सम्पादकीय

मुलाकात हुई, क्या बात हुई!

Gulabi
10 Jun 2021 2:46 PM GMT
मुलाकात हुई, क्या बात हुई!
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महाराष्ट्र में मराठा समुदाय का आरक्षण खत्म करने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद राज्य की सियासत काफी गर्मायी हुई है

महाराष्ट्र में मराठा समुदाय का आरक्षण खत्म करने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद राज्य की सियासत काफी गर्मायी हुई है। फैसले के बाद सत्तारूढ़ महाविकास अघाड़ी और विपक्ष भाजपा अनुकूल निर्णय होने के लिए एक-दूसरे को जिम्मेदार बता रहे हैं। मुख्यमंत्री और शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे भी काफी दबाव में हैं, क्योंकि इस मुद्दे पर पूर्व मुख्यमंत्री देवेन्द्र फड़नवीस उन्हें निशाने पर लिए हुए हैं। गायकवाड़ आयोग की सिफारिशोें के आधार पर मराठा समुदाय को आरक्षण देने का फैसला महाराष्ट्र विधानसभा के दोनों सदनों ने आम सहमति से लिया था लेकिन शीर्ष अदालत ने उसे इस आधार पर रद्द कर दिया कि राज्य को ऐसा आरक्षण देने का अधिकार नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा था कि मराठा आरक्षण 50 फीसदी सीमा का उल्लंघन है और आरक्षण देते समय सीमा पार करने के लिए कोई वैध आधार नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा था कि 1992 में दिए गए इंदिरा साहनी फैसले को दोबारा देखने की भी जरूरत नहीं। फैसले का महत्वपूर्ण बिन्दू शीर्ष अदालत द्वारा यह कहा ​जाना रहा कि राज्यों को यह अधिकार नहीं कि वे किसी जाति को सामाजिक-आर्थिक पिछड़ा वर्ग में शामिल कर ले। राज्य सिर्फ ऐसी जातियों की पहचान कर केन्द्र से सिफारिश कर सकते हैं।


राष्ट्रपति उस जाति को राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग के निर्देशों के मुताबिक समान आर्थिक पिछड़ा वर्ग की लिस्ट में जोड़ सकते हैं। इसी मुद्दे पर उद्धव ठाकरे ने नई दिल्ली आकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से मुलाकात की। मुलाकात के दौरान मराठा आरक्षण के अलावा मैट्रो शैड, जीएसटी क्लैैकशन को लेकर भी बात रखी। उद्धव ठाकरे ने मराठा आरक्षण का मुद्दा केन्द्र के पाले में डाल दिया क्योंकि आरक्षण को लेकर राज्य से ज्यादा ताकत केन्द्र के पास है।

यह भी सही है कि सुप्रीम कोर्ट में इस केस की सुनवाई के दौरान भी केन्द्र सरकार ने महाराष्ट्र सरकार द्वारा बनाए गए इस कानून का समर्थन किया, बल्कि कई राज्य भी इस पहल के पक्ष में हैं। आरक्षण को लेकर महाराष्ट्र जैसा असमंजस कई राज्यों में है। पारम्परिक तौर पर मजबूत माने जाने वाले समुदाय की ओर से आरक्षण की मांग हाल ही के वर्षों में अन्य राज्यों में उठी है। गुजरात में पटेल और राजस्थान तथा हरियाणा में जाट आरक्षण को लेकर आंदोलन तो राष्ट्रीय स्तर पर चर्चित हुए हैं। इन मांगों के पीछे अपना तर्क हो सकता है। कुछ राज्य सरकारों की इस दलील में सच्चाई हो सकती है कि आजादी के सात दशकों के बाद भी कई ऐसे समुदाय हैं जो पिछड़े बने हुए हैं लेकिन सवाल यह भी है कि क्या ऐसे तमाम पिछड़ेपनों को दूर करने के लिए एक मात्र उपाय आरक्षण ही रह गया है। केन्द्र मराठा आरक्षण के लिए मार्ग प्रशस्त करेगा तो अन्य राज्यों में भी आरक्षण का पिटारा खुल जाएगा। सवाल यह भी है कि हम कब तक आरक्षण का विस्तार करते रहेंगे और हम कितनी पीढ़ियों को आरक्षण देंगे। केन्द्र और राज्य सरकारों को बहुत सोच-समझ कर कदम उठाने होंगे। अगर यही सिलसिला चलता रहा तो हर कोई आरक्षण मांगेगा।

उद्धव ठाकरे की प्रधानमंत्री से मुलाकात के दौरान राकांपा नेता अजित पवार और कांग्रेस नेता अशोक चव्हाण भी थे। उद्धव ठाकरे ने अलग से भी प्रधानमंत्री से मुलाकात की। अब इस मुलाकात के राजनीतिक अर्थ निकाले जा रहे हैं कि क्या दोनों में कोई खिचड़ी पक रही है। पिछले वर्ष फरवरी में भी उद्धव ठाकरे ने नई दिल्ली आकर मुलाकात की थी। देश में संघीय ढांचा है। केन्द्र और राज्य सरकारों में अलग-अलग दलों की सरकारें हैं। ऐसे में किसी भी मुख्यमंत्री की प्रधानमंत्री से मुलाकात के सियासी अर्थ नहीं निकाले जाने चाहिए। इस सवाल का जवाब भी उद्धव ठाकरे ने बेेबाकी से दिया। उद्धव ठाकरे ने कहा कि ''भले ही हम राजनीतिक रूप से साथ नहीं हैं लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि हमारा रिश्ता खत्म हो गया है। मैं कोई नवाज शरीफ से मिलने नहीं गया था, इसलिए यदि मैं उनसे व्यक्तित्व मुलाकात करता हूं तो इसमें गलत क्या है?''

''ये ​दुनिया वाले पूछेंगे, मुलाकात हुई, क्या बात हुई

ये बात किसी से न कहना, ये दुनिया वाले पूछेंगे।''

दिनभर खबरिया चैनल इस मुलाकात के सियासी अर्थ ढूंढते रहे। यही सवाल महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा नेता देवेन्द्र फड़नवीस से भी पूछा गया कि उद्धव ठाकरे और प्रधानमंत्री में क्या बातचीत हुई तो उन्होंने भी यही कहा कि मैं नहीं जानता दोनों में क्या बात हुई। वैसे राजनीति सम्भावनाओं का खेल है। युद्ध और प्रेम में सब कुछ जायज होता है। इसे थोड़ा बढ़ाएंगे तो आप पाएंगे कि राजनीति में भी सब कुछ जायज ही माना गया है। शिवसेना ने चुनाव भाजपा के साथ लड़ा लेकिन उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री बन गए राकांपा और कांग्रेस के दम पर। हो सकता है कि प्रधानमंत्री ने उद्धव ठाकरे को कोई पैगाम दिया हो या उद्धव ठाकरे ने उनसे कहा हो कि शिवसेना का भाजपा से कोई गठबंधन बनता है तो वही फार्मूला लागू होगा जिसे मातोश्री में बैठकर 2019 के लोकसभा चुनावों से पहले बताया गया था, यानी पहले शिवसेना का मुख्यमंत्री होगा और बाद में भाजपा का मुख्यमंत्री बनेगा। देखना होगा कि भविष्य में क्या होता है?


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