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महाराष्ट्र में मराठा समुदाय का आरक्षण खत्म करने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद राज्य की सियासत काफी गर्मायी हुई है। फैसले के बाद सत्तारूढ़ महाविकास अघाड़ी और विपक्ष भाजपा अनुकूल निर्णय होने के लिए एक-दूसरे को जिम्मेदार बता रहे हैं। मुख्यमंत्री और शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे भी काफी दबाव में हैं, क्योंकि इस मुद्दे पर पूर्व मुख्यमंत्री देवेन्द्र फड़नवीस उन्हें निशाने पर लिए हुए हैं। गायकवाड़ आयोग की सिफारिशोें के आधार पर मराठा समुदाय को आरक्षण देने का फैसला महाराष्ट्र विधानसभा के दोनों सदनों ने आम सहमति से लिया था लेकिन शीर्ष अदालत ने उसे इस आधार पर रद्द कर दिया कि राज्य को ऐसा आरक्षण देने का अधिकार नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा था कि मराठा आरक्षण 50 फीसदी सीमा का उल्लंघन है और आरक्षण देते समय सीमा पार करने के लिए कोई वैध आधार नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा था कि 1992 में दिए गए इंदिरा साहनी फैसले को दोबारा देखने की भी जरूरत नहीं। फैसले का महत्वपूर्ण बिन्दू शीर्ष अदालत द्वारा यह कहा जाना रहा कि राज्यों को यह अधिकार नहीं कि वे किसी जाति को सामाजिक-आर्थिक पिछड़ा वर्ग में शामिल कर ले। राज्य सिर्फ ऐसी जातियों की पहचान कर केन्द्र से सिफारिश कर सकते हैं।