सम्पादकीय

मौसम की मार

Rani Sahu
28 Feb 2022 9:51 AM GMT
मौसम की मार
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हर साल मई-जून के महीने में नैनीताल से ऐसी खबरें और तस्वीरें आती हैं

हर साल मई-जून के महीने में नैनीताल से ऐसी खबरें और तस्वीरें आती हैं कि वहां की प्रसिद्ध झील का पानी सूख रहा है और उसका जलस्तर काफी नीचे पहंुच गया है। पिछले साल भी यही हुआ था। लेकिन इसके बाद अक्तूबर में वहां जब जमकर बारिश हुई, तो बढ़े जलस्तर के कारण ऐसी बाढ़ आई कि पिछले तमाम रिकॉर्ड टूट गए। याद करें, तो कुछ साल पहले ऐसी ही एक अतिवृष्टि दक्षिण भारत के मुन्नार में हुई थी, जिससे भारी तबाही मची थी। यह दुनिया भर में हो रहा है। कुछ महीने पहले ऐसी ही एक मौसमी परिघटना ब्राजील में कुछ ज्यादा ही बड़े पैमाने पर हुई थी और वहां 175 लोगों की जान चली गई थी। पिछले कुछ साल से जब कहीं अतिवृष्टि होती है या सूखा पड़ता है, तो बहुत आसानी से कह दिया जाता है कि यह सब ग्लोबल वार्मिंग का नतीजा है। लेकिन इसमें ग्लोबल वार्मिंग का कैसा योगदान है, यह बहुत साफ नहीं था, मगर अब ऑस्ट्रेलिया के कुछ शोधार्थियों ने इसके रहस्य की पूरी थाह पा ली है।

वैज्ञानिक इस बात को पहले ही समझ रहे थे कि गरमी बढ़ने के साथ ही पानी के वाष्पीकरण की प्रक्रिया तेज हुई है। लेकिन मौसम की अति में इसका कितना योगदान है, यह साफ नहीं था। इस शोध में प्राकृतिक पानी के भाप बनने की मात्रा का अध्ययन किया गया। दिलचस्प बात यह है कि इस शोध में पर्यावरण विज्ञानी तो शामिल थे ही, लेकिन मुख्य भूमिका में गणितज्ञ थे। इसी से यह आकलन हो सका कि कितना पानी भाप बनता है और फिर किस तरह बरसता है। वैज्ञानिक इस नतीजे पर पहंुचे कि ग्लोबल वार्मिंग के कारण वह प्रक्रिया बहुत तेज हो गई है, जिसे हम जलचक्र कहते हैं। यानी पहले पानी भाप बनकर क्षितिज पर पहुंचता है और फिर वहां से बादल बनकर बरस जाता है। गरमी के कारण जितना पानी भाप बनता है, उतना ही बरस भी जाता है। यानी जितनी गरमी, उतनी ही बारिश। इस समय पूरी दुनिया में यही हो रहा है। दुनिया का 80 फीसदी पानी समुद्र से ही भाप बनता है और फिर उसी पर बरस जाता है। समुद्र का खारा पानी जब भाप बनता है, तो उसमें लवण की मात्रा बढ़ जाती है और जब उस पर बरसता है, तो घट जाती है। शोधकर्ताओं ने 1970 से 2014 तक के आंकड़ों के आधार पर समुद्र में लवण की मात्रा का अध्ययन भी किया। उन्होंने पाया कि जल चक्र तेज हो जाने के कारण धरती का मीठा पानी काफी ज्यादा मात्रा में समुद्र में पहंुच रहा है, जिससे समुद्र का खारापन कम हो रहा है। शोध में पाया गया कि पहले जितना अनुमान था, उससे चार गुना तक ज्यादा मीठा पानी समुद्र में पहंुच रहा है। समुद्र के बढ़ते जलस्तर और उसमें कई देशों के डूब जाने की जो चर्चा हम काफी समय से पढ़ते रहे हैं, उसका एक कारण यह भी है। यह जल संकट का कारण भी बनता जा रहा है।
जल चक्र अगर तेज होता रहा, तो उसका असर हमारी बहुत सी चीजों पर पड़ेगा, खासकर कृषि पर। कृषि को इन नई जरूरतों के हिसाब से ढालना हमारी बहुत बड़ी जरूरत बन चुकी है। यह हमारी खाद्य सुरक्षा के हिसाब से भी जरूरी है और उन किसानों के रोजगार के हिसाब से भी, जिनकी आजीविका इसी से चलती है, जिसे लेकर न सरकारें ज्यादा चिंतित दिख रही हैं, और न किसान संगठन। विशेषज्ञों को इस दिशा में सबका ध्यान खींचने के प्रयास करने चाहिए।

क्रेडिट बाय हिन्दुस्तान

Rani Sahu

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