सम्पादकीय

मौसम का मिजाज

Subhi
17 Jan 2022 2:41 AM GMT
मौसम का मिजाज
x
मौसम विभाग की सालाना रिपोर्ट बता रही है कि देश में पिछले साल मौसम संबंधी आपदाओं में बढ़ोतरी हुई है। साल 2021 में असामान्य मौसमी घटनाओं के कारण जो आपदाएं आर्इं, उनमें दो हजार से ज्यादा लोगों की जान गई।

मौसम विभाग की सालाना रिपोर्ट बता रही है कि देश में पिछले साल मौसम संबंधी आपदाओं में बढ़ोतरी हुई है। साल 2021 में असामान्य मौसमी घटनाओं के कारण जो आपदाएं आर्इं, उनमें दो हजार से ज्यादा लोगों की जान गई। बड़ी संख्या में लोग बेघर हुए। अरबों की संपत्ति का नुकसान हुआ। यह कोई नई बात नहीं है। यह तो हर साल का सिलसिला है। पर इन घटनाओं को प्राकृतिक कारण मान कर भुलाया दिया जाता रहा है। मान कर चला जाता है कि ज्यादा बारिश होगी तो बाढ़ भी आएगी, भूस्खलन भी होगा, तेज गर्मी पड़ेगी और पानी नहीं बरसेगा तो सूखा भी पड़ेगा।

बेमौसम की बारिश दूसरी तरह के संकट खड़े करेगी। पर आज जब हम विज्ञान के युग में जी रहे हैं और तमाम वैज्ञानिक साधन-उपकरण हमारे पास हैं, समय-समय पर मौसम संबंधी भविष्यवाणियां हमें खतरों से आगाह करती रहती हैं तो फिर हम क्यों नहीं सचेत होते? प्राकृतिक आपदाओं से होने वाले नुकसान को कम करने के उपायों, आपदाओं को जन्म देने वाली मानवीय गतिविधियों पर रोक लगाने जैसे मुद्दों पर क्यों नहीं विचार करते? हाल में मौसम विभाग की सालाना रिपोर्ट ने एक बार फिर उन कारणों को सामने रखा है, जिनकी वजह से हमें प्रकृति का कोपभाजन बनना पड़ता है।

रिपोर्ट बता रही है कि गुजरा साल यानी 2021 पिछले एक सौ इक्कीस सालों में सबसे ज्यादा गर्म रहा। इससे भी ज्यादा चौंकाने वाली बात यह कि एक सौ बीस साल में जो सबसे ज्यादा ग्यारह गर्म साल रहे, वे 2007 से 2021 के बीच रहे। जाहिर है, भारतीय उपमहाद्वीप के वातावरण में गर्मी बढ़ी है। यह आने वाले समय में बड़े खतरे का संकेत है। इसलिए हमें अभी से ऐसा करना होगा जिससे इस सदी के अंत तक तापमान में वृद्धि को रोका जा सके। वरना प्राकृतिक आपदाएं और विकराल रूप धारण कर कहर बरपाएंगी। हालांकि धरती का औसत तापमान भी बढ़ रहा है।

सारे देश इसकी मार झेल रहे हैं। समंदरों पर इसका असर दिख रहा है, धरती के बर्फीले हिस्सों यानी ध्रुवों पर बर्फ पिघलने की दर बढ़ रही है, और इससे गंभीर प्राकृतिक असंतुलन बनता जा रहा है। पिछले साल भारत ही नहीं, बल्कि दुनिया के हर हिस्से में प्राकृतिक आपदाओं ने अपना रौद्र रूप दिखाया। चाहे दुनिया के जंगलों में आग की घटनाएं हों, या फिर यूरोपीय देशों में आई बाढ़, सबका मूल कारण बढ़ता वैश्विक तापमान ही है।

अब तक के सभी जलवायु सम्मेलनों में सबसे बड़ी चिंता यही उभर कर आई है कि बढ़ते वैश्विक तापमान को कैसे रोका जाए। कार्बन उत्सर्जन घटाने के लिए तमाम संधियां हुर्इं, पर कोई ठोस नतीजा आज दिखने में आया नहीं। लेकिन हैरानी की बात यह है कि जलवायु संबंधी आपदाओं को रोकने के लिए भारत में ही अपने स्तर पर हमें जो कदम उठाने चाहिए, उस काम में भी हम कोई बहुत अच्छी स्थिति में नहीं हैं।

बारिश, बाढ़, भूस्खलन, आकाशीय बिजली, सूखा आदि विषम जलवायु घटनाओं में हर साल जन-धन की भारी हानि होती है। भारत विभिन्न प्रकार की भौगोलिक स्थितियों वाला देश है। इसलिए हर राज्य की आपदाओं की प्रकृति भी अलग-अलग होती है। हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड जैसे पहाड़ी राज्यों में वनाग्नि और बादल फटने जैसी घटनाएं पिछले कुछ सालों में तेजी से बढ़ी हैं। दरअसल हमें अपनी विकास संबधी नीतियों को पर्यावरण रक्षा के अनुकूल बनाने पर जोर देना होगा। तभी जलवायु संकट से निकलने का रास्ता मिलेगा।



Next Story