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- अमीरी, सुख, समृद्धि

अमीरी एक ऐसा मानवाधिकार है जिसकी चाहत हर किसी को है। इनसान ही नहीं, दुनिया का कोई भी जीव दुख नहीं उठाना चाहता, हम तो फिर इनसान हैं। हम में से कोई भी गरीबी में और अभावों में नहीं जीना चाहता। पैसे से चाहे हर सुख न खरीदा जा सकता हो, पर बहुत से सुख पैसे से खरीदे जा सकते हैं, और यह भी सच है कि धन का अभाव बहुत से दुखों का कारण बन जाता है, यहां तक कि गरीबी कई बार आत्महत्याओं तक का कारण बन जाती है। फिर कौन चाहेगा कि वह अभावों भरा जीवन जिए या फिर जीवन भर दूसरों की कृपा का मोहताज बना रहे? अमीरी एक बुनियादी मानवाधिकार है, पर कोई आपको इसे तश्तरी में पेश नहीं करेगा। इसके लिए स्वयं आपको ही प्रयत्न करना होगा और जोखिम भी उठाना पड़ेगा। अमीरी का अधिकार मांगने से नहीं मिलता, इसे कमाना पड़ता है। भारतीय आम आदमी के अमीर बनने में दो बड़ी अड़चनें हैं। पहली अड़चन है सही ज्ञान का अभाव, और दूसरी अड़चन है गलत अथवा अस्वस्थ नज़रिया। अक्सर हम गरीब लोगों को अमीरों की आलोचना करते हुए या उनका मजाक उड़ाते हुए और यहां तक कि उन पर दया दिखाते हुए पाते हैं। भारतवर्ष मूलतः एक धर्म-परायण देश है और आम आदमी धर्म-भीरू है। धर्म की हमेशा से संतोषी जीवन जीने की सीख रही है। इस सीख की आड़ में हमने आलस्य को अपना लिया और अपनी गलतियां स्वीकार करने के बजाय गरीबी को महिमामंडित करना आरंभ कर दिया। अमीरी से घृणा करके और अमीरों को शोषक मानकर हम प्रगति नहीं कर सकते। अब हम जानते हैं कि नई अर्थव्यवस्था के इस युग में ज्ञान का पूंजी बनाकर धन-संपदा कमाना कोई अजूबा नहीं है। अगर हम सिर्फ इस तथ्य को समझ लें तो हम गरीबी के कारणों का विश्लेषण करके अमीरी की ओर मजबूत कदम बढ़ा सकते हैं। एक और जानने योग्य तथ्य यह है कि भारतवर्ष एक गरीब देश है, लेकिन यहां सोने की खरीद सबसे ज्य़ादा होती है। शादियों के सीज़न में सोने का भाव तेज़ी से चढ़ जाता है। पिछले कुछ सालों तक शादी का सीज़न बीतने पर सोने का भाव धीरे-धीरे नीचे आ जाता था, लेकिन अब जैसे आम की जगह माज़ा ने ले ली है और हम सर्दियों में भी कोक पीने लग गए हैं, वैसे ही सोना भी बारहमासी हो गया है और इस साल सोने के दाम घटने के बजाय बढ़ते ही नज़र आए।
