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वे धूप का आनंद ले रहे हैं और कह रहे हैं टाइम नहीं है। रामबचन जी एक घंटे तक पेस्ट कर रहे हैं और कह रहे हैं, यदि समय मिलता तो वे भी जीवन में कुछ रचनात्मक काम करते। श्याम संुदर जी पान खाने बाजार जाते हैं तो दो घंटे में लौटते हैं और वही समय नहीं होने का रोना रोते हैं। रामलाल जी मोहल्ले की पंचायत में शाम को बैठते हैं तो चार घंटे तक उनको पता नहीं चलता कैसे समय बीत गया, लेकिन जब कोई काम की बात आती है तो उन्हें मरने की भी फुरसत नहीं है। कुछ लोग हर सप्ताह या प्रतिदिन सिनेमा देखते हैं और कहते यही हैं कि टाइम नहीं है। 'टाइम नहीं है' की समस्या अब सर्वव्यापी हो गई है। किसी दफ्तर में जाकर बात करो, गप्प मारता हुआ कर्मी अनदेखी करके कहेगा-'आज टाइम नहीं है, कल आना।' उसका कल कभी नहीं आता। या तो पान की पीक थूकता है या दफ्तर के सामने लगी थडि़यों पर चाय पीता रहता है। फाइल को आगे सरकाने का समय नहीं है। आज लिखेंगे कल लिखेंगे, इसी ऊहापोह में पूरा माह गुजर जाता है और कागज का निस्तारण नहीं होता। यह आलसीपन भी नहीं है और काम चोरी भी नहीं है, क्योंकि दोनों शब्द बोलकर देखें, काम करने की एवज में दो घंटे तक वाद-विवाद कर लेगा अगला आपसे। घरों में बच्चों का होमवर्क पूरा नहीं होता और टीवी देखता अभिभावक यही तो कहता है, बेटा, आज तो टाइम नहीं है। बाजार से सामान लाने की नौबत आई तो पतिदेव के सिर में दर्द है, इसलिए अभी तो टाइम नहीं है। पत्नी कौन-सी कम है, बच्चे की शर्ट के बटन टूट गए, वह लगा तो देती, लेकिन पड़ोसन आ गई, इसलिए समय ही नहीं मिला, क्योंकि पूरे मोहल्ले की आलोचना का रसदार दौर चल रहा था, कैसे लगाती बटन।
सोर्स- divyahimachal