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आदित्य चोपड़ा| आज 15 अगस्त स्वतन्त्रता दिवस है। यह 75वां स्वतन्त्रता दिवस अर्थात आजादी का अमृत महोत्सव भी है। यह दिन आत्म विश्लेषण करने का भी दिन है। हमें यह विचार करना ही होगा कि हमने पिछले 75 वर्षों के दौरान एक देश के रूप में कितना और कैसा सफर किया है। अब से 74 वर्ष पूर्व हम भारत को एक नया व आत्मनिर्भर देश बनाने जो चले थे उसमें हमें कितनी सफलता प्राप्त हुई है? इसके साथ ही यह विचार भी करना होगा कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के नेतृत्व में हमने जो 'हम हिन्दोस्तानी' की कसम खाई थी, उस पर हम कहां तक खरे उतर सके हैं। पूरे देश को याद रखना चाहिए कि जब 15 अगस्त, 1947 की अर्ध रात्रि को भारत ने अपने आजाद मुल्क होने की घोषणा की थी तो आजादी की मशाल को शोले में तब्दील करने वाले महात्मा गांधी नई दिल्ली में न होकर बंगाल के साम्प्रदायिक दंगों में जलते इलाकों की धूल छान रहे थे और हिन्दू-मुसलमानों को आपस में प्रेम व भाईचारे के साथ रहने की सीख दे रहे थे। भारत की पूर्वी सीमा पर तब एक अकेले व्यक्ति की सेना (सिंगल मैन आर्मी) साम्प्रदायिक दंगों की वीभत्स व अमानवीय आग को काबू करने मंे सफल रही थी जबकि पश्चिमी सीमा पंजाब के इलाके में सेना की हजारों कम्पनियां भी हिंसा को रोकने में असमर्थ हो रही थीं। अतः आजकल जो लोग गांधी के अहिंसक विचारों का मखौल बनाने की कोशिश करते हैं उन्हें इसका एहसास होना चाहिए कि गांधी के अहिंसक विचार हिंसा के विरुद्ध कितने बड़े अस्त्र थे। अतः प्रधानमन्त्री ने 14 अगस्त को ट्वीट करके जो विचार भारत के बंटवारे के सन्दर्भ में रखा उसका मन्तव्य आज के सन्दर्भों में यही है कि हम भारतवासी आपसी सहिष्णुता और प्रेम व सद्भाव से ही भारत को मजबूत बनाने में मदद कर सकते हैं।