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- अंधविश्वास का जाल
Written by जनसत्ता: हाल ही में एक खबर पढ़ी जिसके मुताबिक बुद्धि तेज करने के नाम पर तांत्रिक ने छात्रा से घर में बलात्कार किया था। ऐसी खबरें देश के अलग-अलग कोने से आए दिन आती रहती हैं। यह कोई पहली घटना नहीं है। फर्क सिर्फ इतना है कि इस शैक्षिक, वैज्ञानिक व आधुनिक युग में भी ढोंगी बाबा, झांसेबाजों व तांत्रिकों के चक्कर में पड़ कर अपनी जमा पूंजी, इज्जत व जिंदगी दांव पर लगा रहे हैं।
कहीं कोई सीख और सबक नहीं। ठोकरें खाते देख कर और सुनने के बाद भी बेढंगी चाल जारी है। समझना होगा कि तांत्रिक क्रियाओं, अनुष्ठानों, हवनों से न तो बुद्धि तेज होती है, न नौकरी मिलती है, न धन दौलत। केवल इनके छलावे में आकर रोना-धोना और बर्बादी ही मिलती है। यह ठगी के अलावा कुछ भी नहीं है।
अगर इन क्रियाओं से वाकई कोई फायदा होता तो सबसे पहले ये ढोंगी अपना और अपने परिवार का कल्याण करते। ये मालामाल होते। ये इधर उधर मारे-मारे नहीं फिरते। इतना कुछ सुनकर व घटनाओं के घटित होने के बाद भी झांसेबाजों के जाल में फंस जाते हैं, तो दोष किसे दें? अब तो नसीहत लेना ही होगी कि इन झांसेबाजों के जाल में न फंसे।
बढ़ती गर्मी के बीच देश के कई हिस्सों में बिजली संकट गहराने की खबरें चिंताजनक हैं। बिजली संकट का एक कारण कोयले की कमी बताया जा रहा है, लेकिन केंद्रीय कोयला मंत्री की मानें तो देश में पर्याप्त कोयला मौजूद है। अगर वास्तव में ऐसा है तो फिर कुछ राज्यों में बिजली कटौती की शिकायतें क्यों आ रही है? प्रश्न यह भी है कि अगर कोयले से संचालित बिजलीघर उसकी कमी का सामना नहीं कर रहे हैं तो फिर रेलवे को कोयले की ढुलाई के लिए विशेष व्यवस्था क्यों करनी पड़ रही है?
बिजलीघरों को कोयले की आपूर्ति करने के लिए जिस तरह कई यात्री ट्रेनों को रद्द किया गया, उससे तो यही लगता है कि कहीं कोई समस्या जरूर है। वस्तुस्थिति को स्पष्ट किया जाना चाहिए, ताकि किसी संशय की गुंजाइश न रहे और न ही केंद्र और राज्यों के बीच आरोप-प्रत्यारोप की स्थिति बने। यों भी आज समय आरोप-प्रत्यारोप का नहीं, केंद्र और राज्यों को मिल कर ऐसी व्यवस्था करने का है, जिससे बिजली संकट वैसा रूप न लेने पाए, जिसकी आशंका जताई जा रही है।
इसकी अनदेखी नहीं की जानी चाहिए कि आने वाले दिनों में बिजली की मांग और बढ़ने के ही आसार हैं। अगर मांग के अनुरूप बिजली की आपूर्ति नहीं हुई तो इसका बुरा असर उद्योग-धंधों पर भी पड़ेगा। यह पहली बार नहीं जब कोयले की कमी के कारण बिजली संकट गहराने का शोर मचा हो। कुछ समय पहले भी ऐसा हुआ था। संयोग से तब समय रहते बिजली संकट को गहराने से रोक लिया गया था।
यह सही है कि इस बार गर्मी समय से पहले आ गई और बिजली की जैसी मांग मई-जून में होती थी, वैसी अप्रैल के प्रारंभ में ही होने लगी, लेकिन बिजली कंपनियों के साथ सरकारों को यह आभास तो होना ही चाहिए था कि गर्मियां आते ही बिजली की मांग बढ़ेगी।