट द्वारा नियुक्त 'पर्यवेक्षकों' में से एक था और इस घटना का गवाह था. एएसआई टीम ने कहा कि प्रत्येक खाई में मंदिर की संरचना में 'पिलर बेस' थे, जिसमें पालतू जानवरों की पकी हुई हड्डियां मिली थी, जो ठीक से रिकॉर्ड पर नहीं थी.
(लेखक अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के इतिहास विभाग में प्रोफेसर हैं. आर्टिकल में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं.)

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