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सम्पादकीय
हमें खुद तय करना होगा कि कौन-सी चीजें खुशी देती हैं? भौतिक चीजें या उद्देश्यपूर्ण जिंदगी
Gulabi Jagat
29 March 2022 8:33 AM GMT
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यूएन ने हाल ही में सालाना वर्ल्ड हैप्पीनेस रिपोर्ट जारी की। इसमें फिनलैंड दुनिया के सबसे खुशहाल देशों में लगातार पांचवे साल टॉप पर है
एन. रघुरामन का कॉलम:
यूएन ने हाल ही में सालाना वर्ल्ड हैप्पीनेस रिपोर्ट जारी की। इसमें फिनलैंड दुनिया के सबसे खुशहाल देशों में लगातार पांचवे साल टॉप पर है, वहीं सर्वे में शामिल 149 देशों में भारत 136वें क्रम पर है। हालांकि हैप्पीनेस पर हुए ढेरों समकालीन शोध मानते हैं कि राष्ट्रीय स्तर पर खुशी को केवल आराम और भौतिक स्थितियों से मापा जा सकता है, वहीं कुछ मानते हैं कि खुशी भौतिक आनंद से कहीं आगे की बात है।
मुझे याद है कि तीन दशक पहले मैं किस दौर से गुजरा था, जब मेरी मां कैंसर से जूझ रही थीं और घर का माहौल खुशनुमा नहीं था। उनका बिस्तर घर की बड़ी खिड़की के पास था, जहां से हरियाली दिखती थी। बिस्तर पर लेटे-लेटे वह पक्षियों को घोंसला बनाते हुए निहारतीं और घर के लोगों से पानी देते हुए सावधानी बरतने का कहतीं। 1994 में बारिश के मौसम में एक तूफान आया।
अगली सुबह मां को एक कांस्य पंखों वाला, गौरैया के आकार का पक्षी 'स्पॉटेड मुनिया' दिखा। 'नटमैग मैनिकिन' नाम से जाना जाने वाला यह एक महीने से कम उम्र का पक्षी घड़े के साइड में था। उसने कसकर आंखें बंद की हुई थीं और वह कांप रहा था। उसकी छोटी चोंच किसी पेंसिल के सिरे-सी और पंख रिच ब्राउन रंग के थे। वो पक्षी मेरी कनिष्ठा से भी छोटा था।
मैंने कार्डबोर्ड के अंदर टर्किश टॉवेल बिछाकर उसे उस पर बैठा दिया। मेरी मां ने पास की किसी पेट शॉप से पक्षियों का भोजन लाने को कहा, और दुकानदार ने बताया कि पक्षी को उड़ने में कम से कम 12 हफ्ते लगेंगे। चंद घंटों बाद जब वह सोकर उठा तो उसने मुंह खुला रखकर शोर करते हुए खाने के लिए पुकारा। फिर मां ने उसे कुछ खिलाया।
पीछे से घायल वह मां के हाथ पर चढ़ गया, अपनी पीठ-सिर रगड़ते हुए उनकी हथेली पर ही सो गया। जहां तक उस पक्षी की बात है तो मेरी मां उसकी मां थीं। अगले 90 दिनों तक मां की देखभाल में रहा। मां और वो पक्षी ऐसे हो गए, जैसे एक हों। मां कहीं चली जातीं तो वह उन पर उखड़ जाता। कुछ दिनों बाद उसने उनके ही बालों पर एक घोंसला बना लिया।
जिस महिला ने पूरी जिंदगी कभी बाल खुले नहीं रखे, उन्होंने अपने बालों का हिस्सा एक अनजान पक्षी को दे दिया। (हालांकि कीमोथैरेपी से बाल कम बचे थे) उन्होंने उसकी भाषा, कलरव, तीखी आवाज में कुछ कहने का इशारा और भी बहुत कुछ सीख लिया। उनका रिश्ता इतना मजबूत था कि मापा नहीं जा सकता था। उन दोनों को एक-दूसरे की जरूरत थी।
अपना जीवन वापस पटरी पर लाने के एवज में, वह मां को एक उद्देश्य-नया दृष्टिकोण देकर उनके जीवन को नए सांचे में ढाल रहा था। उन दिनों वह कैंसर की लास्ट स्टेज पर थीं, पर फिर भी उन्होंने दर्द की शिकायत नहीं की। तीन महीने में वह वयस्कों जितने पंखों से दमकने लगा। वह मजबूत, विश्वास से भर गया था और अब उनसे दूर भी उड़ने लगा था, वो भी कुछ ज्यादा ही देर तक।
उसने दोस्त बनाए और उन्हें घर लाने लगा। वह मां के बिस्तर पर बैठते तो कुछ देर डायनिंग टेबल पर बैठकर चले जाते। अब उसके जाने का समय आ गया था और एक दिन अपने साथियों के साथ वो भी उड़ गया। बाद में हमने जब भी उसकी बात की, मां रो पड़तीं।
ठीक नौ महीने बाद, जब मां का देहांत हुआ, तो पक्षियों का एक समूह फिर से उन्हें खोजते हुए आया और हमें लगा कि वे अपनी संवेदनाएं प्रकट करने आए हैं। पर जब उन्हें मां नहीं मिलीं तो वे हमेशा के लिए उड़ गए। आज भी मैं जब उन दिनों को याद करता हूं तो आंखें भीग जाती हैं। मेरी मां के वे 90 उद्देश्यपूर्ण दिन उनकी पीड़ा के दौरान सबसे सुखद दिन थे।
फंडा यह है कि हमें खुद तय करना होगा कि कौन-सी चीजें खुशी देती हैं? भौतिक चीजें या उद्देश्यपूर्ण जिंदगी।
Gulabi Jagat
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