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अध्यक्ष महोदय, हम 50 वर्ष पहले आजाद हुए थे। हमने आजादी के पहले ढाई सौ वर्ष बेबसी और गुलामी के देखे थे
चंद्रशेखर,
अध्यक्ष महोदय, हम 50 वर्ष पहले आजाद हुए थे। हमने आजादी के पहले ढाई सौ वर्ष बेबसी और गुलामी के देखे थे। हम गुलाम थे, पर भारत गरीब देश नहीं था। कल अटल जी ने यह बात कही थी कि दुनिया के धनी देशों में हमारी गणना थी, लेकिन हम गुलाम हो गए। जब ढाई सौ वर्षों के बाद आजादी मिली, तो दुनिया के गरीब देशों में हमारी गणना होने लगी। हमें इतिहास के कुछ-कुछ पन्ने देखने चाहिए, तो हमें पता चलेगा। हमारे देश की पुरानी परंपरा है, गौरवमय इतिहास है, उसमें मैं नहीं जाऊंगा, लेकिन यह कटु सत्य शायद हमारी नजर से ओझल हो रहा है।
...अध्यक्ष महदय, क्षमा करें, अगर मैं एक कटु बात कहूूं। आपने कहा कि हमें आजादी की दूसरी लड़ाई लड़नी है, तो हमें सुनकर झटका सा लगा। आपके द्वारा यह बात कहने से मुझे ऐसा लगा कि हम अपनी आजादी को भूल गए हैं। ...राष्ट्रों का निर्माण वोटों और गोलियों से नहीं होता, बल्कि उनका निर्माण लोगों की इच्छाशक्ति से होता है। ...जब कोई कहता है कि चारों ओर अंधेरा है, 50 वर्षों में कुछ भी नहीं हुआ, तो हमें लगता है कि वास्तविकता से हमारा कोई संबंध नहीं है। दुनिया के अनेक तीसरे विश्व के देश हमारे साथ आजाद हुए थे। एशिया, अफ्रीका, लैटिन अमेरिका में और बाकी देशों ने जम्हूरियत का चिराग जलाया। सब चिराग बुझ गए। हिन्दुस्तान अकेला देश है, जहां लोकशाही का चिराग आज भी टिमटिमा रहा है। क्या हम उन मान्यताओं को भूल जाएंगे? इसी संसद में बैठकर उस समय के प्रधानमंत्री ने उस समय के संसद सदस्यों ने जम्हूरियत का चिराग जलाने का प्रयास किया था। इन संस्थाओं को एक महत्व और आदर दिया था। अटल जी 1957 में यहां आए। मैं 1962 में आया था। मुझे याद है, जब संसद में कोई सवाल उठता था, तो पंडित जवाहरलाल नेहरू जैसे प्रधानमंत्री उठकर खड़े होकर कहते थे, हमसे भूल हुई, मैं सदन से क्षमा चाहता हूं।
...दुनिया बड़ी निर्दयी है। उस देश की कोई मदद नहीं करता, जो अपनी मदद खुद करने को तैयार नहीं होता। किनसे हम मदद की अपेक्षा कर रहे हैं? जो अपने हथियार बेचने के लिए गरीब देशों को आपस में लड़ाते हैं, खूंरेजी कराते हैं, उनके जरिये हम इस देश का विकास करना चाहते हैं? मैंने अमेरिका के एक बड़े राजनेता से कहा था। उन्होंने पूछा कि आप हमारी नीतियों के खिलाफ क्यों हैं? मैंने कहा कि मैं जिंदगी में एक ही बार अमेरिका गया हूं। ...मैं दो दिन न्यूयॉर्क में रहा। हर चौराहे पर काले लोगों को भीख का कटोरा लिए हुए मैंने देखा है। तुम डेढ़ करोड़ लोगों को मर्यादा की जिंदगी नहीं दे सके, तो हमारे 40 करोड़ गरीबों को मर्यादा की जिंदगी कैसे दोगे? यह हमारी सरकार के लोग समझ सकते हैं। मैं राजनीतिज्ञ नहीं हूं, मैं अर्थशास्त्री भी नहीं हूं, मैं इंसान हूं और एक इंसान जो अनुभव से सीखता है, उसके कारण मैं इसका विरोधी हूं।
...धर्मनिरपेक्षता का नारा भी कुछ जरूरत से ज्यादा दिया जा रहा है। एक धर्म के बारे में इतनी चिंता और दूसरे धर्म के बारे में बिल्कुल चिंता नहीं? ...यह नहीं होगा कि कोई कट्टरवादिता हिंदू धर्म के नाम पर करता है, तो वह गलत है और अगर कोई मुसलमान धर्म के नाम पर कट्टरवादिता करता है, तो वह सही है। यह नहीं हो सकता। मैं जानता हूं कि अल्पमत की एक समस्या होती है, माइनोरिटीज की एक साइकोलॉजी होती है। उसको समझना चाहिए। सारी दुनिया में अल्पमत के लोग अपनी बात कड़वे ढंग से कहते हैं। उसके लिए हमारे मन में सहनशीलता होनी चाहिए और इसीलिए केवल हमारे देश में नहीं, दुनिया के लोगों ने कहा है कि अल्पमत के लोगों की बातों पर विचार करते समय हमें ममत्व के साथ, सहानुभूति के साथ, सहनशीलता के साथ विचार करना चाहिए।
अध्यक्ष महोदय, आज इस विकृति से इस समाज को, इस राष्ट्र को बचाने की जिम्मेदारी आपके ऊपर है, संसद सदस्यों के ऊपर है। अगर हम एक-दूसरे की आलोचना करते रहे, तो हम कहीं नहीं पहुंच पाएंगे।...हम हमेशा यह याद रखें कि हम इतिहास के आखिरी आदमी नहीं हैं, हम असफल हो जाएंगे, लेकिन देश असफल नहीं होगा। यह देश जिंदा रहेगा, इस देश को दुनिया की कोई शक्ति तबाह नहीं कर सकती। यह असीम शक्ति का देश हमारी जनता की अपार शक्ति को अगर हम जगा सकें, तो यह सदन अपने कर्तव्य का पालन करेगा।
(लोकसभा में दिए गए भाषण का अंश)
Hindustan Opinion Column
Rani Sahu
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