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गणतंत्र की प्रथम नागरिक राष्ट्रपति महामहिम द्रौपदी मुर्मू का स्वागत
By NI Editorial
इसमें संदेह नहीं है कि एक आदिवासी महिला को राष्ट्रपति का उम्मीदवार बनाने के पीछे भाजपा के अपने राजनीतिक दांव-पेंच हैं, इसके बावजूद आजाद भारत के अमृत काल का यह ऐतिहासिक क्षण है।
दुनिया के सबसे पहले और सबसे बड़े गणतंत्र की प्रथम नागरिक राष्ट्रपति महामहिम द्रौपदी मुर्मू का स्वागत है। सोमवार की सुबह महात्मा गांधी की समाधि राजघाट पर श्रद्धांजलि देने के बाद सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस एनवी रमन्ना ने उनको राष्ट्रपति पद की शपथ दिलाई। वे भारत की सर्वाधिक समृद्ध सांस्कृतिक परंपराओं का प्रतिनिधित्व करती हैं साथ ही वे उस समाज से आती हैं, जो सदियों से वंचित और हाशिए पर रहा है। आजाद भारत के अमृत काल में उस समाज की एक महिला का शीर्ष पद पर आसीन होना लोकतंत्र में आस्था को और मजबूत करने वाला है। इसमें संदेह नहीं है कि एक आदिवासी महिला को राष्ट्रपति का उम्मीदवार बनाने के पीछे भाजपा के अपने राजनीतिक दांव-पेंच हैं, इसके बावजूद आजाद भारत के अमृत काल का यह ऐतिहासिक क्षण है।
उम्मीद करनी चाहिए कि यह ऐतिहासिक क्षण सदियों की वंचना को दूर करने वाला साबित होगा। भारत गणराज्य की राष्ट्रपति के रूप में शपथ लेने के बाद उन्होंने कहा 'मेरा निर्वाचन सूबूत है कि भारत में गरीब का भी सपना पूरा हो सकता है'। लोकतंत्र की सबसे बड़ी खूबसूरती यहीं है कि इसमें सबसे गरीब और सबसे हाशिए पर के व्यक्ति का भी सपना पूरा हो सकता है। यह संयोग है कि देश के प्रधानमंत्री भी सामाजिक और आर्थिक रूप से हाशिए के समाज से निकले हैं और राष्ट्रपति भी ऐसे ही वंचित समूह से आई हैं। अब राष्ट्रपति की जिम्मेदारी है कि वे गरीब के सपने साकार करने वाले लोकतंत्र की मजबूती के लिए काम करें ताकि आगे भी गरीबों के सपने साकार होते रहें।
ध्यान रहे हर गरीब का सपना देश का प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति बनना नहीं होता है। उसके सपने छोटे होते हैं। उसे सम्मान का जीवन चाहिए। उसके बच्चों को सस्ती और अच्छी शिक्षा चाहिए। उसे स्वास्थ्य की बेहतर सुविधा चाहिए। उसे सम्मान की नौकरी चाहिए। उसे लोकतंत्र में बराबर की हिस्सेदारी चाहिए। उसे शोषण और उत्पीड़न से मुक्ति चाहिए। क्या आदिवासी समाज से आने वाली राष्ट्रपति इन छोटे छोटे सपनों को पूरा करने में भागीदार बनेंगी? उनसे उम्मीद तो देश के हर नागरिक को है लेकिन अगर वे सिर्फ आदिवासी हितों को नुकसान पहुंचाने वाली गतिविधियां भी बंद करा दें तो पूरे देश का भला होगा। वे जल, जंगल, जमीन की लूट बंद करा दें और विकास के नाम पर होने वाले अंधाधुंध खनन और निर्माण के लिए आदिवासियों का उनकी जमीन से विस्थापन रूकवा दें तब भी देश और समाज का व्यापक रूप से भला होगा।
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