सम्पादकीय

हमें अपनी वेल-बीइंग पर ध्यान देने की जरूरत, क्या आप अपने लिए 'मी-टाइम' निकाल रहे हैं?

Gulabi
29 Jan 2022 8:38 AM GMT
हमें अपनी वेल-बीइंग पर ध्यान देने की जरूरत, क्या आप अपने लिए मी-टाइम निकाल रहे हैं?
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इससे इनकार नहीं कि आज दुनिया में ‘मी-टाइम’ की लोकप्रियता इसलिए बढ़ती जा रही है
एन. रघुरामन का कॉलम:
इससे इनकार नहीं कि आज दुनिया में 'मी-टाइम' की लोकप्रियता इसलिए बढ़ती जा रही है, क्योंकि लोग भागदौड़ भरी जिंदगी के तनावों से दूर भागना चाहते हैं। ऐसे में 'मी-टाइम'- खासतौर पर विकसित देशों में- बहुतों की जिंदगी में एक महत्वपूर्ण फैक्टर बन गया है। लेकिन पता नहीं क्यों अधिकांश भारतीय काम के दबाव को कम करने के लिए ज्यादा कुछ नहीं करते।
हमें अपनी वेल-बीइंग पर ध्यान देने की जरूरत है। अपनी खानपान की आदतों को दुरुस्त करने के अलावा भी हर दिन अपना 'मी-टाइम' निकालने के बहुत से तरीके हैं। जैसे कि किसी के प्रति उदारता दिखाना, या सार्वजनिक रूप से किसी की सराहना करना, या कुछ समय के लिए मौन रहना या सादगी को अपनाना आदि। इनमें से कोई भी एक तनावभरी स्थितियों में बेहतर करने में आपकी मदद कर सकता है।
शायद यही कारण रहा होगा कि गुरुवार देर रात जब मैं एअर इंडिया की फ्लाइट से मुंबई लौट रहा था तो अपने दो फ्लाइट अटेंडेंट्स राहुल पाटील और नैफ चौगुले के पास गया और उन्हें टाटा कंपनी का हिस्सा बनने के लिए बधाई दी। उन्हें उसी सुबह कंपनी की ओर से इस बारे में एक लिखित नोट मिल चुका था, फिर भी एक अनजान पैसेंजर से मिली शुभकामना से उन्हें बहुत अच्छा लगा। नतीजा यह रहा कि पूरी फ्लाइट के दौरान उन्होंने मेरा खास खयाल रखा और मेरी यात्रा मजे से कटी।
जापानी महिलाओं में एक विशेष सौंदर्यबोध होता है, जिसके कारण वो छोटी-छोटी चीजों में खुशियां खोजना सीख जाती हैं। यही कारण है कि उनकी औसत आयु आज दुनिया में सबसे ज्यादा है यानी 86.8 वर्ष। वे 'फॉरेस्ट बेथिंग' भी करती हैं, जिसमें वो किसी तकनीकी गैजेट के बिना प्राकृतिक जगहों में चहलकदमी करती हैं। लंबी और सेहतमंद उम्र पाने के लिए ताजी हवा में सांस लेना जरूरी होता है।
वहीं हवाईयन संस्कृति अंतर्बोध पर केंद्रित है। वे लोग अपने शरीर की आवाज सुनते हैं, उसकी जरूरतें पहचानते हैं और फिर वही खाते हैं, जो उनके शरीर के लिए अच्छा है। वे लंच-टाइम और डिनर-टाइम में यकीन नहीं रखते। शायद यही वजह है कि हवाई को 'हीलिंग-आइलैंड' कहा जाता है। वे ग्रीन टी, शहद और गुड बैक्टीरिया से निर्मित एक पेय पदार्थ पीते हैं, जो 'जुन' कहलाता है। शरीर और दिमाग को तरोताजा कर देने वाला यह पेय पदार्थ वहां बहुत पसंद किया जाता है।
स्विस लोग 'सोफ्रोलॉजी' करते हैं। इसमें सांसों पर ध्यान दिया जाता है, रिलैक्सेशन-मेडिटेशन किया जाता है, साथ ही कुछ विजुअलाइजेशन तकनीकें भी अपनाई जाती हैं, जो हमें एक 'अल्फा ब्रेनवेव स्टेट' में ले जाती हैं, जिससे तनाव कम होता है। जैसे हम भारत में योग करते हैं, उसी तरह स्विस लोग रोज दस मिनट सोफ्रोलॉजी करते हैं। अमेरिकन भी अब 'क्लीन-ब्रीदिंग जिम्स' की ओर आकृष्ट होने लगे हैं।
यह जगह पौधों से भरी होने के कारण ऑक्सीजन से भरपूर होती है। यूके में अब 'साइकिल कम्युटिंग' के साथ ही 'रन कम्युटिंग' भी लोकप्रिय होती जा रही है यानी ट्रांसपोर्ट के सामान्य साधनों का इस्तेमाल करने के बजाय काम पर दौड़ते हुए जाना या वहां से दौड़ते हुए लौटना। भारतीय भी 'साउंड बेथिंग' करने लगे हैं।
सिद्ध आधारित इस स्पा प्रोग्राम में वीणा से प्रेरित साउंड हीलिंग उपचार देते हैं। यह हमारी रीढ़ की 33 हड्डियों के लिए अकूस्टिक मसाज है, जिसमें किसी व्यक्ति को 33 तार वाले बिस्तर पर लेटना होता है। इससे बहुत आराम मिलता है।
फंडा यह है कि जो आपके और आपकी जेब के लिए ठीक हो या और कोई उपाय भी हो, उसे चुनें, लेकिन अपना 'मी-टाइम' निकालना ना भूलें, क्योंकि आपके शरीर और मन को इसी से नई ऊर्जा मिलती है!
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