सम्पादकीय

इधर कुआं, उधर खाई

Subhi
15 Nov 2022 3:18 AM GMT
इधर कुआं, उधर खाई
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ईडब्लूएस आरक्षण पर आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद केंद्र सरकार की मुश्किलें बढ़ गई हैं। इसके बाद कई राज्यों ने आरक्षण की सीमा 50 फीसदी से अधिक करने की पहल की है और केंद्र से उसमें सहयोग मांगा है।

नव भारत टाइम्स: ईडब्लूएस आरक्षण पर आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद केंद्र सरकार की मुश्किलें बढ़ गई हैं। इसके बाद कई राज्यों ने आरक्षण की सीमा 50 फीसदी से अधिक करने की पहल की है और केंद्र से उसमें सहयोग मांगा है। पिछले हफ्ते झारखंड ने अपने यहां आरक्षण की सीमा 77 फीसदी कर दी। इसमें एससी-एसटी, ओबीसी और ईबीसी- यानी एक्स्ट्रीम बैकवर्ड क्लास का हिस्सा 67 फीसदी है, साथ में 10 फीसदी ईडब्लूएस का। हालांकि यह प्रभावी तभी होगा, जब केंद्र सरकार इसे संविधान की नौवीं अनुसूची में शामिल करेगी। झारखंड सरकार ने केंद्र से इसकी अनुशंसा की है।

ईडब्लूएस पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के हफ्ते भर के अंदर कई राज्यों ने आरक्षण बढ़ाने के लिए तेजी से कदम उठाए हैं। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी केंद्र से 50 फीसदी आरक्षण की सीमा को हटाने की मांग की है। रविवार को बिहार में सत्तारूढ़ सात-दलीय महागठबंधन के दो घटकों ने नीतीश कुमार से 23 नवंबर से शुरू होने वाले विधानसभा सत्र में एक कानून लाने के लिए कहा, जिसमें आरक्षण को 50 से बढ़ाकर 77 फीसदी तक किया जा सके। उधर, राजस्थान में भी ओबीसी कोटे को 21 फीसदी से बढ़ाकर 27 फीसदी करने की मांग उठी है। दरअसल ईडब्लूएस पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले में भले ही आर्थिक आधार पर कमजोर वर्ग को दिए गए 10 फीसदी आरक्षण से पहले से आरक्षित वर्गों को दूर रखा गया, मगर यह बात भी साफ हो गई कि आरक्षण की 50 फीसदी की सीमा को पार भी किया जा सकता है। राजस्थान में गुर्जर, हरियाणा में जाट, गुजरात में पाटीदार और महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण की मांग पहले भी उठती रही है और राज्य सरकारें इसके लिए कोशिश भी करती रही हैं।

2019 में ईडब्लूएस आरक्षण को जब संविधान में शामिल किया गया, उसके बाद राजस्थान ने गुर्जर और चार अन्य जातियों को 5 फीसदी आरक्षण दिया तो मध्य प्रदेश ने अपना ओबीसी कोटा 14 फीसदी से बढ़ाकर 27 फीसदी कर दिया। दोनों ही मामलों में कुल आरक्षण 64 से 70 फीसदी तक बढ़ गया। वहीं जिन राज्यों में बीजेपी विपक्ष में है, वहां वह भी 50 फीसदी की सीमा को पार करने के पक्ष में ही दिख रही है, हालांकि उसका कहना है कि इस मामले में जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए। मगर समस्या यह है कि पहले जब राज्यों की ओर से ऐसे कदम उठाए गए तो अदालत ने उन्हें 50 फीसदी की अधिकतम आरक्षण सीमा का हवाला देते हुए नामंजूर कर दिया। अब अगर राज्य अपने नए कोटा कानूनों पर संवैधानिक संशोधन के लिए केंद्र को झारखंड जैसी ही अनुशंसा देनी शुरू करते हैं, तो सरकार के सामने कठिन स्थिति आ जाएगी। अगर सरकार इससे इंकार करती है तो उसे राजनीतिक विरोध का सामना करना पड़ सकता है। लेकिन केंद्र के लिए इन्हें मानना भी आसान नहीं होगा। ऐसे में नौकरियों और शिक्षा में मेरिट की सीटें काफी कम हो जाएंगी।

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